( देवर्षि नारद ने जब श्रीराधा के दर्शन किये)
जाने दो ना “वेद” के मार्ग को क्यों बेकार में उस कण्टक पथपर चलना चाहते हो कर्मकाण्ड के नीरस नियम विधि के बन्धनमें बंधना चाहते हो छोडो ना इस “वेणु” के मार्ग का आश्रयक्यों नही लेते राजपथ है तुम्हे कुछ करना भी नही है बस इसमार्ग पर आना है और चलना है बाकी अगर तुम रास्ते भूल भीजाओ तो भी सम्भालनें वाला तुम्हे हर पल हर पग में सम्भालतारहेगा वेद का मार्ग है “ज्ञान” का मार्ग और वेणु का मार्ग है“प्रेम” का मार्ग तो चलो ।
महर्षि शाण्डिल्य भाव से सिक्त है पूरे भींगें हुए हैं और उसी रसमें अपने श्रोता वज्रनाभ को भी भिगो दिया है।
ऐसी दिव्य , ऐसी मधुर कथा आज तक मैने नही सुनी।
सच है महर्षि इस प्रेम को वही पा सकता है जिसके ऊपर आपजैसे प्रेमी महात्माओं कि कृपा हो।
महर्षि शाण्डिल्य ने जब अपने श्रोता वज्रनाभ का पिघला हुआ हृदय देखा तो बड़े आनन्दित हुए।
इस प्रेम की ऊँचाई में जब कोई पहुँचता है तब धर्म भी बाधक हैऔर धर्म को भी त्यागना पड़ता है क्यों की परम धर्म है ये प्रेमजब परम् धर्म की प्राप्ति हो गयी तो फिर क्यों इन संसार केधर्मों में उलझना सब कुछ छूट जाता है इस प्रेम में।
अरे वज्रनाभ तुम स्वयं विचार करो संसार के प्रेम में भी बिनात्याग के साधारण प्रेमी नही मिलता ये तो दिव्य प्रेम की बात होरही है उस प्रेम की चर्चा हो रही है जिसे पानें के लिये शिवसनकादि नारद ब्रह्मा सब ललचा रहे हैं।
महर्षि शाण्डिल्य नें कहा एक दिन गोकुल में श्री बाल कृष्ण के दर्शन करने आये थे देवर्षि नारद जीभक्ति के आचार्य नारद जी।
देवर्षि नारद…
मैं प्रसन्नता से दौड़ पड़ा था उनके स्वागत के लिए।
महर्षि शाण्डिल्य…
मुझे बड़े प्रेम से उन्होंने अपनें हृदय से लगाया था।
मेरी कुटिया में आगये थे उस दिन देवर्षि…
फल फूल और गौ दुग्ध मैने देवर्षि के सामनें रख दिए।
अब कौन तुम्हारे ये फल फूल खायेगा महर्षि जो छक कर आया है माखन खाकर वो भी नीलमणी नन्दनन्दन के हाथो।
मुझे अपनें पास बिठाया देवर्षि नें सुनो इन सब व्यवहार कीआवश्यकता नही हैमैं कुछ कहनें आया हूँ उसे आप सुनिये औरआप मेरे मित्र हैंइसलिये मेरा मार्गदर्शन भी कीजियेगा।
अब आप ये क्या कह रहे हैंमैं भला आपका क्या मार्ग दर्शन करूँगा।आप की गति तो सर्वत्र है आपसे भला कुछ छुपा है क्या?
पर मेरी इन बातों पर देवर्षि नें कुछ ध्यान नही दियावो शान्त रहेफिर गम्भीर होकर बोले एक बात पूछ रहा हूँ मुझे आप ही बतासकते हो देवर्षि नें मेरी ओर देखा।
हाँ हाँ पूछिये मैने उनसे कहा।
मुझे यही कहना है कि जब “श्यामघन” प्रकट हो गए हैं तो“दामिनी” कहाँ हैं ? क्यों की हे महर्षि शाण्डिल्य घन को शोभादामिनी की चमक से ही है ना?
