जीवन को खुलकर जीना

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जीवन बहुत ही अनिश्चित और अनियंत्रित होता है।जीवन की इस लंबी पारी में न जाने कौन कौन और किस प्रकार के लोगो से हमे जुड़ना पड़ता है।
अपने जीवन में आने वाले लोग वृक्षों के अवयव जैसे होते हैं।
कोई डाल की तरह होता है,जिसे थोड़ा जोर देने पर टूटने का डर सताता है।कुछ लोग पेड़ के पत्तो की तरह होते है,जो कुछ समय साथ देकर बीच में ही छोड़ जाते है।कुछ लोग कांटो की तरह होते है,जो हमेशा चुभते रहते है।जिनसे जीवन में कुछ पाने की अभिलाषा नही रखी जा सकती।कुछ लोग भगवान के द्वारा हमारी सहायता के रूप में होते है,जो बिल्कुल वृक्ष की जड़ की भांति होते है,प्रत्यक्ष न दिखते हुए भी अंत तक साथ निभाते हैं।
जीवन को खुलकर जीने का एक छोटा-सा नियम है -*
प्रतिदिन कुछ अच्छा किया जाए और प्रतिदिन कुछ बुरा भुला दिया जाए!”*
चलते समय कदमों पर, बोलते समय शब्दों पर, देखते समय दृष्टि पर और सुनते समय वाक्य पर, इन चार बातों पर अगर हम ध्यान दें, तो जीवन में कभी कोई समस्या नहीं उठ खड़ी होगी!
जीवन में एक बात अवश्य सीखने को मिलती है, वह यह कि आधार देने वाले अर्थात सहायता करने वाले,हमारा भला चाहने वाले बहुत थोड़े होते हैं, मगर धक्का मारने वाले या पीछे से भीतर घात करने वाले बहुत लोग मिलते हैं।*
सांस टूटने पर आदमी एक बार ही मरता है, परंतु बहुत करीबी, बहुत नजदीकी व्यक्ति के साथ छोड़ने पर आदमी प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा मरता है।
समझ और शांति यह दोनों बातें मनुष्य की आयु पर नहीं, बल्कि जीवन में आए अनुभवों पर निर्भर करती हैं!
*अंधेरे में छाया, बुढ़ापे में काया और जिसके लिए आदमी अपना सारा जीवन दांव पर लगा देता है, अंत में वह माया भी साथ नहीं देती!जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।

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