(प्यारी ही को रूप मानो प्यास ही को रूप है)
बन्धन सुन्दर नहीं होते कुरूप ही होते हैं
पर हे वज्रनाभ एक ही बन्धन है जो सुन्दर है “प्रेम का बन्धन“
दुनिया को मुक्ति बाँटनें वाला स्वयं बन्धन में बंध गया। क्या दिव्य लीला है और मैंने तुम्हें बताया ना लीला का कोई उद्देश्य नहीं होता। लीला का एक मात्र उद्देश्य है अपने भीतर की आल्हादिनी शक्ति को जगाना क्यों कि वही प्रेम हैऔर वही ब्रह्म को भी बाँध सकती है।इस प्रेम की गति को “विचित्रा गति” कहते हैं महर्षि शाण्डिल्य “श्रीराधा चरित्र” को आगे बढ़ाते हुये बोले
हे वज्रनाभ… साधारण बात को ही समझो “भौंरा लकड़ी में भी छेद करने की हिम्मत रखता है पर वही भौंरा जब कमलपुष्प में बन्द हो जाता है तब वह उस अत्यन्त कोमल कमल के फूल को भी तोड़ नहीं पाता ये क्यों है ? यही है प्रेम की “विचित्रागति” है।
जिन आँखों में अब प्रियतम बैठ गया उन आँखों में अब काजल भी नही लगा सकती वो प्रेमिन… कहते कहते रुक गए महर्षि शाण्डिल्य फिर कुछ देर बाद बोले काजल तो साकार वस्तु है अरे जिन आँखों में प्रियतम बैठ गया है उन आँखों में तो नींद भी नही ठहर सकती नींद कहाँ ? प्रेमिन की आँखों में नींद के लिये जगह कहाँ वहाँ तो प्रियतम आ बैठा है।
वैसे जरूरत भी नही है काजल या नींद की… क्योंकि प्रियतम ने ही इन सबकी कमी पूरी कर दी है, काजल बनकर नयनों में लग गया है प्रियतम और प्रियतम ही मीठी नींद बनकर बस गया है। इसलिये उस बाबरी प्रेमिन को जरूरत नहीं है काजल और नींद की… महर्षि शाण्डिल्य स्वयं इस “श्रीराधा चरित्र” के “प्रेम सरोवर” गोता लगा रहे हैं और वज्रनाभ को भी खींचना चाहते हैं।
बृजरानी यशोदा दौड़ रही हैं पर कृष्ण उनके हाथों में आ ही नही रहे।
हाथ में छड़ी है मैं तुझे छोडूंगी नहीं, मैं तुझे आज पीटकर ही रहूँगी परेशान कर रखा है सुबह से… बृजरानी यशोदा का स्थूल शरीर है ये आज तक कभी इस तरह दौड़ीं ही नहीं उनके केश पाश खुल गए हैं उनमें से फूल झर गए और वे सब फूल धरती पर पड़े मानों रो रहे हैं अरे मैया बृजरानी से हम अलग हो गए हमारा दुर्भाग्य।
साँसे फूल रही हैं थक गयीं हैं पसीने चुचाने लगे थे।
पर ललिते बृजरानी दौड़ क्यों रही हैं? और कृष्ण ने ऐसा किया क्या?
नन्द महल की सारी मटकियाँ तो तोड़ दीं कृष्ण ने ललिता सखी ने श्रीराधा रानी को बताया।
अब तो “कृष्ण चर्चा” का व्यसन लग गया है श्रीराधा को।
जब से “कृष्ण” नाम सुना है और चित्रा सखी के द्वारा बने “कृष्ण” के मनोहारी चित्र के दर्शन किये हैं बस कृष्ण के बारे में ही सुनना चाहती हैं और सुनाने वाली हैं ललिता सखी। ये अष्ट सखियों में प्रमुख हैं… ये कभी श्रीराधा को अकेली छोड़ती नहीं… हैं ये वीणा बहुत सुन्दर बजाती हैं और संगीत के रागों में इन्हें भैरव राग बड़ा ही प्रिय लगता है ये “कृष्ण लीला” वीणा में गाकर सुनाती रहती हैं श्रीराधा को।
बरसाने क्षेत्र अंतर्गत ही गोवर्धन वृन्दावन , नन्दगाँव इत्यादि आते हैं इनके अधिपति बृषभान जी ही हैं।
वृन्दावन विशुद्ध वन था गोचर भूमि थी… वहाँ न कोई महल था न वहाँ कोई लोग रहते थे प्रकृति ने अपनी सम्पूर्ण सुन्दरता इसी वन को दे दी थी। बरसाने से नौका लेकर अपनी सखियों के साथ श्रीराधा रानी अब नित्य वृन्दावन आने लगीं।यहाँ खेलतीं फूल बीनतीं मोर का नृत्य देखतीं फिर उन्हीं मोर की नकल करते हुए नाचतीं कोयल से गायन में स्पर्धा करतीं..पर कहाँ श्रीराधा और कहाँ ये कोयली चुप कोयली को ही होना पड़ता तोता को अनार के दाने खिलातीं।
पर “कृष्ण” नाम याद आते ही…
तुम सब सखियों फूल बीनों मैं थोड़ा नौका में बैठती हूँ – एकान्त में ऐसा कहते हुये नौका में बैठने के लिये चली जातीं… पर जाते जाते नीलकमल का एक पुष्प तोड़ते हुये ले जातीं और उस पुष्प को अपने कपोल में छूवाते हुये कृष्ण की भावना में खो जातीं।
