दर्शन भाव

IMG 20220910 WA0134

भक्त जब भगवान नाथ की मन ही मन विनती स्तुति नमन वन्दन और नाम सिमरण करता है। तब भक्त जानता है कि मेरे अराध्य से शरीर रूप से नहीं जुड़ा जा सकता है तब वह अन्तर्मन से भगवान के साथ जुड़ता है।

हे परम पिता परमात्मा हे भगवान नाथ हे राम जी मै तुम्हे कैसे रिझाऊं तुम जगत के पिता हो। हे सृष्टि तुम्हें ये दासी वन्दन करती है। ऐसे गृहस्थ के कार्य करते हुए भगवान की मन ही मन प्रार्थना करता शीश झुकाते हुए ।सुबह की आरती का समय है भगवान के चरणो में दिल से नतमस्तक है पुकार की गहराई हैं ऐसे मै भगवान की आरती करने लगती हूं।

तुम मुस्कुरा कर ह्दय मे आनंद भर देते हो। दिल से चरणोंमें नतमस्तक हो जाती हूं ।मैं स्वामी भगवान नाथ के चरणों का स्पर्श इस भाव से करती हूं कि तुम प्रत्यक्ष मुझ दासी के सामने खङे हो आनंद के वशीभूत हो जाती हूं।और वास्तव में ही तुम शरीर रूप में खङे हुए दिखाई देते हो। 

आरती कर रही हूं दिल सम्भाले नहीं सम्भलता आरती के शब्द भी नहीं बोल पाती हूं।अन्तर्मन से नमन और वन्दन करती हाथ से आरती की प्लेट नहीं सम्भल पाती है।

आरती करते करते भाव की गहराई बन जाती है तब दिल भगवान राम को प्रार्थना करता है कि हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ तुम कुछ समय इस दिल में निवास करो।प्रार्थना जितनी गहराती जाएगी। वाणी में ओज समा जाएगा। प्रार्थना करते ही  धङक की आवाज के साथ तुम दिल में समा जाते हो मेरे भगवान नाथ के दिल में  आते ही रोम रोम में उल्लास छा जाता है। आनन्द की वर्षा होती है। भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ इस आनंद को अपने में समेट लो ।

क्योंकि मैं एक गृहस्थ हूं मुझे घर की जिम्मेदारी निभानी है ये आनंद यदि कुछ पल ठहर गया तब मैं इस गृहस्थी को कैसे सम्भालुगा। मेरे भगवान भुखे होंगे उन्हें भोग कैसे लगाऊंगा।भक्त भगवान की अन्तर्मन से प्रार्थना करता है बाहरी शरीर कर्तव्य कर्म करता है

भक्त और भगवान एक रूप हो जाते हैं तब भगवान मन्दिर छोड़कर भक्त के साथ चल पङते हैं। मै अन्तर्मन से राम कृष्ण हरि, कभी शीश नवाते भजते हुए किचन में आ जाती हूँ। किचन में देखती हूँ स्वामी भगवान् नाथ किचन में आए हैं। दिल की दशा को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती हूँ। दिल थामे नहीं थमता है।

भक्त भगवान को बैठ कर भज भी नहीं पाता है क्योंकि कर्तव्य और कर्म को छोड़ नहीं सकता है मै जानती हूँ कि देखने मात्र के लिए भोजन पति और बच्चों के लिए बनता है वास्तव में तो स्वामी के भाव की गहराई है। जब किचन में कार्य करती तब रोम रोम से राम राम राम जय श्री राम की ध्वनि बजने लगी दिल में आनद की लहर छा गई।

कार्य करते हुए हर चीज तुम दिखाई देते। अन्दर से बोलते कण कण में मैं बैठा हूं हे प्रभु प्राण नाथ मै कुछ समझ नहीं पाती हूं। फिर से अन्तर्मन से प्रार्थना करती हे भगवान नाथ ये लीला ऐसे ही चलती रहे तुम आते रहो मै पुकारती रहू हे नाथ जीवन के हर पल तुम्हारा ध्यान धरती रहूँ।

इन भावों को शब्द रूप देने के लिए शब्द छोटे पङ जाते हैं। भक्त में जब यह भाव बनने लगते हैं तब यह भाव सुबह शाम दोपहर चलते रहते हैं। यह भाव तभी बनेंगे जब तक परम पिता परमात्मा को दिल से पुकारोगे।
जय श्री राम अनीता गर्ग

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *