
राम बिराजो हृदय भवन में
राम बिराजो हृदय भवन मेंतुम बिन और न हो कुछ मन में अपना जान मुझे स्वीकारो ।भ्रम भूलों से बेगि
राम बिराजो हृदय भवन मेंतुम बिन और न हो कुछ मन में अपना जान मुझे स्वीकारो ।भ्रम भूलों से बेगि
राम रस बरस्यो री, आज म्हारे आंगन में । परदे हटे आंख से मन से, जान पहचान हुई निजपन से,
*जय श्री राम* दुखी मन को मिलेगा आराम,जिस घडी काम कोई ना आये,उस घड़ी राम आएंगे काम,जपो राम राम भजो
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं वो तो दशरथ राज दुलारे हैं मेरे नयनो के तारे हैं सारे
आये आये मेरे रघुनाथ अवध में चोदा वर्ष के बाद, आगे आगे है बजरंगी राघव के सुख दुःख के संगी,
आन मिलो मोहे राम, राम मेरे । मन व्याकुल है, तन बेसुध है, अँखिओं में आ गए प्राण ॥ तुम
तू प्रेम से ओढ़ले प्यारी चुनरियाँ चुनरियाँ राम नाम की भली, इस चादर की ओट तान के सब की नाव
भरी हुई रस की गगरिया सा मीठा, सिया राम कहो हरी राम कहो प्रभु राम रे, प्रीतम की प्रीती विश्वाश
ऐसो को उदार जग माहीं, बिन सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोए नाहीं। जो गति जोग बिराग जतन
शाम सवेरे देखु तुझको कितना सूंदर रूप है, तेरा साथ है ठंडी छाया बाकि दुनिया धुप है, जब जब भी