नाम ध्वनि उजागर होना 2

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भगवान का नाम अन्तर्मन मे चल रहा है। भक्त भगवान को सांस से सिमरता हैं भक्त के दिल में इतनी विरह वेदना होती कि कैसे भगवान से मिल लु ।बस भगवान को नमन वन्दन के साथ प्रार्थना करता है फिर राम राम राम राम जपता है। भक्त के दिल में एक ही आरजु होती है भगवान का बनना।

भक्त एक सांस में एक माला जप करना चाहता है ऐसे भगवान को पुकारते हुए बाहर नाम ध्वनि सुनाई देने लगतीं है। वस्तु विशेष से राम राम राम राम की ध्वनि लगातार बज रही है। टैप चल रहा है बहते हुए जल से राम राम राम राम की धुन बज रही है। sound में नाम ध्वनि बज रही है। नाम ध्वनि जितनी गहरी सुनाई देती है उतनी ही दिल की विरह वेदना बढती जाती है। बाहर की नाम ध्वनि कभी बजती और फिर बन्द हो जाती है। ऐसे में वह ध्वनि पकङाई में नहीं आती है।एक बार भक्त को ऐसा लगता है जो मैं जिस तरह से भगवान को भजती हू कथा करती हू ग्रथं पढती हू भगवान का सिमरण करते हुए भी पुरणता दिखाई नहीं देती है।

भक्त सोचता है कि यह मार्ग दृढ नहीं है। और मै सबकुछ छोड़ देती हूँ। कुछ समय मै मौन धारण कर लेती हूँ। सब संगी साथी को छोड़कर भगवान को मन ही मन भजती रहती हूं। घर में सब कार्य वैसे ही होते बस भगवान को अन्तर्मन से भजती ।ऐसे एक वर्ष तक भगवान को भजते हुए ।नाम ध्वनि पुरण रूप से अन्दर बजने लगती है बाहर और भीतर दो ध्वनि में समझ नहीं आती थी कि किस ध्वनि पर दृष्टि टिकाऊ।  धीरे-धीरे बाहर और भीतर की ध्वनि एक हो जाती है नाम ध्वनि चल रही है। नाम ध्वनि एक बार भक्त के अन्दर बजने लगती है। तब शरीर कुछ भी करे अन्तर्मन मे नाम ध्वनि बजती रहती है। भक्त की नज़र अन्तर्मन की नाम पर टिकती है तभी भक्त अन्दर की तरफ मुङता है। भक्त का दिल भगवान का बन जाता है। भक्त जानता है यह भगवान नाथ श्री हरी की विशेष कृपा है भक्त अपने भावो को समेट लेता है। वह जानता है बाहरी संसार में ये दिखाने का नहीं है मोन हो जाता है। मौन भगवान को भजता है। वाणी से भगवान को पुकारने पर पुकार में गहराई नहीं आ सकती है क्योंकि आनन्द प्रकट हो जाता है भक्त के दिल की वेदना होती है कि एक पल के लिए भी स्वामी से बिछङन न हो। इस लिए भक्त भगवान को मन ही नमन वन्दन और भगवान के नाम का सिमरण करता है। भक्त का दिल भगवान मे खो जाना चाहता है तब भगवान नाम अन्दर की दृष्टि को भगवान पर टिका देता है। बाहर की दृष्टि में संसार होता है अन्दर की दृष्टि निर्मल और स्वच्छ है। जय श्री राम अनीता गर्ग

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