सफलता का मंत्र

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एक दस साल का लड़का गिरिश गर्मी की छुट्टियों में अपने दादा जी के पास श्री डल्ला साहिब गाँव घूमने आया। एक दिन वो बड़ा खुश था, उछलते-कूदते वो दादाजी के पास पहुंचा और बड़े गर्व से बोला, ” जब मैं बड़ा होऊंगा तब मैं बहुत सफल आदमी बनूँगा। क्या आप मुझे सफल होने के कुछ टिप्स दे सकते हैं?”*

दादा जी ने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया, और बिना कुछ कहे लड़के का हाथ पकड़ा और उसे करीब की पौधशाला में ले गए। वहां जाकर दादा जी ने दो छोटे-छोटे पौधे खरीदे और घर वापस आ गए।
वापस लौट कर उन्होंने एक पौधा घर के बाहर लगा दिया और एक पौधा गमले में लगा कर घर के अन्दर रख दिया।
“क्या लगता है तुम्हे, इन दोनों पौधों में से भविष्य में कौन सा पौधा अधिक सफल होगा?”, दादा जी ने गिरिश से पूछा।
गिरिश कुछ क्षणों तक सोचता रहा और फिर बोला, ” घर के अन्दर वाला पौधा ज्यादा सफल होगा क्योंकि वो हर एक खतरे से सुरक्षित है जबकि बाहर वाले पौधे को तेज धूप, आंधी-पानी, और जानवरों से भी खतरा है…”
दादाजी बोले, ” चलो देखते हैं आगे क्या होता है !”, और वह अखबार उठा कर पढ़ने लगे।
कुछ दिन बाद छुट्टियाँ ख़त्म हो गयीं और वो लड़का वापस शहर चला गया।
इस बीच दादाजी दोनों पौधों पर बराबर ध्यान देते रहे और समय बीतता गया। ३-४ साल बाद एक बार फिर वो अपने पेरेंट्स के साथ गाँव घूमने आया और अपने दादा जी को देखते ही बोला, “दादा जी, पिछली बार मैं आपसे कामयाब (successful) होने के कुछ टिप्स मांगे थे पर आपने तो कुछ बताया ही नहीं…पर इस बार आपको ज़रूर कुछ बताना होगा।”
दादा जी मुस्कुराये और गिरिश को उस जगह ले गए जहाँ उन्होंने गमले में पौधा लगाया था।
अब वह पौधा एक खूबसूरत पेड़ में बदल चुका था।
गिरिश बोला, ” देखा दादाजी मैंने कहा था न कि ये वाला पौधा ज्यादा सफल होगा…”
“अरे, पहले बाहर वाले पौधे का हाल भी तो देख लो…”, और ये कहते हुए दादाजी गिरिश को बाहर ले गए.
बाहर एक विशाल वृक्ष गर्व से खड़ा था! उसकी शाखाएं दूर तक फैलीं थीं और उसकी छाँव में खड़े राहगीर आराम से बातें कर रहे थे।

“अब बताओ कौन सा पौधा ज्यादा सफल हुआ?”, दादा जी ने पूछा।
“…ब..ब…बाहर वाला!….लेकिन ये कैसे संभव है, बाहर तो उसे न जाने कितने खतरों का सामना करना पड़ा होगा….फिर भी…”, गिरिश आश्चर्य से बोला।
दादा जी मुस्कुराए और बोले, “हाँ, लेकिन चुनौती स्वीकार करने के अपने उपहार भी तो हैं, बाहर वाले पेड़ के पास आज़ादी थी कि वो अपनी जड़े जितनी चाहे उतनी फैला ले, आपनी शाखाओं से आसमान को छू ले…

बेटे, इस बात को याद रखो और तुम जो भी करोगे उसमे सफल होगे- अगर तुम जीवन भर सुरक्षित जीवन पसन्द करते हो तो तुम कभी भी उतना नहीं बढ़ पाओगे जितनी तुम्हारी क्षमता है,

अगर तुम तमाम खतरों के बावजूद इस दुनिया का सामना करने के लिए तैयार रहते हो तो तुम्हारे लिए कोई भी लक्ष्य हासिल करना असम्भव नहीं है!
गिरिश ने लम्बी सांस ली और उस विशाल वृक्ष की तरफ देखने लगा…वो दादा जी की बात समझ चुका था, आज उसे सफलता का एक बहुत बड़ा सबक मिल चुका था!*🌷शिक्षा🌷*

दोस्तों, भगवान् ने हमें एक अर्थ पूर्ण जिंदगी जीने के लिए बनाया है। लेकिन दुर्भाग्य से अधिकतर लोग डर-डर के जीते हैं और कभी भी अपनी पूरी संभावना को महसूस नही कर पाते। इस बेकार के डर को पीछे छोडिये…ज़िन्दगी जीने का असली मज़ा तभी है जब आप वो सब कुछ कर पाएं जो सब कुछ आप कर सकते हैं…वरना दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ तो कोई भी कर लेता है…


इसलिए हर समय सुरक्षित रहने के चक्कर में मत पड़े रहिये…जोखिम उठाइए… खतरा लीजिये और उस विशाल वृक्ष की तरह अपनी जिंदगी को बड़ा बनाइये..!!


🙏🏽🙏🏿🙏🏻 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे🙏🙏🏼🙏🏾

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