Krmyog me bhakti

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परम पिता परमात्मा को प्रणाम है जय श्री राम जय गुरुदेव निष्काम कर्म योग तभी सम्भव है जब कर्म में भक्ती का प्रवेश करते हैं। हम दो पांच मिनट में भगवान नाथ श्री हरी का नाम लेते रहे मेरे प्रभु प्राण नाथ हे राम राम राम राम सांवरे कृष्ण कन्हैया हे दीनानाथ हे दीनदयाल
कर्म से हम सुख प्राप्त करना चाहते हैं सुख प्राप्ति के लिए मन अपनी उधेङ बुन करता है मन एक मिनट भी बैठता नहीं कर्म करते हुए कर्म में भक्ती के प्रवेश होने पर यह मन भगवान की कथा लीला भगवान नाम में लग जाता है भगवान की कथा रस प्रदान करती है मन को हर क्षण रस चाहिए। मन रस की प्राप्ति के सुख की प्राप्ति के साधन बनाता रहता है। भगवान नाम रस से बढ़कर इस जगत में कोई रस बना ही नहीं है । रामनाम महारस की जब मन को  प्राप्ति होने लगती है राम नाम रस मीठा लगने लगता है तब मन प्रभु प्राण नाथ से प्रीत कर लेता है। कर्म कर रहा है भगवान के भाव में लीन हो जाता है। कर्म करने की किरया में पवित्रता आने लगती है।विचार शुद्ध हो जाते हैं। मै कार्य कर रहा हूं का विचार खत्म हो जाता है। भगवान को भज रहा हैं भक्त कहता है मै कर्म को पवित्र भाव से करू मेरे भगवान देख रहे हैं अन्तर्मन से भगवान को नमन और वन्दन कर लेता है कर्म करते हुए मै तु का भेद खत्म हो जाता है निष्काम कर्म योग की उत्पत्ति होती है। समर्पित भाव आ जाता है।कर्म योगी के करम के कर्ता में परमात्मा है कर्म की किरया में परमात्मा है कारक मे भी परमात्मा है। कर्म योगी कर्म करते हुए भी कर्म नहीं करता है क्योंकि वह भगवान के चिन्तन मनन कर रहा है। कर्म योगी की कर्म इन्द्रियों का ज्ञान इन्द्रियों से मेल हो जाता है

कर्म भक्ती हैं। कर्म भगवान से मिलन का मार्ग  है। कर्म करते हुए हम आनंद और त्याग के मार्ग पर आ जाते हैं।कर्म में भगवान छुपे बैठे हैं। कर्मयोग अपने अराध्य से मिलन का मार्ग है। मै रोटी बना रही हूँ अन्तर्मन से भगवान की प्रार्थना कर रही हूँ। राम राम राम हे भगवान नाथ, हे जीवन जगत की ज्योति, हे प्रभु प्राण नाथ तुम मेरे स्वामी भगवान नाथ हो भगवान से कहती हूं भगवान देख तु चकले बेलन में बैठा है वैसे ही तु  हृदय में बैठा है। हे प्रभु प्राण नाथ तुम हृदय में बैठकर सबकुछ करते हो और निमित मुझे बनाते हो तभी तो तुम मुझे बाहर और भीतर अह्सास कराते हो राम राम राम राम
हम बैठ कर पुजा करते हैं तब मन इधर-उधर जा सकता है। लेकिन कर्म करते हुए भगवान से जुड़ते है तब भाव की उत्पत्ति अपने आप हो जाती है। कर्म करते हुए भगवान दर्शन का अहसास करा जाते हैं कर्म करते हुए हमारा शरीर गोण हो जाता है।मेरे बहन और भाईयों ने जिसने भी भगवान नाम को भजा है। उसके भोजन में भगवान रस भर जाते हैं। भक्त कहता है आज भोजन बहुत ही स्वादिष्ट है।
मेरी कर्म प्रधान भक्ती हैं मैने जो भी भाव शब्द रूप दिया है वह सब भाव कर्म करते हुए ही बने है जय श्री राम राम राम राम मन क्या कर रहा है मै मेरे मन को पवित्र बना लु फिर मै भगवान को भज लुगां में नहीं फसना है। मै भगवान को भजता हूं तब भगवान ही मेरी सार सम्भाल करेंगे। इस मन को पकड़ कर रखना भी भगवान का ही काम है। मेरा काम श्री हरि के साथ सम्बन्ध बनाना है ।श्री हरि के प्रेम में डुब कर भगवान को अनेकों भाव से रिझाते हुए आनंद मगन होना है। अन्य सब की चिंता भगवान को सोंपते हुए हर परिस्थिति में आन्नद मगन होना है।जय श्री राम अनीता गर्ग



Karma is devotion. Karma is the path of union with God. While doing action, we come on the path of bliss and renunciation. God is hidden in action. Karmayoga is the path of union with one’s worship. I am making bread and I am praying to God from my heart. Ram Ram Ram, O Lord Nath, O light of the world of life, O Lord Pran Nath, you are my lord, Lord Nath, I say to God, seeing God, you are sitting in a rolling cylinder, in the same way you are sitting in your heart. O Lord Pran Nath, you do everything sitting in the heart and make me a cause, only then you make me feel inside and out Ram Ram Ram Ram When we sit and do puja, then the mind can move here and there. But when we connect with God while doing karma, then the feeling is generated automatically. While doing karma, we are made to realize God’s vision. While doing karma, our body becomes dead. My sisters and brothers have worshiped the name of God. God’s juice is filled in his food. The devotee says today the food is very tasty. My karma is the main devotion, whatever emotion I have given in words, all those expressions are made only by doing deeds, Jai Shri Ram Ram Ram Ram What is the mind doing, I should make my mind pure, then I don’t want to get caught in the worship of God. . I worship God, then only God will take care of my essence. It is also the job of God to hold this mind. My job is to have a relationship with Shri Hari. Immersed in the love of Shri Hari, I have to be happy while wooing the Lord with many expressions. The concern of all others is to be happy in every situation while entrusting it to God.Jai Shri Ram Anita Garg

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