रसोपासना – भाग-24

🙏(सर्वोत्कृष्ट प्रेमकेलि -“सुरत सुख”)

🙏भीग गए हैं सखी ! ये युगल, बरसा में…. और देख तो, कैसे काँप रहे हैं…चलो ! इन्हें लेकर “सुरत कुञ्ज” में चलो…वहीं इनके वस्त्रों को बदल देंगे, और कुछ समय के लिये युगल को एकान्त भी दे देंगे…

रंगदेवी ने कहा ।

🙏…और सभी सखियाँ, रंगदेवी की बातों को मानते हुये…युगल को दिव्य “सुरत कुञ्ज” में ले गयीं ।

बहुत सुन्दर कुञ्ज है ये… नाना प्रकार के इत्रों की भीनी सुगन्ध से ये कुञ्ज महक रहा है…फूलों को सजा कर लगाया गया है…फूलों के झालर हैं…कुञ्ज लताओं से आच्छादित है…हाँ बड़े ही कलात्मक ढंग से बड़े बड़े आईने लगाये गए हैं उस कुञ्ज में ।

कुञ्ज की शोभा अद्भुत है… जिसे देखकर काम और रति भी ललचा जाएँ कि… ये स्थान तो हमारे लिये उपयुक्त है… ।

सखियाँ ऐसे कुञ्ज में युगल को लेकर आईँ हैं…”प्रेम देवता” का ही शासन है मानो यहाँ…वस्त्र बदले हैं युगल ने… झीना रेशमी वस्त्र दोनों ने धारण किये… लटें बिखरी हुयी हैं श्रीजी की… बिखरे तो श्याम सुन्दर के भी हैं केश… पर श्रीजी कुछ ज्यादा ही सुन्दर लग रही हैं आज ।

ये दोनों “सुरत रन धीर” आईने के सामने खड़े हुए…

सखियों ने इशारा किया और वहाँ से हट गयीं…

पर कुञ्ज रन्ध्र से इन रस लोलुप लाडिले के दर्शन का लोभ छोड़ नही पायीं सखियाँ… और देख रही हैं ।🙏

ये क्या हुआ ? श्रीजी सामने हैं लाल के… लाल ने लाडिली को देखा… कोई नही है आस पास… बस दोनों ही हैं ।

🙏गौर प्रभापुञ्ज, अद्भुत शोभा सम्पन्न, अमित गुणराशि से सतत सुशोभित, अपनी प्राण प्रिया श्रीजी को दौड़ कर हृदय से लगा लिया लाल जु ने… पर एकाएक हृदय में तीव्र वेदना प्रकट हुयी… लगा लाल जु को, कि कहीं ये मुझ से अलग हो गयीं तो ? साँसे चढ़ने लगीं श्याम की… श्रीजी ने देखा ये क्या हुआ इन्हें ? कुछ समझ न पाईँ… सेज में लेकर गयीं…पर नयन बन्द हैं श्याम सुन्दर के और पुकार मचा दिया… “नही ! स्वामिनी ! मुझे मत छोड़ो… मैं आपके बिना अधूरा हूँ… मैं कहाँ जाऊँगा… एक क्षण का वियोग भी मेरे लिये असह्य है… श्रीअंग का ताप बढ़ने लगा… श्रीजी ने बहुत सम्भाला पर – नही…मूर्छित हो गए श्याम सुन्दर ।

🙏सेज पर मूर्छित हैं… श्रीजी पुकार उठीं… प्यारे ! क्या हुआ आपको ? उठो तो ! अपने अंक से लगाती हैं श्रीजी… पर नहीं… मूर्च्छा टूटती ही नही हैं अब लाल जु की ।

दशा बिगड़ने लगी थी, श्रीजी की भी…

जोर से पुकार उठीं… रंगदेवी ! ललिता !

ये पुकार सुनते ही दोनों सखियाँ दौड़ीं सुरत कुञ्ज की ओर ।

अद्भुत दशा को प्राप्त हो गए थे ये दोनों युगल… रसातिरेक स्थिति देख श्रीजी के पास में गयीं सखियाँ… श्रीजी रो रही हैं… सहायता माँग रही हैं सखियों से…

हे मेरी सखी ! मेरी सहायता कर… मेरे प्राण बल्लभ को मूर्च्छा से उठाकर मुझ से मिलाय दे… मैं आज तुम से यही माँगती हूँ ।

मैं तुमरे प्रति अगाध श्रद्धा रखूंगी…तुमरो ये उपकार कबहुँ नाय भूलूंगी… मेरी सखियों ! मेरे ऊपर इतनी कृपा कर दो… श्रीजी हाथ जोड़ने लगीं अपनी सखियों से ।

श्री जी की हिलकियाँ बंध गयीं हैं…

हे सखियों ! तुम ही मेरे अन्तःकरण की हितैषी हो… तुम्हारे बिना मेरा कोई काम नही बनता… अब मेरे प्राण प्रियतम के प्राणन की रक्षा तुम्हारे ही हाथ में है… मेरी सखियों ! मेरे प्रियतम को जगा दो ।

प्रेम की सर्वोत्कृष्ट स्थिति में श्रीजी आज पहुँच गयीं है…

हे सजनी ! अब मैं क्या करूँ ? मूर्छित मेरे प्राण प्यारे पड़े हुए हैं… इन्हें कैसे सचेत करूँ ? इन को बिना देखे एक क्षण भी मुझे चैन नही पड़ता है… इन मनमोहन का प्रफुल्लीत मुखारविन्द देखने के लिये मेरे नयन बेचैन और व्याकुल हो रहे हैं… मेरी सहायता करो मेरी सखियों !

