धर्म रथ 1

trees autumn woods

भगवान राम ने विभीषण जी का संशय दूर करने के लिए पूरे धर्म रथ का सन्तो ने किस प्रकार से गूढ़ चिन्तन करके हम सभी जीवों का मार्गदर्शन किया उस गूढ़ चिन्तन में धर्म रथ के अब प्रवेश करते है सर्वप्रथम इस धर्म रथ का आधार क्या है अर्थात ये कौन से पहियों पर खड़ा रहता है। तो राम जी कहते हैं
*सौरज , धीरज जेहि रथ चाका*
यह धर्म का रथ जिन दो पहियों पर खड़ा होता है वे दो पहिये कहिये या दो गुण कहिये।  प्रथम सौरज अर्थात शौर्य दूसरा धीरज अर्थात धैर्य  शौर्य और धैर्य इन दो पहियों पर धर्म रथ अविचल खड़ा रहता है शर्त है कि दोनों पहिये समान होने चाहिए और सम्यक में चाहिए

बिल्कुल एक जैसे टूटे टाटे नही चाहिए पंचर वाले नही चाहिए तब यह धर्म रथ अविचल खड़ा रहता है शौर्य मन का लक्षण है और धैर्य बुद्धि का लक्षण है मन और बुद्धि जब समान रूप से सम्यक में समता से कार्य करते है तब घटना घटित होती है सीधे सरल शब्दों में कहें तो जोश लेकिन होश के साथ चाहिए बिना होश के जोश व्यर्थ है।

जोश अर्थात शौर्य होश अर्थात बुद्धि कई बार बुद्धि समझौता कर लेती है लेकिन मन नही मानता।ऐसे ही कई बार मन कहता है कर लो कर लो कोई फर्क नही पड़ता भटकाता है लेकिन बुद्धि सावधान करती है नही करना पकड़े गए तो बदनामी होगी इसलिए मन और बुद्धि जोश के साथ होश भी चाहिए।

कुछ लोगो मे जोश तो बहुत होता है लेकिन होश नहीं होता अर्थात शोर्यवान तो बहुत होते है लेकिन समझ नही होती उनमें बुद्धि नहीं होती। क्योंकि खाली शौर्य अहंकार लाता है चंचल मन हो जाता है जैसे रावण

रावण में शौर्य बहुत था लेकिन बुद्धि नही थी समझ नही थी यद्यपि उसके दस सर थे यानी कि उसके भीतर सामान्य मनुष्य से 10 गुनी अधिक बौद्धिक क्षमता तो थी लेकिन 5 इधर 5 उधर। दस सर ऐसे ही होते है न रावण के अर्थात भाइयो को भी ज्ञान देना बेटों को भी ज्ञान देना समाज को भी भाषण देना लेकिन स्वयम गड्ढ़े में गिरे रहना ऐसा शौर्यवान दो कौड़ी का होता है।

क्योंकि शोर्यवान की वास्तविक परिभाषा है *स्वभाव विजयं शोर्यम* अर्थात अपने भीतर इतनी समझ होना कि यह बल शक्ति मुझे कहा लगानी है धैर्यपूर्वक चिन्तन करके तब शौर्य का उपयोग करना। लेकिन रावण क्या करता था कभी बुद्धि अपने को देखने में या स्वयं को समझाने में लगाता ही नही था परिणाम खाली शौर्य के अहंकार में जब चाहे गदा उठाकर लड़ने पहुँच जाता जिस किसी से भी गोस्वामी जी ने लिखा है *आपुन उठि धावे रह नही पावे जनु घालही खीसा* जब मर्जी देवलोको में पहुँच जाता कहता मुझसे लड़ो क्योंकि खाली शौर्य ही शौर्य था उसमें।

ऐसे ही कुछ लोग होते है न बेचैन रहेंगे कुछ न कुछ करना उन्हें व्यर्थ बोलना ही व्यर्थ लड़ना ही ये रावणी प्रवर्ति है खाली बल ही बल का उपयोग करते हैं ऐसे लोग बुद्धि का नहीं। लेकिन धर्म रथ के लिए कहा ये दोनों पहिये सम्यक में चाहिए इसी प्रकार से कुछ लोग ऐसे होते हैं बैठे बैठे ही बुद्धि से काम लेते रहते हैं ये इतना ऐसे होगा वो वैसे होगा माने बुद्धि का उपयोग तो करते हैं और दूसरो को आज्ञा भी खूब करते हैं

अपने बल से कुछ नही करते ये भी ठीक नहीं मन से पुरुषार्थ बुद्धि से विचार करते हुए करना इसे कहा शौर्य और धैर्य के दोनो पहिये सम्यक में चलें जोश के साथ पूरा होश चाहिए। ऐसे महापुरुष श्री हनुमानजी महाराज है जो शौर्य और धैर्य दोनो पहियों को बड़ी सुगमता से चलाते हैं उनके जैसा कोई नहीं उन्ही से शिक्षा लेनी चाहिए इस विषय पर कि कब बल दिखाना कब बुद्धि का सदुपयोग करना इसलिए हनुमानजी महावीर है जो दूसरे को जीते वो वीर जो अपने स्वभाव को जीत ले वो महावीर जो दूसरे के अहम को तोड़ दे वो वीर जो अपने अभिमान को छोड़ दे वो महावीर

ऐसे श्री हनुमानजी महाराज हैं इसलिए आज तक उन्हें कभी पराजय का मुख नही देखना पड़ा न ही कभी वे असफल हुए न ही कभी निराश हुए असम्भव नामक शब्द हनुमानजी की डिक्शनरी में है ही नहीं।

क्योंकि हनुमानजी का धर्म रथ जिन दो पहियों पर खड़ा है शौर्य एवं धैर्य एक दम समता में स्वस्थ और सम्यक में काम करते हैं न मन चंचल न बुद्धि विचलित है हनुमानजी की। हनुमानजी पहलवानों के भी आदर्श माने जाते हैं लेकिन ये बड़े अचंभे की बात है कि अधिकांश पहलवान बुद्धिमान नही होते। क्योंकि केवल बल ही बल शौर्य ही शौर्य भरा रहता है उनमें और उसी के अभिमान में चूर रहते हैं

इसलिए हनुमानजी के बल के स्वरूप के साथ साथ उनकी बुद्धिमत्ता के स्वरूप की भी आराधना करनी चाहिए तभी शौर्य और धैर्य दोनो पहिये सम्यक में होंगे जीवन रथ के, धर्म रथ के पहिये है। जय श्री राम

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