राधे राधे श्रीजी लाड़ली
दूर से ही एक सुन्दर से हंस को पकड़ कर ले आयी थी ललिता सखी और पुकारते हुयी आ रही थी।
आ जा यहीं आ श्रीराधा ने भी बुला लिया।
हंस को श्रीराधा रानी की गोद में देकर बैठ गयी ललिता सखी।
ललिते मन उदास है श्रीराधारानी ने कहा।
पर क्यों? क्या हुआ देखो प्यारी कितना सुन्दर वन है ये वृन्दावन और आपको तो प्रिय है ना ये वन।
हाँ प्रिय तो है पर इस वन में एक कमी है इसलिये कुछ अधूरा सा लगता है ललिते कितना अच्छा होता ना कि वे गोकुल से यहाँ वृन्दावन आ जाते और हम… हंस को चूम लिया श्रीराधा रानी ने ये कहते हुए।
ललिता हँसी पर कुछ बोली नहीं।
सुन तू वीणा नहीं लाई आज ?
लाई हूँ ना यहीं नौका में है सुनाऊँ मैं आपको कुछ?
नहीं रहने दे श्रीराधा रानी ने मना कर दिया।
आपने अभी तक देखा नही है कृष्ण को तब ये दशा है आपकी अगर आप देख लेंगी तब? ललिता बोली।
मैं नहीं देख पाऊँगी उन्हें मेरी धड़कनें रुक जायेंगी।
कुछ देर तक कोई नही बोला न श्रीराधा रानी न ललिता सखी।
पर घड़ी भर बाद ही… ललिते सुन ना तू मुझे गोकुल में अभी क्या हो रहा है ये बता दे।
मैं कैसे बता सकती हूँ ? हो आऊँ प्यारी? आप कहो तो?
ललिता सखी हँसते हुये बोली नौका है मेरे पास और मैं घड़ी भर में ही पहुँच जाऊँगी गोकुल।
नहीं जा मत मुझे यहीं से बता कि गोकुल में कृष्ण क्या कर रहे हैं श्रीराधा रानी ने जिद्द की।
पर मैं? ललिता ने असमर्थता प्रकट की।
पगली तू आँखें बन्द तो कर और गोकुल को याद कर सब प्रत्यक्ष हो जाएगा। देख आँखें बन्दकर के एकाग्र कर मन को गोकुल में… श्रीराधा रानी ने ललिता को समझाया।
हे वज्रनाभ ये तो छोटे मोटे सिद्धि वाले लोग भी कर सकते हैं तो ये ललिता इत्यादि तो सिद्धि दात्री हैं। सब को सिद्धि प्रदान करने वाली हैं और वैसे भी प्रेमी अपने आप में महासिद्ध होता है।
महर्षि शाण्डिल्य नें वज्रनाभ को समझाया और कहने लगे
ललिता सखी ने अपनी आँखें बन्द की और तभी गोकुल गाँव हृदय में प्रकट हो गया ललिता अन्तश्चक्षु से गोकुल की लीला देखकर श्रीराधा रानी को बताने लगी थीं।
कृष्ण घूम जाते हैं बृजेश्वरी यशोदा पीछे भाग रही हैं
कृष्ण गोल गोल घूमते जाते हैं टेढ़े मेढ़े भागते हैंअब चपल कृष्ण के पद जितनी तेज़ी से दौड़ सकते हैं उनकी तुलना में बृजेश्वरी यशोदा वो तो थोड़ी स्थूलकाय भी हैं थक गयीं।पसीने पसीने हो गयीं साँसें चलने लगी जोर जोर से।
पीछे मुड़कर देखा अपनी मैया यशोदा को ओह दया आ गयी नन्दनन्दन को “मेरी मैया थक गयी है”
खड़े हो गए कृष्ण ब्रजेश्वरी यशोदा ने देखा धीरे धीरे पकड़ने के लिये चलीं उन्हें लग रहा था कि ये मुझे छल कर फिर भागेगा पर नहीं पकड़ लिया कृष्ण को।
श्रीराधा सुन रही हैं हे वज्रनाभ ललिता सखी सुना रही हैं जो देख रही हैं वही बता रही हैं।
इधर देखा न उधर एक जोर से थप्पड़ जड़ दिया गाल में कृष्ण के।
रो गए आँसू बह चले उन कमल नयन के… पर बृजरानी ऐसे कैसे मानतीं आज उपद्रव भी तो कम नहीं मचाया था कृष्ण ने।
हाथ पकड़कर ले गयीं भीतर, ऊखल के पास खड़ा किया।
“पिटाई कर तो दी अब तो छोड़ दो बृजरानी कृष्ण को”
गोपियों ने कहना शुरू कर दिया था क्योंकि रोते हुये कृष्ण देखे नहीं जा रहे थे उन गोकुल की गोपियों से।
जाओ यहाँ से और रस्सी लेकर आओ क्रोध में हैं आज यशोदा रानी।
गोपियाँ दौड़ीं… रस्सी लाईं… बाँधने का प्रयास करने लगीं कृष्ण को यशोदा पर ये क्या? रस्सी दो अंगुल कम पड़ गयी।
बड़ी रस्सी लाओ ना बृजरानी का क्रोध कम नही हो रहा।
और रस्सियाँ लाई गयीं पर कृष्ण नही बंध रहे।
आँखें बन्दकर के श्रीराधारानी ये प्रसंग सुन रही हैं जो अभी घट रही है गोकुल में।
और रस्सियाँ लाओ ये जादू दिखा रहा है मुझे अपनी मैया को जादू दिखायेगा रोष में ही हैं यशोदा रानी। गोपियों ने ढ़ेर लगा दी रस्सियों की बृजरानी बाँधने का प्रयास फिर करने लगीं पर नहीं।
