राम भजन (Ram Bhajan)

इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर।श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।।

।। श्रीरामचरितमानस- उत्तरकाण्ड ।। चौपाई-इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर।कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।। सुनु कपीस अंगद लंकेसा।पावन पुरी रुचिर यह देसा।। जद्यपि

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श्री सीताराम स्तुति

शक्ति-शील-सौन्दर्य-सिन्धु तुम, दीन-बन्धु, करुणामय ।निर्बलके बल, प्रखर प्रभामय, त्रेताके  सूर्योदय ।।नील कमल-सा वर्ण तुम्हारा, नयन सरोज लजाते ।सीता माता-सहित हृदयमें,

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प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई। श्रीरामचरितमानस- लंकाकाण्ड ।।

  चौपाई-प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई।धरि बटु रूप अवधपुर जाई।। भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु।समाचार लै तुम्ह चलि आएहु।। तुरत पवनसुत गवनत

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दशरथ के घर जन्मे राम

दशरथ के घर जन्मे रामओ मंगल भवन अमंगल हारी,द्रवहु सु दशरथ अजर बिहारी,राम सिया राम सिया राम जय जय राम……

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जाके प्रिय न राम-बदैही

जाके प्रिय न राम-बदैही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥ तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषन बंधु, भरत महतारी। बलि

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