राधे को उपहार
“अब मै अपनी आँखें खोलूं …कान्हा जी???…मै यहाँ पेड़ के पीछे और देर खड़ी नहीं रह सकती…” श्रीराधे बरगद
“अब मै अपनी आँखें खोलूं …कान्हा जी???…मै यहाँ पेड़ के पीछे और देर खड़ी नहीं रह सकती…” श्रीराधे बरगद
. “.प्रेम की प्रकाष्ठा” दिव्य अलौकिक, अनन्य, अनन्त,आत्मा और परमात्मा का मिलन है। श्री श्यामा श्याम आठों पहर एक दुसरे
जय श्री राधे कृष्ण राधे राधे ये परमात्मा ने मुझ पर कृपा की है। मुझे दो तीन दिन से राधे
कहा जाता है निधिवन के सारी लताये गोपियाँ है जो एक दूसरे कि बाहों में बाहें डाले खड़ी है जब
रमा नाम की एक स्त्री थी जो किसी गांव में रहती थी…5-6 बरस उसकी शादी को हो गए थे लेकिन
एक बार व्यक्ति अपनी समस्या लेकर पास के ही एक संत के पास जाता है, और संत से कहते है,
एक दिन राधिका रानी गहवरवन में खेल रहीं थीं और श्रीकृष्ण उनको ढूंढ़ते-ढूंढ़ते नन्दगांव से चले । जब यहां पहुंचते
एक बार प्रेम से कह दो श्री राधे एक संत थे वृन्दावन में रहा करते थे, श्रीमद्भागवत में बड़ी निष्ठा
विश्यामा संग सभी की राधा सच्चिदानंद श्रीकृष्ण की तीनप्रमुख अलौकिक शक्तियाँ,सद से रुक्मणी जीचिद से कालिन्दी (यमुना) जी औरआनंद से
राधा जी के जन्म की सबसे लोकप्रिय कथा यह है कि वृषभानु जी को रावल में एक सुंदर शीतल सरोवर