मैं मुस्कुराया आपका अनुमान बिलकुल सत्य है देवर्षि जबब्रह्म प्रकट हुआ है तो उसकी आल्हादिनी शक्ति भी प्रकटीहोंगीं ।
तो उनका प्राकट्य कहाँ हुआ है ? महर्षि शाण्डिल्य मैं बहुतबेचैन हूँ मैने बाल कृष्ण के तो दर्शन कर लिए पर उनकीआल्हादिनी शक्ति के दर्शन बिना श्रीकृष्ण दर्शन का कोईविशेष महत्व नही है।
हे वज्रनाभ…
मेरे मित्र देवर्षि नारद नें कृपा कर मुझे एक रहस्य की बातबताई।
हे महर्षियों में श्रेष्ठ शाण्डिल्य मुझे भगवान शंकर नें एक बार येरहस्य बताया था उन्होंने मुझे कहा था ब्रह्म तभी कुछ करसकता है जब उसके साथ शक्ति होती है बिना शक्ति केशक्तिमान कैसा ? इसलिये मात्र श्रीकृष्ण की आराधना तुम्हेकुछ नही देगी कृष्ण के साथ उनकी आल्हादिनी राधा का होनाआवश्यक है।
हे वज्रनाभ मुझे उस समय भगवान शंकर से ही ये युगल मन्त्रप्राप्त हुआ था उस समय माँ पार्वती भी वहीँ थीं तो उन्होंनें भीइस मन्त्र को ग्रहण किया।
सोलह अक्षरों वाला ये युगल मन्त्र बड़ा ही गुप्त है औरप्रेमाभक्ति को पानें वालों के लिये यही एक मार्ग है जो इसमन्त्र का नित्य चलते फिरते सोते जाप करता है वह निकुञ्जका अधिकारी बनता ही है निकुञ्ज में उसका सहज प्रवेश होजाता है।
हे वज्रनाभ देवर्षि ने वह युगल मन्त्र मुझे भी प्रदान किया था।
मैने प्रणाम करते हुये देवर्षि को कहा बरसाने में उनका प्राकट्यहुआ है पास में ही है बाकी , आप जाएँ और दर्शन करें क्यों कीहे देवर्षि मैने सुना है अब कि उनके साथ साथ उनकी जो निजसहचरी थीं उनका भी प्राकट्य हो रहाहै।
देवर्षि आनन्दित होते हुये मुझे बारम्बार अपने हृदय से लगातेहुये गोकुल से बरसानें की ओर चल पड़े थे।
दिव्य महल है बरसाने में बधाई चल रही हैं ग्वाल बाल नाच रहेहैं गा रहे हैं धूम मची है चारों ओर।
देवर्षि भाव में मग्न चल दिय उसी महल की ओर यही महलहोगा अवश्य इसी महल में प्रकटी होंगी पर जैसे ही गए देवर्षि ।
गौर वर्णी एक बालिका का आज ही नाम करण संस्कार हुआ है।
“ललिता” नाम है इनका।
देवर्षि नें हाथ जोड़कर नवजात “ललिता सखी” को नमन किया। ये अष्ट सखियों में प्रमुख सखी हैं श्रीराधा जी की।
जैसे महादेव की कृपा , बिना नन्दी को प्रणाम किये नही पाईजा सकती जैसे भगवान श्रीराम की कृपा बिना हनुमान के नहीपाई जा सकती ऐसे ही श्रीराधा रानी की कृपा भी इन सखियोंकी कृपा बिना नही पाइ जा सकती और समस्त सखियों में येललिता सखी बड़ी हैं देवर्षि नें हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया।
पर श्रीराधा के दर्शन कब होंगें ? और वो कहाँ हैं?
बरसाने के हर भवन में देवर्षि देखते जा रहे हैं हे वज्रनाभ जब सेश्रीराधा रानी का प्राकट्य हुआ है इस बरसानें में सब के भवनमहल सदृश ही लगते हैं।
और बरसाने के अधिपति बृषभान जी नें सबके भवनों में हीरेऔर पन्नें जड़वा दिए हैं हँसे महर्षि शाण्डिल्य वज्रनाभ परउनकी लाली श्रीराधा को ये हीरे और मणियाँ प्रिय नही हैं उन्हेंतो मोर , तोता, हिरण घनें वृक्ष पुष्प हरियाली ये सब प्रिय हैइसलिये स्वयं के महल में प्राकृतिक वस्तुओं का ही संग्रहकिया था बृषभान जी ने।
ये महल है बृषभान जी का जो इस बरसाने के अधिपति हैं एकसखी ने देवर्षि नारद जी को चलते हुए बता दिया था।
देवर्षि नारद उस महल में गए सामनें से आरहे थे बृषभान जीदेवर्षि को देखा तो तुरन्त दौड़ पड़े देवर्षि के चरणों में गिर गएऔर बड़े आग्रह से भीतर ले गए।
ये है मेरा पुत्र “श्रीदामा“एक सुन्दर बालक नें देवर्षि को प्रणामकिया देवर्षि नें देखाऔर बोले – ये तो कृष्ण सखा है कृष्ण काअभिन्न सखा इतना कहकर उठ गए।
क्यों की देवर्षि को लगा इनके पुत्र मात्र हैंजो इन्होनें मुझे बतादिया है पर जिनका मैं दर्शन करनें आया हूँ वो यहाँ भी नही हैं।
देवर्षि वहाँ से जैसे ही चलने लगे।
देवर्षि एक कृपा और करे बृषभान नें चरण पकड़े।
क्या ? क्या चाहते हो आप बृषभान ?