पुकार रही हैं श्रीजी !

मेरे प्राण छटपटा रहे हैं… सखी ! जैसे मछली बिना जल के छटपटाती है ना ! ऐसे ही इन मनमोहन के बिना मेरे प्राण… मैंने सब उपाय कर लिए हैं…

🙏रंगदेवी ने आगे बढ़कर कहा… हे स्वामिनी ! धीरज रखो ! लाल जु कुछ देर में ही जाग्रत हो जायेंगे…

अरी सखी ! मेरे मन में अब थोड़ी भी धैर्यता नही रही… मैं क्या करूँ ? मेरा मन अधीर हो गया है… ये सब वस्त्र, ये सब आभुषण, ये सब फूल और कुन्जन की शोभा मुझे दुखदाई लग रहे हैं… ये सब मुझे शत्रु के समान दिखाई दे रहे हैं… मेरी ऐसी दशा होती जा रही है… मैं क्या करूँ ? हिलकियाँ बन्द नही हो रही श्रीजी की ।

सखी ! जिधर देख रही हूँ… सब कुछ दुःख से भरा हुआ मुझे दिखाई दे रहा है… ये कुञ्ज… ये निकुञ्ज… सब… सब कुछ ।

सखी ! आनन्द कन्द प्रियतम कृष्ण चन्द्र के बिना मेरे हृदय में शीतलता कहाँ से आएगी… ?.

कुछ देर अश्रु पात करती रहीं श्रीजी…

फिर बोलीं – हे सखी ! तुम ही तो हो… जो मन वचन क्रम से मेरी सेवा करती रहती हो… बस आज मेरे इन प्राण बल्लभ को जगाकर मेरे प्राणों की रक्षा करो… मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ ।

इतना कहकर फिर श्याम सुन्दर के मुखारविन्द की ओर देखने लगीं ।

🙏पर एकाएक श्याम सुन्दर दीर्घ स्वांस छोड़ते हुए बोले… श्री राधा !🙏

श्री जी ने जैसे ही अपना नाम प्रियतम के मुख से सुना…

… प्रेमोन्माद से भर गयीं एकाएक…

लाल जु के ऊपर आगयी थीं श्रीजी… उनका गौर वर्ण और लाल जु का श्याम वर्ण… अद्भुत लग रहा था… गौर वर्णी आज विपरीत रति को आमन्त्रित कर रही थीं… श्याम के अधरों को चूम लिया था… अधर रस का पान कर रही थीं… और अपने अधर रस से जीवन रस प्रदान कर रही थीं… श्रीजी ने श्याम के वक्ष को अपने दन्त से क्षत कर दिया था… श्रीजी की करधनी अद्भुत बज रही थी… कोयल की कुहुँक सी ध्वनि श्रीजी के मुख से निसृत होने लगी थी… जो पूरे निकुञ्ज में रस की वृष्टि कर रहा था ।

नयन खोल दिए थे श्याम सुन्दर ने… श्रीजी के नयनों को जब देखा… आहा ! अरुण नयन हो गए थे… प्रेम रस टपक रहा था उन गौर वर्णी श्रीजी के नेत्रों से… पर श्याम सुन्दर के नेत्र थोड़े जैसे ही मुस्कुराये…श्रीजी लजा गयीं अब… तब श्याम सुन्दर बोले… नही नही प्यारी ! अब इन नयनों को मूँदों मत… छोड़ो लाज… तुम और हम कोई “दो” तो हैं नही…

मुझे काटो अपने मोतियों जैसे दन्त पंक्ति से… अपने वक्ष के भार से मुझे दबा दो… मेरे अधरों में अपने जलते हुए अधर रख दो… मुझे भी अपने गर्म स्वांस प्रस्वांस से भस्म कर दो… मेरे अंग अंग में हे स्वामिनी ! आप विहरों… मेरी यही कामना थी… जो आपकी परम कृपा से पूरी हो रही है… मैं धन्य हो गया हूँ…अब हो जाओ “एक”… अब हो जाएँ हम “एक”… “दो” मिथ्या है हे राधिके ! सत्य तो “एक” ही है… हम “एक” ही… मात्र “एक” ।

बस इस “सुरत सुख” का वर्णन आगे असम्भव है…

क्यों कि शब्दों की सीमा है… और ये प्रेम असीम है ।

🙏”रसिकनी ! करो रस की बात “… मैं तो श्याम सुन्दर के मुख से श्रीजी के प्रति – यही सुनता रहा रात भर… उफ़ ! ।🙏

🙏(साधकों ! कल मैं ये लिखते हुए सोचता रहा… ऐसे दिव्य, अद्भुत प्रेम का वर्णन करूँ या नहीं !…श्रीजी कुछ तो इशारा दें… तभी मेरी माता जी ने लाकर मुझे पान दिया… और कहा… बाहर एक बाबा देकर गए हैं…कह रहे थे…श्रीराधाबल्लभ जी की प्रसादी पान है…हरिशरण जी को दे देना…वो पान अद्भुत था…मैंने उस पान प्रसाद को ग्रहण किया…और श्रीजी की आज्ञा मानकर लिख दिया)🙏

शेष “रस चर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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