रसोपासना – भाग-12 जुगल जस गाय गाय जीजिये..


“युगल यश” को गाना ही अब जीवन का ध्येय बन गया है !

बाकी संसार में किसका यश गायें ?

संसार में हजारों कवि हुए… अच्छी-अच्छी कविताओं की रचना की… पर किनके लिये ? मल-मूत्र से भरे शरीर के लिये..?… धन यश के मद में भरे सांसारिक सम्राटों के लिये ? उनसे प्राप्त होने वाले धन के लिये ही ना ? पर क्या लाभ हुआ ?

किन्तु देखिये कलिपावनावतार श्री तुलसीदास जी को… किसको गाया उन्होंने… “श्री जानकी नाथ” को ! धन्य हो गयी उनकी लेखनी ।

🙏श्री सूरदास जी… “नन्दनन्दन भानु दुलारी” के यश को गाकर “सूर” सच में कवियों में “सूर” ( सूर्य ) ही हो गए ।

🙏श्रीधाम वृन्दावन के रसिकों ने मात्र अपनी लेखनी चलाई “प्रिया प्रियतम” के यश को गाने में… वो चाहे – श्री श्री भट्ट देव जी हों… जिन्होंने “युगल शतक” जैसे वाणी जी को लिखा, गाया… या श्री श्री हरिव्यास देवाचार्य जी हों… जिन्होंने “महावाणी” जैसे मधुर रस के दिव्य काव्य को लिखा, गाया ।

🙏”हित चौरासी” श्री श्री हित हरिवंश महाप्रभु ने लिखा… या स्वामी श्री हरिदास जी हों… जिन्होंने युगल की केलि का वर्णन “केलिमाल” में करके रसिको का परम हित किया ।

🙏धन्य हैं ये रसिक महापुरुष… जिन्होंने रस का विस्तार करके इस कलियुग के ताप से झुलस रहे जीवों को पूरी राहत दी… और उस “नित्य निकुञ्ज” की ओर इशारा किया… जो कालातीत है… जहाँ मुक्ति भी तुच्छ लगती है… जहाँ योग ज्ञान की पहुँच ही नही… बस – प्रेम… विशुद्ध प्रेम – बस ।

“चित्त वृत्ति निरोध” ये आवश्यक है योग में… और योग में ही आता है ध्यान… आप नित्य लिखते हैं – “ध्यान करो… चलों आँखें बन्द करो”… मैंने ये आपके लेख में पढ़ा है… पर बिना चित्त वृत्ति का निरोध किये ध्यान कैसे सफल होगा ? ये भी एक प्रश्न आया था मेरे पास… कल ।

नही… ये हमारा ध्यान “रसोपासना”, प्रेम की उपासना का ध्यान है… इसमें चित्त वृत्ति का निरोध नही करना है… इसमें तो चित्त वृत्ति को भगवदाकार बनाना है… “युगल” ही हमारे चित्त में विराज जाएँ… इस चित्त वृत्ति में “युगल” ही छा जाएँ… उस स्थिति में पहुँचना है… इसीलिये मैं ये सब लिख रहा हूँ… मैंने कहा ।

कैसे होगा… ? वे बेचारे फिर पूछने लगे थे ।

मैंने कहा…लीला के चिन्तन से…”युगल” अभी क्या कर रहे हैं ?
इस समय कहाँ हैं ? क्या लीला चल रही है निकुञ्ज में ?

क्यों कि “आनन्दम ब्रह्म” “रसो वै सः ” ये सब वेद वाक्य हैं… ब्रह्म आनन्द है… वह रस है… और निकुञ्ज में रस का उन्मुक्त नाच हो रहा है… आनन्द का सागर वहाँ लहरा रहा है… ऐसे चिन्तन और ऐसे ध्यान से आपकी चित्त वृत्ती युगलाकार” नही होगी ?

साधकों ! मुझे क्षमा करना… मैं भी आपको किन “नीरस” बातों में पहले उलझा देता हूँ… चलिये ! चलिये ! मैं तैयार हूँ उस निकुञ्ज में पहुँचनें के लिए… आप तैयार हैं ?