इन सब रस्सियों को जोड़ दो गोपियों अब देखती हूँ कि ये कैसे नही बंधेगा बृजरानी ने कहा और सब गोपियाँ गोकुल गाँव की, रस्सियों को जोड़ने लगीं।
नही बंधेगा ये हँसी श्रीराधा रानी।
नेत्र बन्द हैं श्रीराधा के और हँस रही हैं ये नहीं बंधेगा ललिते दुनिया की कोई पाश इसे नही बाँध सकती। ये गोकुल की रस्सी क्या इसे तो नाग पाश, वरुण पाश , ब्रह्म पाश तक नही बाँध सकती।
फिर ये कैसे बँधेगा? ललिता सखी ने पूछा।
ये कैसे बंधेगा? ललिते देख इतना कहते हुये अपने केशों को खोल दिया श्रीराधा रानी ने। बिखर गए केश बेणी की डोरी निकाली और उस डोरी को ललिता के हाथों में देते हुये बोलीं ललिते तू जा इस नौका को ले और जा गोकुल बृजरानी को प्रणाम करके कहना श्रीराधा ने भेजी है ये डोरी इसी से बाँधों इसे।
इतना कहकर वो बेणी की डोरी ललिता के हाथों में देती हुयी श्रीराधा नौका से उतर गयीं जल्दी आना ललिते।
ललिता सखी ने पतवार चला दी हवा नौका के अनुकूल ही चल पड़ी ललिता को देरी न लगी थी गोकुल पहुंचने में।
नाव को किनारे से लगाकर ललिता नन्द भवन की और भागी।
परेशान थीं नंदरानी।ललिता सखी गयी और प्रणाम करती हुयी बोली ये श्रीराधा ने डोरी भेजी है बरसाने से आप अपने लाडले को इससे बाँधे।
किसने भेजी है ये डोरी?
श्रीराधा ने ललिता ने फिर कहा।
कृष्ण मुस्कुराये ललिता की ओर देखा। ललिता देख रही है यशोदा मैया आगे बढ़ीं श्रीराधा के बेणी की डोरी लेकर, कृष्ण को सुगन्ध आयी श्रीराधा के केशों की… उस डोरी में सब कुछ भूल गए कृष्ण अरे अपनी ईश्वरता भी भूल गए और बंध गए।
ललिता सखी ताली बजाकर नाच उठी प्रेम की जय हो।
ये कहते हुए वो भागी अपने नाव की ओर नाव को चलाना भी नहीं पड़ा श्रीराधा के पास में कुछ ही क्षण में पहुँच गयी थी।
ललिते क्या हुआ? बंधे मेरे प्यारे…
ललिता ने प्रेम भरे हृदय से कहा प्रेम सबसे बड़ा है आज मैने दर्शन कर लिए ईश्वर को भी अगर बाँधने की ताकत किसी में है तो.. वह प्रेम है और हे राधे आप उसी प्रेम का साकार रूप हो।
सन्ध्या हो चुकी थी वज्रनाभ अन्य सखियाँ भी नाव पर आ गयीं और नाव अब बरसाने की ओर चल पड़ी।
परश्रीराधा का मन गोकुल में ही था.. वो बार बार मुस्कुरा रही थीं।
हे वज्रनाभ ये प्रेम लीला है।इसे बुद्धि से नहीं समझा जा सकता ये हृदय का आल्हाद है इतना ही बोल पाये महर्षि शाण्डिल्य।
प्रेम नदिया की सदा उलटी बहे धार।
क्रमशः
पूजनीय श्रीराधाचरितामृतम्
भाग 13
(“प्यारी ही को रूप मानों प्यास ही को रूप है)
बन्धन सुन्दर नहीं होते कुरूप ही होते हैं
पर हे वज्रनाभ एक ही बन्धन है जो सुन्दर है “प्रेम का बन्धन“
दुनिया को मुक्ति बाँटनें वाला स्वयं बन्धन में बंध गया। क्या दिव्य लीला है और मैंने तुम्हें बताया ना लीला का कोई उद्देश्य नहीं होता। लीला का एक मात्र उद्देश्य है अपने भीतर की आल्हादिनी शक्ति को जगाना क्यों कि वही प्रेम हैऔर वही ब्रह्म को भी बाँध सकती है।इस प्रेम की गति को “विचित्रा गति” कहते हैं महर्षि शाण्डिल्य “श्रीराधा चरित्र” को आगे बढ़ाते हुये बोले
हे वज्रनाभ… साधारण बात को ही समझो “भौंरा लकड़ी में भी छेद करने की हिम्मत रखता है पर वही भौंरा जब कमलपुष्प में बन्द हो जाता है तब वह उस अत्यन्त कोमल कमल के फूल को भी तोड़ नहीं पाता ये क्यों है ? यही है प्रेम की “विचित्रागति” है।
जिन आँखों में अब प्रियतम बैठ गया उन आँखों में अब काजल भी नही लगा सकती वो प्रेमिन… कहते कहते रुक गए महर्षि शाण्डिल्य फिर कुछ देर बाद बोले काजल तो साकार वस्तु है अरे जिन आँखों में प्रियतम बैठ गया है उन आँखों में तो नींद भी नही ठहर सकती नींद कहाँ ? प्रेमिन की आँखों में नींद के लिये जगह कहाँ वहाँ तो प्रियतम आ बैठा है।
