
भक्ति हृदय की पुकार
भगवान में दिल का रमना भक्ति है। हमारे अन्दर भगवान राम भगवान कृष्ण से मिलन की तीव्र इच्छा में भगवान

भगवान में दिल का रमना भक्ति है। हमारे अन्दर भगवान राम भगवान कृष्ण से मिलन की तीव्र इच्छा में भगवान

भगवान में दिल का रमना भक्ति है। हमारे अन्दर भगवान राम भगवान कृष्ण से मिलन की तीव्र इच्छा में
एक साधक आत्म चिन्तन करते हुए अपने आप से पुछता मै किस लिए आया हूं मेरे जीवन का क्या लक्ष्य

आत्मा का अपना कोई नहीं होता सम्बन्ध शरीर का है आत्मा का नहीं। यह मत सोचो कि तुम्हारी मृत्यु के

परमात्मा को प्रणाम है एक दीपक प्रज्वलित करके भगवान् को अन्तर मन से धन्यवाद करे कि हे भगवान् तुमने मुझे

हे भगवान नाथ, आज मैं तुम्हें कैसे नमन और वंदन करूं। आज ये दिल ठहर-ठहर कर भर आता है। ऐसे
ध्यान में परमात्मा के चिन्तन के अलावा कुछ भी नहीं है। भगवान को हम शरीर रूप से भजते भगवान को

प्रभु से बात दिल की गहराई से की जाती है। आंखें आंसू तभी बहाती है। जब परमात्मा से सम्बंध बन

दिल के भावसच्चे भक्त के दिल की एक ही पुकार होती है कि किस प्रकार मेरे स्वामी भगवान् नाथ का
सत्संग कैसे होएक भक्त अपने अन्तर्मन को पढता है देखता है मै अब खाली मटका हू भरा हुआ मटका बोलता