
जगत तत्व और आत्मविवेक की यात्रा
कभी-कभी यह भ्रम सहज रूप से मन में आता है कि जो जगत मुझे चारों ओर प्रत्यक्ष दिखाई दे
कभी-कभी यह भ्रम सहज रूप से मन में आता है कि जो जगत मुझे चारों ओर प्रत्यक्ष दिखाई दे
अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट रघु ने ही ‘रघुकुल’ या ‘रघुवंश’ की नींव रखी थी। रघुकुल अपने सत्य, तप, मर्यादा,
मनुष्य शरीर कर्म करने के लिए बना है। कर्म की हम कितनी बाते करे कर्म को शुद्ध रूप से
जब राम ने अपने गुरु से पूछा — ‘प्रभु, आपके गुरु कौन हैं? अयोध्या का राजमहल- गुरु वशिष्ठ राम