भक्ति प्रेम का परम उत्कर्ष
भक्ति केवल एक साधना नहीं, बल्कि आत्मा का सबसे कोमल और गहन स्पंदन है। यह कोई रूढ़ि नहीं, बल्कि
भक्ति केवल एक साधना नहीं, बल्कि आत्मा का सबसे कोमल और गहन स्पंदन है। यह कोई रूढ़ि नहीं, बल्कि
रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि।मां भक्त मनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि।। विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि।ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणी।। त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके
शैलपुत्री-कार्येण याऽनेकविधां श्रयन्ती, निवारयन्ती स्मरतां विपत्तीः।अपूर्वकारुण्य रसार्द्र चित्ता, सा शैलपुत्री भवतु प्रसन्ना।।१।। ब्रह्मचारिणी-स्वर्गोऽपवर्गो नरकोऽपि यत्र, विभाव्यते दृक्कलया विविक्तम्।या चाऽद्वितीयाऽपि
जीव पर पल पल, हर पल प्रभु की कृपा वृष्टि होती रहती है । उस कृपा के दर्शन करने