मेरी एक पुत्री है अगर आप उसे भी आशीर्वाद दें तो?
देवर्षि आनन्दित हो उठे उस पुत्री का नाम ?
“श्रीराधा” बृषभान ने कहा ।
पर अपनी प्रसन्नता छुपाई देवर्षि नें कहाँ हैं वो कन्या?
मेरे अन्तःपुर में चलिये आप“बृषभान जी आगे आगे चले औरपीछे उनके देवर्षि नारद जी।
पालनें में एक दिव्य कन्या लेटी हुयी हैंतपते सुवर्ण के समानउनका रँग है केश काले काले बड़े सुन्दर हैं पर आश्चर्य माँगनिकली हुयी है और तो और मस्तक में श्याम बिन्दु लगी हीहुयी है ये जन्मजात है देवर्षि नारद जी बृषभान जी नें कहा ।
मेरी एक प्रार्थना है अगर आप मानें तो ?
देवर्षि ने बृषभान जी से कहा।
आप आज्ञा करें….
बस कुछ घड़ी के लिये मुझे एकान्त चाहिये आप अगर….
देवर्षि ने ये बात प्रार्थना की मुद्रा में कही थी।
हाँ हाँ मैं बाहर खड़ा हो जाता हूँपर मुझे बताइयेगा कि मेरी पुत्रीका भविष्य कैसा होगा ये कहते हुये बाहर चले गए बृषभान जी।
श्रीराधा रानी के पास आये नारद जी हाथ जोड़कर जैसे हीवन्दन किया बस देखते ही देखते मुस्कुराईं श्रीराधा।
उनके मुस्कुराते ही दिव्य निकुञ्ज वहाँ प्रकट हो गया एक दिव्यसिंहासन है उस सिंहासन में वृन्दावनेश्वरी श्रीराधा रानीविराजमान हैं उनके अंग से प्रकाश निकल रहा है उनके पायलकी ध्वनि से ओंकार नाद प्रकट हो रहा है।
देवर्षि ने देखा धीरे धीरे लक्ष्मी , सरस्वती, महाकाली इत्यादिअनेकानेक देवियां चँवर लेकर ढुरा रही हैं।
फिर मुस्कुराईं श्रीराधा रानी इस बार तो श्रीराधा के ही दाहिनेंअंग से श्रीश्याम सुन्दर प्रकट हो गए।
इन दोनों की छबि अद्भुत थी प्रेम नें ही मानों ये रूप धारण करलिया था अद्भुत रूप था।
हे वज्रनाभ देवर्षि नारद जी स्तुति करने लगे….
हे राधे आपही सृष्टि, पालन, संहार करनें वाली हो पर इतना हीनही आप तो अपनें प्रेमास्पद श्रीश्याम सुन्दर को ही आल्हादप्रदान कर स्वयं आल्हादित होती हो आपका अपना कोईसंकल्प नही है आप बस अपनें प्रेमास्पद के सुख के लिये हीसब कुछ करती हैं हे प्रेममयी देवी आपकी जय हो
हे कृष्ण प्रिये आपकी जय हो
हे हरिप्रिये आपकी सदाहीं जय हो
हे श्यामा आपही इस सृष्टि की मूल हैं।
हे प्रेमरस वर्धिनी आपकी जय हो।
हे राधिके आपकी जय, जय, जय हो।
मुस्कुराईं श्रीराधा देवर्षि की स्तुति सुनकर पर ये क्या श्रीराधारानी के मुस्कुराते ही सब कुछ बदल गया न वहाँ निकुञ्ज था, न वहाँ श्याम सुन्दर थे न वहाँ रमा थीं न वहाँ उमा थीं।
एक सुन्दर सा पालना है उस पालने में श्रीराधारानी बाल रूप मेंखेल रही हैं नारद जी नें अपलक नेत्रों से दर्शन किये बारम्बारश्रीराधा रानी के चरणों को अपनें माथे से लगाया और बाहरआगये।
कैसी है मेरी पुत्री ? कैसा उसका भविष्य ? इसका विवाह?