तो फिर आँखें बन्द कीजिये… …


🙏सखी – समूह के मध्य नव निकुञ्ज में श्रीयुगल सरकार विराजमान हैं… बड़े सुन्दर लग रहे हैं… पीताम्बर श्याम सुन्दर ने धारण की है… और नील वरण की साड़ी श्री प्रिया जु ने ।

बसन्त ऋतु सेवा में उपस्थित है… ऐसे सरस वातावरण में विराजें हैं युगल… ऐसी सरस मन भावन छवि का अपने नयनों से पान कर रही हैं सखियाँ… और गदगद् हैं ।

ये दो हैं ? रंगदेवी आनन्दित होते हुए ललिता सखी से पूछती हैं।

नही… ये लगते दो हैं… पर हैं एक ही । ललिता सखी ने कहा ।

जैसे – एक ज्योति आगे बढ़ती हुयी दो रूपों में दिखाई देने लगती है… जैसे – नदी अपने उदगम से निकलती हुयी… एक, फिर कई धाराओं में बंटती चली जाती है… और बाद में फिर एक ही हो जाती है ।

ऐसे ही ये युगल सरकार हैं… एक हैं… पर दो हो गए ।

रंगदेवी को ललिता सखी ने कहा ।

पर दो क्यों हुए ललिता सखी ?

इसलिये – कि एक में लीला बनती नही है… लीला के लिये तो दो का होना आवश्यक है… विहार के लिये “दो” तो होने ही चाहिये ना !

बड़ी रहस्यपूर्ण वार्ता सखियों की चल रही है यहाँ ।

अरी सखियों ! क्या बातें ही करती रहोगी… या इन युगलवर को अब स्नान भी कराओगी ? देखो ! सूर्योदय होने वाला है… कुछ ही देर में सूर्य उदित हो जायेंगे… वृन्दा सखी ने सखियों को सावधान किया ।

अरे ! हम तो सब भूल गयीं थीं… अब क्या करें इनकी रूप माधुरी है ही ऐसी… कि कुछ भान ही नही रहता… देह भान सब भूल जाती हैं… पर वृन्दा सखी ! तुमने अच्छा काम किया कि हमें झंकझोर दिया… चलो अब स्नान करायें युगलवर को !

रंगदेवी सखी ने अन्य सब सखियों को ये बात कही ।

पर मेरी एक अभिलाषा है आज… वृन्दा सखी ने अपनी बात रखते हुए कहा… मेरी अभिलाषा ये है कि युगल को स्नान कुञ्ज में नही… यमुना में ही स्नान कराओ… बड़ा ही सुख मिलेगा इनको ।

वृन्दा सखी की बात सुनकर ललिता तो आनन्दित हो उठीं… वृन्दा ! तुमने तो मेरे मन की बात कह दी…

पर युगल के चरणों में तो ये निवेदन करो… उनकी क्या इच्छा है ?

रंगदेवी ने ललिता सखी से कहा ।

हाँ हाँ… सब सखियाँ युगल सरकार के पास गयीं… और हाथ जोड़कर बोलीं… आज हम सब सखियों की अभिलाषा है कि आप यमुना में स्नान करें… आप क्या कहोगे सरकार ?

प्रिया जु बड़ी प्रसन्न हुयीं… प्रियतम ! सखियों की ही ये अभिलाषा नही है, मेरी भी है…

मुस्कुराये श्याम सुन्दर… प्यारी जु ! ये अभिलाषा तो मेरी थी ।

सब सखियाँ ताली बजाकर नाच उठीं… और युगलवर को चलने की प्रार्थना करने लगीं… चलो चलें सखियों ! इतना कहकर “युगल” धीरे-धीरे उठकर चलने लगे ।


🙏दिव्य “युगलघाट” है… वह घाट मणिमाणिक्य से रचे पचे हैं… मणियाँ चमक रही हैं… उनकी चमक यमुना जी में पड़ रही है… जिससे यमुना जी की शोभा दिव्य से और दिव्य होती जा रही है… उस युगल घाट में जब पधारे युगलवर… मार्ग में वृन्दा सखी ने पुष्पों के पाँवड़े बिछा रखे थे… उनमें ही अपने चरण पधराते हुए युगलवर आ रहे हैं… गलवैयाँ दिए… चारों ओर श्रीधाम की शोभा को निहारते हुए… इस युगल छवि को सब स्तब्ध होकर देख रहे हैं… पक्षी तो मौन हो गए… और इन युगल के रूप सुधा का पान करने लगे ।

सखी ! देखो तो जहाँ-जहाँ युगल अपने चरण रख रहे हैं… वो धरती कितनी रूपवती होती जा रही है… और ये युगल जिस लता को छू रहे हैं… उन लताओं की अनुपम छटा, देख सखी ! कितना सरस श्री धाम वृन्दावन हो रहा है ।