वैसे जरूरत भी नही है काजल या नींद की… क्योंकि प्रियतम ने ही इन सबकी कमी पूरी कर दी है, काजल बनकर नयनों में लग गया है प्रियतम और प्रियतम ही मीठी नींद बनकर बस गया है। इसलिये उस बाबरी प्रेमिन को जरूरत नहीं है काजल और नींद की… महर्षि शाण्डिल्य स्वयं इस “श्रीराधा चरित्र” के “प्रेम सरोवर” गोता लगा रहे हैं और वज्रनाभ को भी खींचना चाहते हैं।
बृजरानी यशोदा दौड़ रही हैं पर कृष्ण उनके हाथों में आ ही नही रहे।
हाथ में छड़ी है मैं तुझे छोडूंगी नहीं, मैं तुझे आज पीटकर ही रहूँगी परेशान कर रखा है सुबह से… बृजरानी यशोदा का स्थूल शरीर है ये आज तक कभी इस तरह दौड़ीं ही नहीं उनके केश पाश खुल गए हैं उनमें से फूल झर गए और वे सब फूल धरती पर पड़े मानों रो रहे हैं अरे मैया बृजरानी से हम अलग हो गए हमारा दुर्भाग्य।
साँसे फूल रही हैं थक गयीं हैं पसीनें चुचाने लगे थे।
पर ललिते बृजरानी दौड़ क्यों रही हैं? और कृष्ण ने ऐसा किया क्या?
नन्द महल की सारी मटकियाँ तो तोड़ दीं कृष्ण ने ललिता सखी ने श्रीराधा रानी को बताया।
अब तो “कृष्ण चर्चा” का व्यसन लग गया है श्रीराधा को।
जब से “कृष्ण” नाम सुना है और चित्रा सखी के द्वारा बने “कृष्ण” के मनोहारी चित्र के दर्शन किये हैं बस कृष्ण के बारे में ही सुनना चाहती हैं और सुनाने वाली हैं ललिता सखी। ये अष्ट सखियों में प्रमुख हैं… ये कभी श्रीराधा को अकेली छोड़ती नहीं… हैं ये वीणा बहुत सुन्दर बजाती हैं और संगीत के रागों में इन्हें भैरव राग बड़ा ही प्रिय लगता है ये “कृष्ण लीला” वीणा में गाकर सुनाती रहती हैं श्रीराधा को।
बरसाने क्षेत्र अंतर्गत ही गोवर्धन वृन्दावन , नन्दगाँव इत्यादि आते हैं इनके अधिपति बृषभान जी ही हैं।
वृन्दावन विशुद्ध वन था गोचर भूमि थी… वहाँ न कोई महल था न वहाँ कोई लोग रहते थे प्रकृति ने अपनी सम्पूर्ण सुन्दरता इसी वन को दे दी थी। बरसाने से नौका लेकर अपनी सखियों के साथ श्रीराधा रानी अब नित्य वृन्दावन आने लगीं।यहाँ खेलतीं फूल बीनतीं मोर का नृत्य देखतीं फिर उन्हीं मोर की नकल करते हुए नाचतीं कोयल से गायन में स्पर्धा करतीं..पर कहाँ श्रीराधा और कहाँ ये कोयली चुप कोयली को ही होना पड़ता तोता को अनार के दाने खिलातीं।
पर “कृष्ण” नाम याद आते ही…
तुम सब सखियों फूल बीनों मैं थोड़ा नौका में बैठती हूँ – एकान्त में ऐसा कहते हुये नौका में बैठने के लिये चली जातीं… पर जाते जाते नीलकमल का एक पुष्प तोड़ते हुये ले जातीं और उस पुष्प को अपने कपोल में छूवाते हुये कृष्ण की भावना में खो जातीं।
राधे राधे श्रीजी लाड़ली
दूर से ही एक सुन्दर से हंस को पकड़ कर ले आयी थी ललिता सखी और पुकारते हुयी आ रही थी।
आ जा यहीं आ श्रीराधा ने भी बुला लिया।
हंस को श्रीराधा रानी की गोद में देकर बैठ गयी ललिता सखी।
ललिते मन उदास है श्रीराधारानी ने कहा।
पर क्यों? क्या हुआ देखो प्यारी कितना सुन्दर वन है ये वृन्दावन और आपको तो प्रिय है ना ये वन।
हाँ प्रिय तो है पर इस वन में एक कमी है इसलिये कुछ अधूरा सा लगता है ललिते कितना अच्छा होता ना कि वे गोकुल से यहाँ वृन्दावन आ जाते और हम… हंस को चूम लिया श्रीराधा रानी ने ये कहते हुए।
ललिता हँसी पर कुछ बोली नहीं।
सुन तू वीणा नहीं लाई आज ?
लाई हूँ ना यहीं नौका में है सुनाऊँ मैं आपको कुछ?
नहीं रहने दे श्रीराधा रानी ने मना कर दिया।
आपने अभी तक देखा नही है कृष्ण को तब ये दशा है आपकी अगर आप देख लेंगी तब? ललिता बोली।
मैं नहीं देख पाऊँगी उन्हें मेरी धड़कनें रुक जायेंगी।
कुछ देर तक कोई नही बोला न श्रीराधा रानी न ललिता सखी।
पर घड़ी भर बाद ही… ललिते सुन ना तू मुझे गोकुल में अभी क्या हो रहा है ये बता दे।
मैं कैसे बता सकती हूँ ? हो आऊँ प्यारी? आप कहो तो?
