मूर्तिकार और पत्थर

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एक बार मूर्तिकार नवीन एक पत्थर को छेनी और हथौड़ी से काट कर मूर्ति का रूप दे रहा था. जब पत्थर काटा जा रहा था, तो उसको बहुत दर्द हो रहा था।

कुछ देर तो पत्थर ने बर्दाश्त किया पर जल्द ही उसका धैर्य जवाब दे गया।

वह नाराज़ होते हुए बोला, ” बस ! अब और नहीं सहा जाता. छोड़ दो मुझे मैं तुम्हारे वार को अब और नहीं सह सकता… चले जाओ यहाँ से!”

मूर्तिकार ने समझाया, “अधीर मत हो! मैं तुम्हे भगवान् की मूरत के रूप में तराश रहा हूँ. अगर तुम कुछ दिनों का दर्द बर्दाश्त कर लोगे तो जीवन भर लोग तुम्हे पूजेंगे… दूर-दूर से लोग तुम्हारे दर्शन करने आयेंगे. दिन-रात पुजारी तुम्हारी देख-भाल में लगे रहेंगे.”

और ऐसा कह कर उसने अपने औजार उठाये ही थे कि पत्थर क्रोधित होते हुए बोला, “मुझे मेरी ज़िन्दगी खुद जीने दो… मैं जानता हूँ मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा… मैं आराम से यहाँ पड़ा हूँ…चले जाओ मैं अब जरा सी भी तकलीफ नहीं सह सकता!”

मैं जानता हूँ तुम्हे दर्द बहुत हो रहा है…पर अगर आज तुम अपना आराम देखोगे तो कल को पछताओगे… मैं तुम्हारे गुणों को देख सकता हूँ तुम्हारे अन्दर आपार संभावनाएं हैं… यूँ यहाँ पड़े-पड़े अपना जीवन बर्बाद मत करो! मूर्तिकार ने समझाया।

पर पत्थर पर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ, वह अपनी बात पर ही अड़ा रहा।

मूर्तिकार पत्थर को वहीँ छोड़ आगे बढ़ गया।

सामने ही उसे एक दूसरा अच्छा पत्थर दिख गया. उसने उसे उठाया और उसकी मूर्ति बना दी।

दूसरे पत्थर ने दर्द बर्दाश्त कर लिया और वो भागवान की मूर्ति बन गया, लोग रोज उसे फूल-माला चढाने लगे, दूर-दूर से लोग उसके दर्शन करने आने लगे।

फिर एक दिन एक और पत्थर उस मंदिर में लाया गया और उसे एक कोने में रख दिया गया. उसे नारियल फोड़ने के लिए इस्तमाल किया जाने लगा। वह कोई और नहीं बल्कि वही पत्थर था जिसने मूर्तिकार को उसे छूने से मना कर दिया था।

अब वह मन ही मन पछता रहा था कि काश उसने उसी वक्त दर्द सह लिया होता तो आज समाज में उसकी भी पूछ होती… सम्मान होता… कुछ दिनों की वह पीड़ा इस जीवन भर के कष्ट से बचा लेती!

शिक्षा

दोस्तों, हमारे लिए निर्णय लेने का ये सही समय है कि हम आज दर्द बर्दाश्त करना है या अभी मौज-मस्ती करनी है और फिर जीवन भर का दर्द झेलना है. आज आप जिस किसी competitive exam की तैयारी कर रहे हों… जो भी skill acquire करने की कोशिश कर रहे हों…जिस किसी खेल में excel करने का प्रयास कर रहे हों…उसमे अपना 100% effort लगाइए… होने दीजिये अपने ऊपर तकलीफों के वार…हार मत मानिए… उस दूसरे पत्थर की तरह अभी सह लीजिये और अपने लक्ष्य को प्राप्त करिए ताकि पहले पत्थर की तरह आपको जीवन भर कष्ट ना सहना पड़े।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

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