आत्मा की धारा

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जब एक पानी की टंकी के पानी को जो कई टोंटियों या नलों में से बह रहा है, सब नल बन्द करके केवल एक नल में से निकाला जाता है तो उसका बहाव कितना तेज हो जाता है।ठीक इसी तरह हमारी आत्मा की धारा आँख, नाक, कान, और दूसरे द्वारों के जरिये निकाल कर स्री, पुत्र, पुत्री, माँ-बाप, दूसरे रिश्तेदारों, दोस्तों तथा संसार के अन्य सजीव- निर्जीव पदार्थों में लिप्त है।

जब हम अपने प्यार को इन सबसे हटाकर केवल एक👉 सतगुरु’ की ओर लगा देंगे- तो वहाँ पहले से ही हमारी प्रतिक्षा में हमारा सतगुरु वहाँ खड़ा मिलेगा उसके बाद से सतगुरु हमारा साथ कभी नहीं छोडते।हम चाहे कहीं भी जायें कहीं भी रहें सतगुरु हमेशा हमारे साथ ही रहते हैं उसके बाद हम आँखें बन्द करके बैठें या खोलकर इससे कोई फर्क नहीं पडता है।

एकान्त से प्रेम करो और ह्रदय का सारा बोझ गुरु चरणों में समर्पित करके स्वतंत्र होकर आत्मीय मार्ग की यात्रा करो। इस जीवन से परे भी एक जीवन है परम- जीवन’ उसकी तलाश में लग जाओ उसकी तलाश के लिए ‘मार्ग’ चाहिए मार्ग मिलेगा किसी ‘सतगुरू’ से किसी ‘संत-महात्मा’ से अगर हीरे-जवाहरात की दुकान पर जाकर हम कोयले माँगना शुरु कर दें तो इसमें हमारा अपना दोष है दुकानदार का नहीँ।इसी तरह ‘सतगुरु’ के पास जाकर अगर हम सिवाय ‘नाम’ के जो कुछ भी माँगते हैं वो सब कोयले माँगने के समान ही है।|| सदगुरुदेव भगवान की जय हो ||

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