श्रीचैतन्य महाप्रभु जी का स्पर्श पाते ही पद्मा नदी में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं।

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बात उन दिनों की है जब यशोदा-नन्दन भगवान श्रीकृष्ण, श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के रूप में पृथ्वी पर आये हुये थे। उनके साथ उनके बड़े भाई श्रीनित्यानन्द प्रभु (श्रीबलराम) भी थे।
एक बार बंगाल के पास कानाई नाटशाला गाँव में आप अपने भक्तों के साथ हरिनाम संकीर्तन कर रहे थे। अचानक आप ‘नरोत्त्म’ ‘नरोत्तम’ बोलने लगे। सभी भक्ति हैरानी से सोचने लगे की यह किसका नाम है क्योंकि उनमें से किसी का नाम भी नरोत्तम नहीं था। तब श्रीनित्यानन्द प्रभुजी ने आपसे इस बारे में पूछ ही लिया।
जवाब में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी बोले — जब हम नवद्वीप (बंगाल) से पुरी जा रहे थे, उस समय संकीर्तन करते-करते आपके अन्दर जो प्रेम उमड़ा था और उस समय जो आपने कृष्ण-प्रेम-भाव में डूब कर जो प्रेमाश्रू बहाये थे…। मैंने आपके उस दिव्य प्रेम को सरंक्षित करके रख लिया था। वो जो ‘प्रेम’ है, मैं पद्मा नदी को दूँगा ताकि जब नरोत्त्म आये तो वो उसको दे दे।
सर्वशक्तिमान भगवान के लिये सब कुछ सम्भव है।
सभी भक्त भगवान की इस अद्भुत लीला को देखने के लिये श्रीमहाप्रभुजी के साथ-साथ चल दिये। वहाँ से सब कुतुबपुर गये और वहाँ पर पद्मा नदी में सबने स्नान किया। कुछ देर श्रीहरिनाम संकीर्तन करने के बाद, श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने पद्मा नदी की ओर मुख कर कहा — लो ये प्रेम ले लो, इसे छिपा कर रखना तथा नरोत्तम के आने पर उसको दे देना।
सबके देखते ही देखते, पद्मा नदी देवी के रूप में प्रकट हो गयीं व भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी को प्रणाम कर बोली – आपकी आज्ञा शोरिधार्य। मैं अवश्य ही यह प्रेम नरोत्तम को दे दूँगी। लेकिन मैं कैसे समझूँगी की नरोत्तम आया है?
श्रीमहाप्रभु — जिसके स्पर्श से तुम्हारे ऊँची-ऊँची उछाल वाली लहरें उठने लगें, तो समझ लेना कि नरोत्तम आया है।
इतना सुनकर पद्मा नदी देवी, श्रीमहाप्रभु को प्रणाम कर अदृश्य हो गयीं।
जिस स्थान पर यह लीला (घटना) हुई, वह स्थान ‘प्रेमतली’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
जब श्रीनरोत्तम ठाकुर जी की आयु 12 वर्ष की थी, तब श्रीनित्यानन्द प्रभुजी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिये व पद्मा नदी से प्रेम प्राप्त करने के लिये कहा।
स्वप्न में आदेश पाकर श्री नरोत्तम ठाकुर एक दिन अकेले ही पद्मा नदी के किनारे गये। आपके स्नान करने से पद्मा नदी में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं।
तब श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की बात याद कर पद्मा नदी वहाँ प्रकट हो गयीं व नरोत्तम ठाकुर को वो प्रेम दे दिया। जैसे ही नरोत्तम ठाकुरजी का उस प्रेम
से स्पर्श हुआ, आपका रंग रूप सब बदल गया। आप में भगवान श्रीकृष्ण के लिये अद्भुत प्रेम के विकार प्रकट होने लगे।
उसके बाद, आप श्रीचैतन्य – श्रीनित्यानन्द जी के प्रेम की मदिरा पान कर, कृष्ण-प्रेम में बहते हुये, वृन्दावन धाम की ओर चल दिये।

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