
रघुनाथ कृपा कीजै ऐसी
रघुनाथ कृपा कीजै ऐसी मोहे राम चरन रज ध्येय मिलै।पथ देहु मोहे निज पद रज का, हरिनाम मोहे पाथेय मिलै।।गुरु

रघुनाथ कृपा कीजै ऐसी मोहे राम चरन रज ध्येय मिलै।पथ देहु मोहे निज पद रज का, हरिनाम मोहे पाथेय मिलै।।गुरु
रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे रामसिमरूँ निश दिन हरि नाम, यही वर दो मेरे राम ,रहे
सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: परमात्मा श्री राम परम सत्य, प्रकाश रूप,परम ज्ञानानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान्,एकैवाद्वितीय परमेश्वर, परम पुरुष,दयालु देवाधिदेव है, उसको

एक बार रामजी ने समस्त अयोध्यावासियों की एक सभा बुलाई,और कहा, हे समस्त नगर निवासियों! मेरी बात ध्यान से सुनिये।यह

माँगी नाव ना केवट आना।कहइ तुम्हार मरम मैं जाना।। चरन-कमल रज कहुँ सबु कहई।मानुष करनि मुरि कछु अहई।। इस चौपाई

आज अयोध्या वासी आए शबरी तेरी कुटिया में। तीन लोक के स्वामी आए शबरी तेरी कुटिया में।शबरी तेरी कुटिया में,

नमो राघवाय करुणावरुणालय श्रीमद्राघवेन्द्र सरकार महाप्रभु अप्राकृत और सच्चिदानन्दघन हैं। उनके नाम भी अप्राकृत और सच्चिदानन्द-स्वरूप हैं। भगवान् श्रीराम सर्वथा

जाकी रही भावना जैसी।प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।। श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड की यह चौपाई है। जिसके पास जैसा भाव है,

श्रीरामचरितमानस- सुंदरकाण्ड दोहा चौपाई-जामवंत कह सुनु रघुराया।जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया।। ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर।सुर नर मुनि प्रसन्न

श्रीरामचरित मानस (बालकाण्ड) दोहा-बिप्रकाजु करि बंधु दोउ मग मुनिबधू उधारि।आए देखन चापमख सुनि हरषीं सब नारि।। दोनों भाई ब्राह्मण विश्वामित्र