ऋषि दुर्वासा श्री राधारानी को आशीर्वाद देते हैं- “बेटी आज से तुम ‘अमृतहस्ता’
एक बार ऋषि दुर्वासा बरसाने आये। श्री राधारानी अपनी सखियों संग बाल क्रीड़ा में मग्न थी। छोटे छोटे बर्तनों में
एक बार ऋषि दुर्वासा बरसाने आये। श्री राधारानी अपनी सखियों संग बाल क्रीड़ा में मग्न थी। छोटे छोटे बर्तनों में
राधे मंजूर हैं खामोशियाँ आपकी,इक नजर देख लूँ बस”चले आइये”। दिन तो कटता नहीं रात बाकी अभी,इक झलक राधे देख
गीताप्रेस गोरखपुर में पूज्य श्रीहरि बाबा महाराज की एक डायरी रखी है उसमें बाबा के द्वारा हस्तलिखित लेख
प्रेमैव गोपरामाणां काम इत्यगमत्प्रथाम |गोपियों का काम-काम नहीं था | उसका नाम काम था, पर वहाँ काम-गन्ध-लेश भी नहीं है
.एक बार श्री कृष्ण दास के मन में इच्छा जागी कि वे निकुंज में “श्री राधा” एवं “श्री राधा रमण”
मैं दासी अपनी राधा कीकरत खवासी जो रुचि पावत ।सूधे वचन न बोलत सपनेहुहरिहू को अँगुठा दिखरावत ॥ब्रह्मानंद मगन सुख
जय श्रीकृष्ण ये वृन्दावन परिक्रमा मार्ग में ठाकुर जी का लीला स्थान है lअगर आप विशुद्ध भाव के साथ यहां
अपनी माता कीर्ति जी से सखियों-संग खेलने का बहाना कर, श्री राधा जी श्री कृष्ण से मिलने उनके घर पहुँच
इक दिन जब मोहन नेराधा जी के कहने परदूध दुहा थाऔर राधा जी ने जाने काउपक्रम किया थातब मोहन ने
बरसने में रहने से राधे राधे केहने सेतेरी पल में मुक्ति हे जायेगी, वेदो का सार है राधे मोहन