ललिता सखी हँसते हुये बोली नौका है मेरे पास और मैं घड़ी भर में ही पहुँच जाऊँगी गोकुल।
नहीं जा मत मुझे यहीं से बता कि गोकुल में कृष्ण क्या कर रहे हैं श्रीराधा रानी ने जिद्द की।
पर मैं? ललिता ने असमर्थता प्रकट की।
पगली तू आँखें बन्द तो कर और गोकुल को याद कर सब प्रत्यक्ष हो जाएगा। देख आँखें बन्दकर के एकाग्र कर मन को गोकुल में… श्रीराधा रानी ने ललिता को समझाया।
हे वज्रनाभ ये तो छोटे मोटे सिद्धि वाले लोग भी कर सकते हैं तो ये ललिता इत्यादि तो सिद्धि दात्री हैं। सब को सिद्धि प्रदान करने वाली हैं और वैसे भी प्रेमी अपने आप में महासिद्ध होता है।
महर्षि शाण्डिल्य नें वज्रनाभ को समझाया और कहने लगे
ललिता सखी ने अपनी आँखें बन्द की और तभी गोकुल गाँव हृदय में प्रकट हो गया ललिता अन्तश्चक्षु से गोकुल की लीला देखकर श्रीराधा रानी को बताने लगी थीं।
कृष्ण घूम जाते हैं बृजेश्वरी यशोदा पीछे भाग रही हैं
कृष्ण गोल गोल घूमते जाते हैं टेढ़े मेढ़े भागते हैंअब चपल कृष्ण के पद जितनी तेज़ी से दौड़ सकते हैं उनकी तुलना में बृजेश्वरी यशोदा वो तो थोड़ी स्थूलकाय भी हैं थक गयीं।पसीने पसीने हो गयीं साँसें चलने लगी जोर जोर से।
पीछे मुड़कर देखा अपनी मैया यशोदा को ओह दया आ गयी नन्दनन्दन को “मेरी मैया थक गयी है”
खड़े हो गए कृष्ण ब्रजेश्वरी यशोदा ने देखा धीरे धीरे पकड़ने के लिये चलीं उन्हें लग रहा था कि ये मुझे छल कर फिर भागेगा पर नहीं पकड़ लिया कृष्ण को।
श्रीराधा सुन रही हैं हे वज्रनाभ ललिता सखी सुना रही हैं जो देख रही हैं वही बता रही हैं।
इधर देखा न उधर एक जोर से थप्पड़ जड़ दिया गाल में कृष्ण के।
रो गए आँसू बह चले उन कमल नयन के… पर बृजरानी ऐसे कैसे मानतीं आज उपद्रव भी तो कम नहीं मचाया था कृष्ण ने।
हाथ पकड़कर ले गयीं भीतर, ऊखल के पास खड़ा किया।
“पिटाई कर तो दी अब तो छोड़ दो बृजरानी कृष्ण को”
गोपियों ने कहना शुरू कर दिया था क्योंकि रोते हुये कृष्ण देखे नहीं जा रहे थे उन गोकुल की गोपियों से।
जाओ यहाँ से और रस्सी लेकर आओ क्रोध में हैं आज यशोदा रानी।
गोपियाँ दौड़ीं… रस्सी लाईं… बाँधने का प्रयास करने लगीं कृष्ण को यशोदा पर ये क्या? रस्सी दो अंगुल कम पड़ गयी।
बड़ी रस्सी लाओ ना बृजरानी का क्रोध कम नही हो रहा।
और रस्सियाँ लाई गयीं पर कृष्ण नही बंध रहे।
आँखें बन्दकर के श्रीराधारानी ये प्रसंग सुन रही हैं जो अभी घट रही है गोकुल में।
और रस्सियाँ लाओ ये जादू दिखा रहा है मुझे अपनी मैया को जादू दिखायेगा रोष में ही हैं यशोदा रानी। गोपियों ने ढ़ेर लगा दी रस्सियों की बृजरानी बाँधने का प्रयास फिर करने लगीं पर नहीं।
इन सब रस्सियों को जोड़ दो गोपियों अब देखती हूँ कि ये कैसे नही बंधेगा बृजरानी ने कहा और सब गोपियाँ गोकुल गाँव की, रस्सियों को जोड़ने लगीं।
नही बंधेगा ये हँसी श्रीराधा रानी।
नेत्र बन्द हैं श्रीराधा के और हँस रही हैं ये नहीं बंधेगा ललिते दुनिया की कोई पाश इसे नही बाँध सकती। ये गोकुल की रस्सी क्या इसे तो नाग पाश, वरुण पाश , ब्रह्म पाश तक नही बाँध सकती।
फिर ये कैसे बँधेगा? ललिता सखी ने पूछा।
ये कैसे बंधेगा? ललिते देख इतना कहते हुये अपने केशों को खोल दिया श्रीराधा रानी ने। बिखर गए केश बेणी की डोरी निकाली और उस डोरी को ललिता के हाथों में देते हुये बोलीं ललिते तू जा इस नौका को ले और जा गोकुल बृजरानी को प्रणाम करके कहना श्रीराधा ने भेजी है ये डोरी इसी से बाँधों इसे।
इतना कहकर वो बेणी की डोरी ललिता के हाथों में देती हुयी श्रीराधा नौका से उतर गयीं जल्दी आना ललिते।
ललिता सखी ने पतवार चला दी हवा नौका के अनुकूल ही चल पड़ी ललिता को देरी न लगी थी गोकुल पहुंचने में।
नाव को किनारे से लगाकर ललिता नन्द भवन की और भागी।
परेशान थीं नंदरानी।ललिता सखी गयी और प्रणाम करती हुयी बोली ये श्रीराधा ने डोरी भेजी है बरसाने से आप अपने लाडले को इससे बाँधे।
किसने भेजी है ये डोरी?
श्रीराधा ने ललिता ने फिर कहा।
कृष्ण मुस्कुराये ललिता की ओर देखा। ललिता देख रही है यशोदा मैया आगे बढ़ीं श्रीराधा के बेणी की डोरी लेकर, कृष्ण को सुगन्ध आयी श्रीराधा के केशों की… उस डोरी में सब कुछ भूल गए कृष्ण अरे अपनी ईश्वरता भी भूल गए और बंध गए।
ललिता सखी ताली बजाकर नाच उठी प्रेम की जय हो।
ये कहते हुए वो भागी अपने नाव की ओर नाव को चलाना भी नहीं पड़ा श्रीराधा के पास में कुछ ही क्षण में पहुँच गयी थी।
ललिते क्या हुआ? बंधे मेरे प्यारे…
ललिता ने प्रेम भरे हृदय से कहा प्रेम सबसे बड़ा है आज मैने दर्शन कर लिए ईश्वर को भी अगर बाँधने की ताकत किसी में है तो.. वह प्रेम है और हे राधे आप उसी प्रेम का साकार रूप हो।
सन्ध्या हो चुकी थी वज्रनाभ अन्य सखियाँ भी नाव पर आ गयीं और नाव अब बरसाने की ओर चल पड़ी।
परश्रीराधा का मन गोकुल में ही था.. वो बार बार मुस्कुरा रही थीं।
हे वज्रनाभ ये प्रेम लीला है।इसे बुद्धि से नहीं समझा जा सकता ये हृदय का आल्हाद है इतना ही बोल पाये महर्षि शाण्डिल्य।
प्रेम नदिया की सदा उलटी बहे धार।
पूजनीय श्री हरिशरणजी
क्रमशः
(Consider the beloved as a form, thirst as a form)
Bonds are not beautiful, they are ugly. But O Vajranabh, there is only one bond which is beautiful – the bond of love. The one who distributed salvation to the world himself got trapped in bondage. What a divine leela and I told you that leela has no purpose. The only purpose of Leela is to awaken the eternal power within oneself because that is love and it can bind even Brahma. The speed of this love is called “Vichitra Gati”. Maharishi Shandilya said while taking forward “Shriradha Charitra”
Hey Vajranabh… understand this simple thing, “A bumblebee has the courage to make a hole even in wood, but when the same bumblebee gets stuck in a lotus flower, then it is not able to break even that very soft lotus flower. Why is this? This is the “strange pace” of love. Now the beloved cannot even apply kajal on those eyes in which the beloved has settled… Maharishi Shandilya stopped while saying this and then after some time he said that kajal is a real thing, those eyes in which the beloved has settled, there is not even sleep in those eyes. Where can sleep stop? There is no place for sleep in the eyes of the lover, the beloved is already there. Well, there is no need of kajal or sleep… because the beloved has fulfilled the lack of all these, the beloved has become like kajal and has settled in the eyes of the beloved and the beloved has settled in the form of sweet sleep. That is why that Babri Premin does not need kajal and sleep… Maharishi Shandilya himself is diving into the “love lake” of this “Shri Radha Charitra” and wants to pull Vajranabh also.
Brijrani Yashoda is running but Krishna is not coming in her hands. I have a stick in my hand, I will not leave you, I will beat you today, I have been troubling you since the morning… Brijrani Yashoda has a strong body, she has never run like this till date, her hair loops have opened, flowers have fallen from them and they All the flowers lying on the ground seemed to be crying, Oh Mother, we are separated from Brijrani, it is our misfortune. I was short of breath, tired and started sweating. But why is Lalita Brijrani running? And did Krishna do this? Krishna broke all the pots in Nand Mahal and Lalita Sakhi told this to Shri Radha Rani. Now Shri Radha has become addicted to “Krishna discussion”. Ever since I heard the name “Krishna” and saw the beautiful picture of “Krishna” made by Chitra Sakhi, I just want to hear about Krishna and Lalita Sakhi is the one to tell it. She is the chief among the eight friends… She never leaves Shriradha alone… She plays the veena very beautifully and among the musical ragas, she likes Bhairava raga very much. She keeps singing “Krishna Leela” on the veena and narrating it to Shriradha.
Govardhan Vrindavan, Nandgaon etc. come under Barsane area and their ruler is Brishabhan ji. Vrindavan was a pure forest, a grazing land… there was neither any palace nor any people living there, nature had given all its beauty to this forest. Taking a boat from Barsana, Shri Radha Rani along with her friends started coming to Vrindavan daily. Here she would play, pick flowers, watch the dance of peacocks, then dance in imitation of the same peacock and compete in singing with the cuckoo.. But where was Shri Radha and where was this cuckoo, the silent cuckoo. Had to feed pomegranate seeds to the parrot.
But as soon as the name “Krishna” comes to mind…
All of you friends, I am going to sit in the boat for picking flowers – saying this in private, she would go to sit in the boat… but while leaving, she would pluck a blue lotus flower and touch that flower on her forehead and get lost in the feeling of Krishna. Castes. Radhe Radhe Shreeji darling
Lalita Sakhi had caught a beautiful swan from a distance and was coming calling. Come here, Shriradha also called. Lalita Sakhi placed the swan in the lap of Shri Radha Rani and sat down. Lalita’s heart is sad, said Shri Radharani. But why? What happened, see dear, this Vrindavan is such a beautiful forest and you love this forest, don’t you? Yes, it is dear but there is something missing in this forest, that is why it feels incomplete, Lalita, it would have been better if they had come here from Gokul to Vrindavan and we… Shriradha Rani kissed the swan, saying this. Lalita laughed but did not say anything. Listen, didn’t you bring the veena today? I have brought it here in the boat, can I tell you something? Shriradha Rani refused to let it be.
You have not seen Krishna yet, then this is your condition, if you see him then? Lalita said. I won’t be able to see them, my heartbeats will stop. No one spoke for some time, neither Shriradha Rani nor Lalita Sakhi.
But after a moment… Lalita, listen, tell me what is happening in Gokul right now. How can I tell? Can I come, dear? If you say so? Lalita Sakhi laughingly said, I have a boat and I will reach Gokul within an hour. No, don’t go and tell me from here what Krishna is doing in Gokul, Shriradha Rani insisted. But me? Lalita expressed her inability. You fool, just close your eyes and remember Gokul, everything will become clear. Look, close your eyes and concentrate your mind on Gokul… Shriradha Rani explained to Lalita.
Hey Vajranabh, even small people with great Siddhi can do this, so Lalita etc. are Siddhi Daatri. She is the one who grants success to everyone and anyway the lover is a great Siddha in himself. Maharishi Shandilya explained to Vajranabh and started saying
Lalita Sakhi closed her eyes and then Gokul village appeared in her heart. Lalita started telling about the activities of Gokul from her inner eye and told it to Shri Radha Rani.
Krishna turns around, Brijeshwari Yashoda is running behind. Krishna keeps moving round and round, runs in zigzags, now Brijeshwari Yashoda, even though she is a little heavy, got tired as compared to the speed with which the feet of the agile Krishna can run. She became sweaty and started breathing heavily.
Looking back, I saw my mother Yashoda, I felt pity for Nandanandan, “My mother is tired.” Krishna stood up, Brajeshwari Yashoda saw that she slowly moved to catch him, she was thinking that he would trick her and then run away but she did not catch Krishna. Shriradha is listening, O Vajranabh, Lalita Sakhi is narrating, she is telling what she is seeing.
He looked here and there and slapped Krishna hard on the cheek. Tears flowed from those lotus eyes… but how could Brijrani believe like this, Krishna had created no less disturbance today. She took him inside holding his hand and made him stand near the mortar. “You have beaten me, now leave Brijrani Krishna alone.” The Gopis had started saying this because the Gopis of Gokul could not see the crying Krishna. Go from here and bring the rope, Queen Yashoda is angry today. Gopis ran… brought rope… started trying to tie Krishna to Yashoda but what is this? The rope fell two fingers short. Bring a big rope, Brijrani’s anger is not decreasing. More ropes were brought but Krishna was not being tied.
With her eyes closed, Shri Radharani is listening to this incident which is happening right now in Gokul. Bring more ropes, he is showing me magic, he will show magic to his mother, Yashoda Rani is furious. The Gopis piled up ropes and started trying to tie Brijrani again but could not. Connect all these ropes, Gopis. Now let me see how it will not be tied. Brijrani said and all the Gopis of Gokul village started connecting the ropes.
This laughter will not be contained, Shriradha Rani. Shri Radha’s eyes are closed and she is laughing, this will not be tied, Lalita, no noose in the world can tie it. Can’t this Gokul’s rope tie even the snake’s noose, Varun’s noose, Brahma’s noose? Then how will it be tied? Lalita Sakhi asked.
How will it be tied? Seeing Lalita, Shriradha Rani opened her hair and said this. She took out the string from the scattered hair braid and gave it to Lalita and said, Lalita, you go take this boat and go and pay obeisance to Gokul Brijrani and say that Shri Radha has sent this string, tie it to this. Saying this, she handed over the braided string to Lalita and got down from the Shriradha boat. Come quickly, Lalita. Lalita Sakhi turned the rudder and the wind moved in the direction of the boat. Lalita did not take long to reach Gokul. Lalita moored the boat to the shore and ran towards Nand Bhavan. Nandrani was worried. Lalita went to her friend and said while paying obeisance that Shri Radha has sent a string to Barsana, you should tie your beloved with it. Who has sent this string? Shriradha and Lalita said again.
Krishna smiled and looked at Lalita. Lalita is watching, Yashoda Maiya moved forward with the string of Shri Radha’s braid, Krishna smelled the fragrance of Shri Radha’s hair… Krishna forgot everything in that string, he even forgot his divinity and got tied.
Lalita Sakhi clapped and danced, Jai Prem. Saying this, she ran towards her boat. She did not even have to row the boat and reached Shri Radha within a few moments.
Lalita what happened? Tied my dear… Lalita said with a heart full of love, love is the greatest, today I have seen God, if anyone has the power to bind, then it is love and oh Radhe, you are the embodiment of that love.
It was already evening, Vajranabh’s other friends also came on the boat and the boat now started towards Barsana. Parashri Radha’s mind was only in Gokul.. She was smiling again and again.
O Vajranabha, this is a love deed. It cannot be understood by the intellect. It is the joy of the heart. That is all Maharishi Shandyal could say. The ever-upturned stream of the love river. respectively Revered Sri Radhacharitamritam Part 13
(“Beloved has a form, thirst has a form)
Bonds are not beautiful, they are ugly. But O Vajranabh, there is only one bond which is beautiful – the bond of love. The one who distributed salvation to the world himself got trapped in bondage. What a divine leela and I told you that leela has no purpose. The only purpose of Leela is to awaken the eternal power within oneself because that is love and it can bind even Brahma. The speed of this love is called “Vichitra Gati”. Maharishi Shandilya said while taking forward “Shriradha Charitra”
Hey Vajranabh… understand this simple thing, “A bumblebee has the courage to make a hole even in wood, but when the same bumblebee gets stuck in a lotus flower, then it is not able to break even that very soft lotus flower. Why is this? This is the “strange pace” of love. Now the beloved cannot even apply kajal on those eyes in which the beloved has settled… