निधियों की निधि प्रियाजु

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श्री कृष्णप्राणेश्वरी श्री किशोरी जु माधुर्य सार सर्वस्व की अधिष्ठात्री है । अर्थात माधुर्य जो भी है वह उनकी कृपा है ।
प्यारी जु लोकोत्तर प्रेमविलास वैभव की निधि है ।
नवल किशोरी जु कैशोर शोभा की निधि है ।
वेदग्धपूर्ण मधुर अंग भंगिमा की निधि है ।
लावण्य-सम्पदा की निधि है ।
कन्दर्प लीला की निधि है ।
सौन्दर्य सुधा की अनुपम निधि है ।
और
प्यारे मधुपति(माधव जु) परमानंदकंद नन्दकिशोर की सर्वस्व निधि है ।
लावण्य सार , रस सार , सुख सार , करुणा सार , मधुर छवि रूप का सार , वेदग्धी का सार , रति केलि विलास का सहज सार … सार रूप का सार है श्री प्यारी जु ।
श्री प्यारी जु सुख तरंगिनि है , श्याम रँग रँगिनी है , श्यामामृत महासिंधु से संगम के लिये तीव्र वेगिनी है ।
निर्मल भक्तों के हृदय में सत्प्रेम सिंधु मधुधारा को स्फुरित प्रस्फुरित करती है … प्यारी जु ।
और क्या क्या कहे , क्या क्या शेष रखें … इनके चरणारविन्द ही श्री गोविन्द के जीवन धन सर्वस्व है ।
श्री गोविन्द के हृदय की गोपन निधि किशोरी पद नख प्रभा है । हमारी प्यारी जु मदनमोहन रसराज कुँजबिहारी जु की अनादि संगिनी स्वात्मरूपा ही है ।
अनुराग की ओस भी हम जीवों में नहीँ … अनुराग का गाढ़ रस सार सरोवर हो उसमें भी उसके भी असौंदर्य को तज , सौन्दर्य को प्रकाशित कर सरोज प्रकट हो ऐसे मधुर सानन्द सुधा मकरन्द को रस सिंचन करने की मूल निधि है , जिनकी अंग-प्रत्यंग की छटा रूप लावण्य सुधा निधि से सर्वभुवन मोहन मोहित हो चुके है । .

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