कितने प्रश्न थे एक पिता के और ये प्रश्न पहली बार नही कियाथा आचार्य गर्ग से भी यही प्रश्न करते रहे थे बृषभान जी।
“ये तो नन्दनन्दन की आत्मा हैं“इतना ही बोल पाये थे और चलपड़े इसी युगल मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवर्षि।
राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे
पर हे वज्रनाभ देवर्षि नारद कौतुकी हैं कंस के पास चले गए थे सीधे बरसानें से।
हँसे वज्रनाभ कंस के पास क्यों?
अब इस बात को तो श्रीश्याम सुन्दर ही जानें क्यों की देवर्षिनारद जी उनके “मन” के ही तो अवतार हैं।
क्रमश:
(पूजनीय हरि शरण जी)
(When Devarshi Narad had darshan of Shri Radha)
Let go of the path of “Veda”. Why do you want to walk on that Kantak path in vain? Do you want to be bound by monotonous rules and regulations of rituals? Leave it behind. Why don’t you take shelter of the path of “Venu”. This is the royal path. You don’t even have to do anything, just follow this path. But you have to come and go, but even if you forget the way, the one who takes care of you will keep taking care of you at every moment and every step. The path of Veda is the path of “knowledge” and the path of Venu is the path of “love”, so follow.
Maharishi Shandilya is completely drenched with emotion and has also drenched his listener Vajranabh in the same juice. I have never heard such a divine, such a sweet story till date. It is true, Maharishi, that only one can attain this love who has the blessings of loving Mahatmas like you. When Maharishi Shandilya saw the melted heart of his listener Vajranabh, he was very happy. When one reaches the height of this love, then even religion becomes a hindrance and one has to abandon religion because this love is the ultimate religion. When the ultimate religion is attained then why get entangled in the religions of this world, everything is left behind in this love.
Hey Vajranabh, think for yourself that even in worldly love, one does not find an ordinary lover without sacrifice. This is talking about divine love. We are talking about that love which everyone like Shivsankadi Narad Brahma is tempting to get.
Maharishi Shandilya said that one day Acharya Narad ji of Devarshi Narad Jibhakti had come to Gokul to have darshan of Shri Bal Krishna. Devarshi Narad… I ran happily to welcome him. Maharishi Shandilya… He took me to his heart with great love. Devarshi came to my hut that day… I placed fruits, flowers and cow milk in front of Devarshi.
Now who will eat these fruits and flowers of yours, Maharishi, who has escaped after eating butter, that too at the hands of Neelmani Nandanandan. Devarshi made me sit near her, listen, there is no need for all this behavior, I have come to say something, you listen to it and you are my friend, so please guide me also. Now what are you saying, how can I guide you? Your movement is everywhere, is there anything hidden from you?
But Devarshi did not pay any attention to these things of mine, he remained calm and then said seriously, I am asking you one thing, only you can tell me. Devarshi looked at me. Yes yes ask, I told him. All I have to say is that when “Shyamghan” has appeared then where is “Damini”? Because O Maharishi Shandilya Ghan is blessed with the glow of Shobhadamini, isn’t it? I smiled, your guess is absolutely correct, Devarshi, when Brahma has appeared, then his divine power will also appear.
So where has he appeared? Maharishi Shandilya, I am very restless, I have seen child Krishna but without seeing his divine power, there is no special significance of seeing Shri Krishna. Hey Vajranabh… My friend Devarshi Narad kindly told me a secret.
O Shandilya, the best among the great sages, Lord Shankar had once told me this secret. He had told me that Brahma can do something only when there is power with him. How can one be powerful without power? Therefore mere worship of Shri Krishna will not give you anything, it is necessary to have his goddess Radha along with Krishna. O Vajranabh, at that time I had received this couplet mantra from Lord Shankar, at that time Mother Parvati was also there, so she also accepted this mantra. This couplet mantra consisting of sixteen letters is very secret and this is the only path for those who have achieved love and devotion. One who chants this mantra daily while walking or sleeping, definitely becomes the possessor of Nikunj and gets easy entry into Nikunj. O Vajranabh Devarshi, that couplet mantra was given to me also.
While paying my obeisance to Devarshi, I said, his manifestation has taken place in Barsana, it is nearby, you go and have darshan. Why, Devarshi, I have now heard that along with him, his personal companions are also appearing. Devarshi was happy and started moving towards Barsanen from Gokul, hugging me again and again.
It is a divine palace, congratulations are going on in Barsana, cowherds are dancing and singing, there is a lot of noise all around. Devarshi walked towards the same palace engrossed in feelings. This palace must have definitely appeared in this palace, but as soon as Devarshi left. A fair-skinned girl was named Karan Sanskar today. Her name is “Lalita”. Devarshi bowed to the newborn “Lalita Sakhi” with folded hands. She is the main friend of Shri Radha ji among the eight friends. Just as the grace of Mahadev cannot be obtained without paying obeisance to Nandi, just as the grace of Lord Shri Ram cannot be obtained without Hanuman, similarly the grace of Shri Radha Rani cannot be obtained without the grace of these friends and among all the friends, Yelalita Sakhi is the greatest. After adding, he saluted him.
