प्रभु संकीर्तन 9

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*अपने हृदयको सदा टटोलते रहना ही साधक का कर्त्तव्य है।
ताकि उसमें घृणा, द्वेष, हिंसा, वैर, मान-अहंकार ,
कामना आदि,अपना डेरा न जमा लें ।

*भगवान् का स्मरण करो;
उनके सामने कातरभाव से रोओ, प्रार्थना करो – ‘भगवन ! मैंने हजारों अपराध किये हैं और अब भी कर रहा हूँ |

*हे मधुसूदन ! मुझे अपना समझकर मेरे अपराधों को क्षमा करो |
हे प्रभो ! मैं तो भव- सागर में डूबा जा रहा हूँ भटक रहा हूँ .

हे नाथ– त्राहि माम्, त्राहि माम् ।

  • अभिमान छोड़कर जो सच्ची प्रार्थना करता है, उसकी प्रार्थना भगवान् उसी क्षण सुनते हैं *।

🙏🌹!!हरिः शरणम् हरिः शरणम् हरिः शरणम् !!🌹🙏

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