तभी –

प्यारे ! देखो ! यमुना की शोभा ! यमुना जी का दर्शन करते ही श्रीजी आनन्दित हो उठीं… देखो ! देखो ! हमें देखकर ये यमुना और उछल रही हैं… कितनी आनन्दित हैं ।

हाँ प्यारी ! इतना कहकर श्यामसुन्दर श्रीराधा जी की ओर मुड़े ।

और बहुत देर तक निहारते ही रहे अपनी प्यारी को…

क्या देख रहे हो ? मुस्कुराते हुए पूछा श्रीजी ने ।

पर सखियों ने आकर… जय जयकार किया…

🙏”युगल सरकार की – जय जय जय”

इस जय जयकार से एकाग्रता भंग हुयी श्यामसुन्दर की ।

ललिता जी ने छेड़ा… अब चलो सामने के कुञ्ज में ।

क्यों, कुञ्ज में क्यों ? प्रिया जु ने पूछा ।

क्यों कि स्नान से पूर्व आप दोनों के श्री विग्रह में उबटन लगाया जाएगा… इत्र से आपके श्रीअंगों का मर्दन होगा…

श्याम सुन्दर ने मुस्कुराते हुए श्रीजी की ओर देखा…

ललिता सखी ने कहा… अब देखा देखी मत करो… देर हो रही है… आप दोनों ने कुछ खाया भी नही हैं… इसलिये चलिये कुञ्ज में ।

सामने ही एक कुञ्ज है… बड़ा दिव्य कुञ्ज… उस कुञ्ज में सखियाँ युगल को लेकर आईँ… नाना प्रकार के पुष्पों से सज्जित कुञ्ज है वो… मध्य में दो चौकी हैं सुवर्ण की… उसमें “लाल ललना” दोनों को बैठाया ।

वस्त्र आभुषण उतारनें लगीं सखियाँ…

फिर सुन्दर अत्तर रंगदेवी ने श्रीजी के दिव्य देह में लगाना शुरू किया…

आहा ! श्रीजी का दिव्य गौर अंग… तेज़ छिटक रहा है उनके देह से ।

चम्पकलता और ललिता सखी ने श्याम सुन्दर के देह में लगाने के लिए पिस्ता और बादाम पीस कर लेप बनाया था… उसे उबटन के रूप में लगाने लगीं ।

एक सुवर्ण के कटोरे में… सुगन्धित तेल… और वही उबटन… “श्रीजी” को रंगदेवी लगा रही हैं…

पर ये क्या ?

झुक-झुक कर श्रीजी को निहार रहे हैं श्यामसुन्दर ।

लाल ! सीधे बैठो ना ! ललिता सखी ने श्यामसुन्दर को कहा ।

ललिता जी ! एक बात कहूँ ? श्याम सुन्दर ने कहा ।

श्याम सुन्दर के मुख की ओर देखा ललिता सखी ने… क्या बात है… प्यारे ! आज मुझे…”जी” ? हँसी ललिता सखी ।

मेरी एक प्रार्थना है… आपको माननी पड़ेगी ! श्यामसुन्दर ने कहा ।

बात क्या है पहले ये बताओ… ललिता सखी ने कहा ।

ये श्रीजी के अंग में अत्तर और उबटन लगाने की सेवा मुझे दे दो ।

रंगदेवी तुरन्त बोलीं… ना ! ये सेवा तो हम सखियन की है ।

अब ये सौभाग्य तो तुम लोग नित्य लेती रहती हो ना !… आज मुझे दे दो… कृपा करो… हाथ जोड़ने लगे श्याम सुन्दर ।

पर हमें कहने से क्या होगा… हे लाल ! आप तो “स्वामिनी” से ही प्रार्थना करो… वो जैसा कहें ! रंगदेवी ने हँसते हुए श्रीजी की ओर देखा ।

उठ गए श्याम सुन्दर चौकी से… और झुक कर हाथ जोड़कर बोले… श्री जी ! मेरी इच्छा है… कृपा करो… मुझे आपके देह में ये अत्तर और उबटन लगाना है… ये सेवा मुझे दे दो ।

श्री जी शरमा गयीं… कुछ बोलीं नहीं ।

श्याम सुन्दर ने हाथ में अत्तर और उबटन का कटोरा लिया और… आहा ! दिव्य गौर वदन में उबटन लगाने लगे ।

“पीय कमल कर परसत, प्यारी जु सकुचाय !
लाज भरे मादक पलक, उठत न मनहिं लजाय !!”

सखियाँ इस झाँकी का दर्शन कर रही हैं,

और आनन्द सिन्धु में डूब रही हैं ।

शेष “रस चर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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