मकर संक्रांति पर गंगा सागर तीर्थ का महत्व, और मान्यताएं

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सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 15 जनवरी दिन रविवार को है। मकर संक्रांति पर गंगा सागर में स्नान करने का विशेष महत्व है। यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है।

मकर संक्रांति पर गंगा सागर की तीर्थयात्रा और स्नान करने का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में गंगासागर को मोक्ष धाम भी बताया गया है। मकर संक्रांति के मौके पर लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और मोक्ष की कामना करते हुए सागर संगम में पुण्य स्नान करते हैं। मकर संक्रांति पर गंगा-यमुना के तटों पर मेले लगते हैं। देश का प्रसिद्ध गंगा सागर मेला भी मकर संक्रांति पर आयोजित किया जाता है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और स्नान, जप-तप, दान पुण्य के कार्य, तर्पण आदि करते हैं। गंगा सागर को महातीर्थ का दर्जा प्राप्त है। आइए मकर संक्रांति के मौके पर जानते हैं गंगा सागर का क्या महत्व है और इसे क्यों कहते हैं सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार।
गंगा सागर स्नान का महत्व

मकर संक्रांति के मौके पर गंगा सागर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति पर गंगा सागर में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही यहां हर मकर संक्रांति पर स्नान करने से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। गंगासागर में स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता है और श्रद्धालु समुद्र को नारियल और पूजा से संबंधित चीजें भेंट करते हैं। मान्यता है कि मकर संक्रांति पर स्नान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। गंगा सागर का मेला हुगली नदी के तट पर लगता है, यह वही जगह है, जहां गंगा बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। जहां गंगा और सागर का मिलन होता है, उस स्थान को गंगा सागर कहा जाता है।

मकर संक्रांति पर क्यों लगता है गंगासागर मेला

मकर संक्रांति पर गंगा सागर में स्नान का पौराणिक महत्व है। कथा के अनुसार, जब माता गंगा भगवान शिव की जटा से निकलकर पृथ्वी पर पहुंची थीं तब वह भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई थीं, वह दिन संक्रांति का दिन था। मां गंगा के पावन जल से राजा सागर के साठ हजार शापग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था। इस घटना की याद में तीर्थ गंगा सागर का नाम प्रसिद्ध हुआ था। यहां हर साल मकर संक्रांति के मौके पर गंगा सागर में मेले का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस शुभ दिन पर स्नान करने से 100 अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

क्यों कहते हैं सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार

भारत के सभी तीर्थ स्थलों में गंगासागर को महातीर्थ माना जाता है। ‘सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार’ इस कहावत के पीछे मान्यता है कि जो पुण्य फल की प्राप्ति किसी श्रद्धालु को जप-तप, तीर्थ यात्रा, धार्मिक कार्य आदि करने पर मिलता है, वह उसे केवल एक बार गंगा सागर की तीर्थयात्रा करने और स्नान करने से मिल जाता है। पहले गंगा सागर जाना हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता था क्योंकि आज की तरफ पहले इतनी सुविधाएं नही थीं। इसलिए बहुत कम लोग गंगा सागर पहुंच पाते थे। तभी कहा जाता था कि सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार। पहले यहां केवल जल मार्ग से ही पहुंचा जा सकता था लेकिन अब आधुनिक परिवहन से यहां पहुंच पाना बहुत सरल हो गया है। गंगा सागर में लगने वाला मेला 8 जनवरी से शुरू होता है और 16 जनवरी तक चलता है।

गंगा सागर को लेकर पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, गंगासागर के समीप कपिल मुनि आश्रम बनाकर तपस्या करते थे। कपिल मुनि के भगवान विष्णु का अंश भी माना जाता है। कपिल मुनि के समय राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया और इंद्र देव ने एक अश्व को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। अश्वमेघ यज्ञ का अश्व चोरी हो जाने पर राजा ने अपने 60 हजार पुत्रों को उसकी खोज में लगा दिया। वे सभी खोजते-खोजते कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुंचे और मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया। राजा सगर ने मुनि से पुत्रों के लिए क्षमा मांगी। कपिल मुनि ने कहा कि सभी पुत्रों को मोक्ष के लिए अब बस एक ही मार्ग बचा है, तुम स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर लेकर आओ। राजा सगर के पोते राजकुमार अंशुमान ने प्रण लिया कि जब तक मां गंगा पृथ्वी पर नहीं आ जाती, तब तक इस वंश का कोई भी राजा चैन से नहीं बैठेगा। राजकुमार अंशुमान राजा बन गए और फिर उसके बाद राजा भागीरथ आए। राजा भागीरथ की तपस्या मां गंगा प्रसन्न हुईं और मकर संक्रांति के दिन पृथ्वी लोक पर आईं और कपिल मुनि के आश्रम पहुंचीं।

यह वह पवित्र स्थान है जहाँ माँ गंगा भूमि से बहने के बाद महासागर-सागर, बंगाल की खाड़ी में मिलती है। हर साल मकर संक्रांति के दिन, लोग, भक्त पवित्र स्नान के लिए इकट्ठा होते हैं, न कि जीवन की परम संतुष्टि के लिए डुबकी लगाने के लिए। किसी के जीवन में एक पवित्र स्नान आवश्यक है जो कि पारंपरिक भावना है जिसे हम संप्रेषित करते रहते हैं।

भक्त हर बार और हर दिन स्नान से पहले या बाद में कपिलमुनि की पूजा करने से कभी नहीं चूकते। कड़कड़ाती ठंड के साथ भक्ति और प्रेम साथ-साथ चलते हैं।

एक कहावत है कि कई बार अन्य पवित्र स्थानों पर जाते हैं, लेकिन इस पवित्र संगम में जाना और स्नान करना नहीं भूलना चाहिए, जहां जीवन में एक बार गंगा नदी समुद्र से मिलती है। भक्ति लोगों को कड़ाके की ठंड से लड़ाती है और उन्हें इस ठंडे गंगा सागर के पवित्र जल में स्नान करने के लिए शक्तिशाली बनाती है।

पूजा करो और अपनी इच्छा पूरी करो।

भक्त अपने देवता मां गंगा, विशाल समुद्र या सूर्य देव की पूजा करने के लिए स्वतंत्र और खुश हैं। संतुष्टि के साथ सूर्योदय और सूर्यास्त के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लें। जीवन में सभी को खुश रहने के लिए संतुष्टि सबसे आवश्यक घटक है। मकर संक्रांति के दिन और उसके बाद गंगा सागर की तीर्थ यात्रा का अंतिम परिणाम।

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