अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

“मैं को छोड़ दो”

एक राजा था उसने परमात्मा को खोजना चाहा। वह किसी आश्रम में गया। उस आश्रम के प्रधान साधु महाराज ने

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श्रीमद् आद्य शंकराचार्य विरचितम्- धन्याष्टकम्

।श्री हरि:। तत्ज्ञानं प्रशमकरं यदिन्द्रियाणां, तत्ज्ञेयं यदुपनिषत्सुनिश्चितार्थम्।ते धन्या भुवि परमार्थनिश्चितेहाः, शेषास्तु भ्रमनिलये परिभ्रमंतः ॥१॥ वह ज्ञान है जो इन्द्रियों की

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तत्त्वज्ञान

आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी- इन पाँच महाभूतों को ही पंचतत्त्व कहते हैं, इन्हीं पंचतत्वों के गुण रूप इस

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आज का प्रभु संकीर्तन।कैसे नादान है ???हम 24 घंटे बाहर की दुनिया को देखते रहते हैं हम अपने अन्तर में

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ज्ञान क्या है ?

पूज्य गुरुदेव कहते हैं — ज्ञान एवं बौद्धिकता मनुष्य की अमूर्त सम्पदा है ।ज्ञान मनुष्य की वास्तविक शक्ति है ।

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भाव की पुजा

भावना या भाव बहुत मायने रखता हैआप किसी भी पूजा पद्धति का विष्लेषण करें बिना भाव के किसी भी प्रकार

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