तुम चैतन्य हो

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तुम सत्य हो तुम चैतन्य हो तुम ही आनंद हो। तुम ही राम तुम ही कृष्ण तुम ही बुद्ध तुम ही महावीर हो। शुद्ध चेतना पर बस कुछ संस्कारों की धूल चड गई है। थोड़ा साफ करो और देखो तुम ही इस अस्तित्व के इकलौते सम्राट हो। रामतीर्थ ने कहा तु ईश्वर का इकलौता पुत्र हूँ। इकलौता कहना पड़ा क्यूँकि जब सारा संसार ही एक अस्तित्व है तो दो कहने की गुंजाइश नहीं। पुत्र भी कहने की गुंजाइश नहीं थी मगर उन्होंने लोगों का थोड़ा लिहाज कर लिया एक दम से खुद को ईश्वर कह देते तो लोगों को समझने में थोड़ी दिक्कत हो जाती। राधा कृष्ण दो नहीं हैं। गुरु में शिष्य शिष्य में गुरू है अष्टावक्र जनक से कहते हैं। मुक्ति का उपाय ही बंधन है। मुक्ति के लिए किये गए कर्म ही बंधन हैं। और फिर इन मुक्ति के उपायों से तुम और और बंधते चले जाओगे। किसी कर्मकांड की आवश्यकता नहीं। जनक तू मुक्त ही है। तू थोड़ी धूल हटा और देख गौर से। और जनक कहते हैं अहो। आश्चर्य। मेरे स्वयं के भीतर परमात्मा था और खोजता था पूछता था पंडितों से शास्त्रार्थ करवाता था कि कुछ भनक लगे उस ईश्वर की और ये क्या आश्चर्य किया कि वो प्यारा मुझमे ही मिला। यही है सतगुरु की महिमा। भीतर तुम सोय पड़े हो जन्मों जन्मों सतगुरु तुमको जगाता है। ऊर्जा का धक्का और तुमको प्रभु के दर्शन करवा देता है जैसे कृष्ण ने अर्जुन को परमात्मा के दर्शन करवाये जैसे रामकृष्ण परमहँस को तोतापुरी महाराज ने सत्य के द्वार पर खड़ा कर दिया। जो सतगुरु स्वयं प्रकाशित हो उसको तुम्हे प्रकाशित करने में कितना समय लगेगा? एक दिया दूसरे दिये को जला देता है ठीक वैसे ही सतगुरु अपने प्रकाश से शिष्य को प्रकाशित कर सकता है। मगर इसके लिए शिष्य को योग्य होना होगा। शिष्य को गुरु के प्रति समर्पित होना होगा। गुरु कहता है जिसने सूरज चाँद तारों को बनाया जिसने दिन और रात बनाये जिसने हृदय में धड़कन दी और स्वासों को क्रमबद्ध किया वही अब सम्हालेगा छोड़ दो खुद को उसके हाथ में और मुक्त हो जाओ। यहाँ एक बात समझने की है कि कुछ अपवाद भी रहे जिन्होंने कहा हमारे जीवन में कोई प्रत्यक्ष गुरु नहीं था पर हाँ उन्होंने भी स्वीकार किया है कि कोई अप्रत्यक्ष शक्ति ने सहियोग किया था। ये वो शक्तियाँ हैं जो कई कई जन्मों में तुमको सतगुरू रूप में मिली होंगी। भले अंतिम जन्म में सतगुरु किसी कारण प्रत्यक्ष ना हो सका मगर अप्रत्यक्ष रूप से सहियोगी रहा।

हम यह समझते हैं यह तो उन गहरे सन्तों के भाव है आज भी हम भगवान को भजते है तब भगवान गुरु रूप में हमारे पास हमारे साथ साथ हर क्षण रहते हैं। भगवान को दिन रात कार्य करते हुए चलते हुए सोते हुए सोच कर देखो भगवान आपके साथ हैं। भगवान कहते हैं तु दिल देकर तो देख तुझे दिलदार मै बना दुंगा। तु आखों में बिठाएगा तेरे नैन बन जाऊंगा भगवान की भक्ति मे भगवान के भाव ही भाव है भक्त स्वयं है ही नहीं सब कुछ प्रभु प्राण नाथ है जय श्री राम अनीता गर्ग

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One Response

  1. It’s hard to find educated people on this topic, but you seem like you know what you’re talking about! Thanks

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