But when will Shri Radha be seen? And where are they? Hey Vajranabh, I have been seeing Devarshi in every building of Barsana since the time Shri Radha Rani has appeared, in this rainy season all the buildings look like palaces. And the ruler of Barsana, Brishabhan ji, has inlaid diamonds and emeralds in everyone’s buildings. Maharishi Shandilya laughed at Vajranabh, his Lali Shri Radha, these diamonds and gems are not dear to her, so are peacocks, parrots, deer, dense trees, flowers, greenery, all these are dear to her, that is why natural objects are kept in her palace. Brishbhan ji had collected only Rs.
This is the palace of Brishabhan ji who is the ruler of this Barsana. Ekasakhi had told this to Devarshi Narad ji while walking. Devarshi Narad went to that palace and Brishabhan Jide was coming from the front. When he saw Devarshi, he immediately ran, fell at the feet of Devarshi and took her inside with great insistence. This is my son “Sridama”. A beautiful boy greeted Devarshi. Devarshi looked at him and said – This is Krishna’s friend, Krishna’s integral friend. Saying this he got up. Because Devarshi thought that these are just her sons whom she has told me about but the ones whom I have come to see are not even here.
As soon as Devarshi started walking from there. Devarshi please do me one more favor. Brishbhan held his feet. What ? What do you want Brishabhan? I have a daughter, what if you bless her too? Devarshi rejoiced. Name of that daughter?
“Shri Radha” said Brishabhan. But Devarshi hid her happiness. Where is that girl? You come to my harem.” Brishbhan ji walked ahead and his brother-in-law Narad ji followed.
There is a divine girl lying in the cradle, her complexion is like burning gold, her hair is black, she is very beautiful, but she has a strange mang, and what is more, there is a dark dot on her forehead, she is inborn, Devarshi Narad ji Brishbhan ji said.
I have a request, if you agree? Devarshi said to Brishbhan ji. You order…. I just need solitude for a few moments, if you… Devarshi had said this in a prayerful posture. Yes yes, I stand outside but tell me what will be the future of my daughter, saying this, Brishbhan ji went out.
As soon as Narad ji came to Queen Shriradha and saluted her with folded hands, Shriradha smiled. As soon as he smiled, the divine Nikunj appeared there. There is a divine throne. Vrindavaneshwari Shriradha Rani is seated in that throne. Light is emanating from her body, Omkar Naad is appearing from the sound of her anklets. Devarshi saw that slowly many goddesses like Lakshmi, Saraswati, Mahakali etc. were carrying the water. Then Shri Radha Rani smiled, this time Shri Shyam Sundar appeared from the right side of Shri Radha. The image of these two was amazing, it was as if love itself had taken this form, it was a wonderful form.
O Vajranabh Devarshi Narad ji started praising….
Oh Radhe, you are the one who creates, sustains and destroys, but not only that, you yourself become happy by providing happiness to your beloved Shri Shyam Sundar, you have no resolution of your own, you just do everything for the happiness of your beloved, oh loving goddess, Jai to you. yes Oh Krishna dear, victory to you O Haripriya, may you always be victorious. O Shyama, you are the origin of this universe. Oh beloved Vardhini, victory be to you. Oh Radhika, Jai, Jai, Jai to you. Shriradha smiled after hearing the praise of Devarshi, but as soon as Shriradharani smiled, everything changed; neither Nikunj was there, nor Shyam Sundar was there, nor Rama was there, nor Uma was there.
There is a beautiful cradle, in that cradle Shri Radha Rani is playing in the form of a child. Narad ji looked at her with open eyes again and again, touched the feet of Shri Radha Rani with his forehead and came out.
How is my daughter? How is his future? Its marriage? How many questions did a father have and this question was not asked for the first time, Brishbhan ji had been asking the same questions to Acharya Garg also. “This is the soul of Nandanandan” was all he could say and Devarshi walked away chanting this couplet mantra.
Radhe Krishna Radhe Krishna Krishna Krishna Radhe Radhe But O Vajranabh Devarshi Narad is a curious person, he had gone to Kansa straight from the rains. Why did Vajranabh laugh with Kansa? Now only Shrishyam Sundar should know this because Devarshinarad ji is the incarnation of his “mind”. respectively
(Respected Hari Sharan Ji)