कर्म ही पुजा है (Karam Hi Puja Hai)

जीवन एक कला ॥

केवल मानव जन्म मिल जाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु हमें जीवन जीने की कला आनी भी आवश्यक है। पशु-

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भव’ का तात्पर्य

प्रिय शंकर ने एक और प्रश्न पूछा कि तृष्णा के बाद यह ‘उपादान’ और यह ‘भव’ क्या होता है?आज की

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कर्म की गति गहन है,

इसे समझ लो,जो पुरुष कर्म में अकर्म देखे, कर्म माने आराधना अर्थात् आराधना करे और यह भी समझे कि करनेवाला

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” कर्मयोगी बनें “

कर्मयोगी बनो मगर कर्मफल के प्रति आसक्त भाव का सदैव त्याग करो, ये भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्वपूर्ण और

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(मनुष्य के कर्म)

।। श्रीहरि: ।। महर्षि शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को सातवें दिन समझाते हुए अंतिम उपदेश दिया- हे राजन ! मृत्युलोक

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