
भक्त पुण्डरीक को नारद जी ने आत्मज्ञान समझाया
।। श्रीहरि: ।। स्मरण करने पर, सन्तुष्ट करने पर, पूजा करने पर भगवान का भक्त अनायास ही चाण्डाल तक को
।। श्रीहरि: ।। स्मरण करने पर, सन्तुष्ट करने पर, पूजा करने पर भगवान का भक्त अनायास ही चाण्डाल तक को
|| श्री हरि: || चन्द्रमा अमृतमय है, उसमे शान्ति मानो चू रही है | इसी तरह भगवान् में गुण हैं,
अहोभाव मृत्यु जगत में सबसे रहस्यपूर्ण, सबसे अनजानी, और इसीलिए सबसे ज्यादा डिवाइन, इसलिए सबसे ज्यादा दिव्य घटना है। और
एक साधक ध्यान में श्री हरि का आत्म चिन्तन करते हुए श्री राम, जय श्री राधे कृष्ण, जय श्री राधे
हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद राजा जनक ने, अष्टावक्र जी से तीन प्रश्न किएवैराग्य केसे हो?ज्ञान की प्राप्ति केसे
हरि ॐ तत्सत जय सच्चिदानंद घन कभी रात के दो बजे छत पर जाकर देखोएक बार संसार पर दृष्टी डालोये
न जन्म तुम्हारे हाथ में न मृत्यु तुम्हारे हाथ मेंन भूख न प्यास,न नींद तुम्हारे हाथ में ,इसे तुम रोक
आज भगवान ने हमारे दिलों में दर्शन की तङफ जागृत की है।तङफ बढने पर दर्शन का मजा ही कुछ ओर
शरीर तो एक ही है हम जिन्दगी भर यह सोचते हैं अन्य विशेष है अन्य मुझे बहुत सुख देगा।अन्य के
“कुछ हासिल करने के लिए जरूरी नही कि हमेशा दौड़ा जाए…..कुछ चीजें ठहरने से भी प्राप्त होती हैं जैसे सुख,