मानव जीवन का उद्देश्य क्या है

garden flowers roses

शरीर तो एक ही है हम जिन्दगी भर यह सोचते हैं अन्य विशेष है अन्य मुझे बहुत सुख देगा।अन्य के पास सुख होगा। तब आपको सुख देगा। सुख तो भगवान देते हैं भगवान नाथ का बन कर तो देखो।

हम भगवान को भजते हुए भगवान से सुख प्राप्ति के साधन ढुंढते है। हम समझते हैं बस मै भगवान का व्रत अनुष्ठान कर रहा हूं बस अब भगवान मेरा कल्याण कर देंगे। कल्याण किसका शरीर का मन का।

भगवान  हमें मनुष्य जन्म में सबकुछ देते है बच्चा बड़ा होकर हमे बहुत सुख देगा। भगवान ने हमें भी पुरण बनाकर इस पृथ्वी पर जन्म दिया है हम कभी भी बहुत आनंदित नहीं होते हैं कि देखो भगवान ने मुझे क्या दिया है

भगवान ने मुझे मानुष जन्म देकर मेरा बहुत कल्याण किया है। मै भगवान को लाख बार शीश नवाकर शुक्राना करती हू मेरे भगवान तुने मुझे पुरण घङा है मेरे जन्म का कोई प्रयोजन रहा होगा। फिर मै सोचती मानव जीवन का लक्ष्य इस शरीर को बहुत सा खिलाना और भौतिक सुखो में जीवन व्यतीत करना नहीं है।

जीवन एक धारा इसे जिस तरफ मोङ दोगे वह उसी दिशा में बह जाएगा। जीवन का हर पल अनमोल मोती हैं ।अ प्राणी इस अनमोल अवसर का आनंद ले। इस जगत में न कोई किसी का हुआ है और न होगा। जन्मो पर जन्म होते रहते हैं। व्यक्ति भगवान को भजते हुए जन्म मृत्यु के चक्कर से पार पा सकता है। तेरा जन्म परम पिता परमात्मा की शरण के लिए है अ प्राणी यदि जीवन का आनन्द लेना चाहता है तब आनंद श्री हरी के चरणों में है। श्री हरि तेरा सच्चा साथी है ।

भगवान को अन्तर्मन से पुकार कर देख। पुकार की गहराई में प्रभु छुपे बैठे हैं। ये भौतिक सुख शरीर रूपी अनमोल हीरे को मिट्टी में मिला देता है। बीता समय वापस नहीं आता है। अ प्राणी तेरे दो मन है एक मन भगवान मे लगा दे। तु मन का खा, मनका पहन अन्दर से तु भगवान का बन जा।

एक मन से तु भगवान को भज ले। मन होता तब भक्त मन की करता मन तो प्रभु चरणों का है भगवान को भजते हुए भगवान भक्त के मन को खींच लेते हैं।

दृष्टि संसार को देखते हुए भी नहीं देखती है क्योंकि दृष्टि सावधानी से बाहर का करते हुए भी अन्दर की तरफ नजर रखती है कि अन्तर्मन भगवान मे ढुबा हुआ है। यह सब किरया भगवान को भजते हुए ही कर सकते हैं।


अ प्राणी तु अपने अन्दर से मै और मेरापन को निकाल दें। अन्तर्मन में झांक कर देख हृदय में भगवान बैठे हैं। इस दिल के अरमानों की बागडोर प्रभु प्राण नाथ के हाथ में सौप दे। मुझमें मेरा कुछ भी नहीं है जो कुछ है सब तु ही तु है।

मानव जीवन का उद्देश्य आत्म तत्व को जाग्रत करना है। जब तक अन्दर का द्वार नही खटकाओगे तभी तक बाहर हो घुमते रहोगे। अन्तर्मन को पढना परमात्मा से मिलन की कितनी विरह वेदना दिल में धधक रही है कैसे भगवान श्री हरि में समा जाऊ हरि की बन जाऊ। यह शरीर कुछ भी करे पुकार कम न हो। दिल की धड़कन मे तेरा नाम समा जाए। जय श्री राम अनीता गर्ग

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on pinterest
Share on reddit
Share on vk
Share on tumblr
Share on mix
Share on pocket
Share on telegram
Share on whatsapp
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *