स्वंयभू श्री राधारमण
स्वंयभू का मतलब होता है स्वंय से प्रकट हमारे श्री राधारमण देव जु स्वंय से प्रकट है इसलिये ये किसी
स्वंयभू का मतलब होता है स्वंय से प्रकट हमारे श्री राधारमण देव जु स्वंय से प्रकट है इसलिये ये किसी
राधाजी और श्रीकृष्ण का प्रेम अलौकिक था। राधा कृष्ण के प्रेम को सांसारिक दृष्टि से देखेंगे तो समझ ही नहीं
बाहर बारिश हो रही थी और अन्दर क्लास चल रही थी, तभी टीचर ने बच्चों से पूछा कि अगर तुम
जब महर्षि वेदव्यास महाभारत लिखने के लिए बैठे, तो उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके मुख से
‘सखियों, कल चलोगी गोरस बेचने ?’– ललिता जीजी ने पूछा।हम सब जल भरने आयी थी। उधरसे बरसाने की सखियाँ भी
गतांक से आगे – श्रीचक्रपाणि शरण जी ने चार मन्त्रराज श्रीगोपालमन्त्र के अनुष्ठान किये …इसके बाद तो इनके सामने कई
आज का आध्यात्मिक विचार हे मुरलीधर श्याम सलोने…. कितने आकर्षक लगते हो…. मोर मुकुट पिताम्बर धारी म मेरे प्यारे कृष्ण
एक नगर का राजा, जिसे ईश्वर ने सब कुछ दिया, एक समृद्ध राज्य, सुशील और गुणवती पत्नी, संस्कारी सन्तान सब
श्री कुंज बिहारी श्री हरि दासश्री राधा रमण जी की महिमाहरीराम बनारस में गुलाब की पत्तियों को पीसकर गुलकंद बनाने
माता पार्वती भगवान शंकर से पूछती हैं- प्रभु जे मुनि परमारथबादी।कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी।। सेस सारदा बेद पुराना।सकल करहिं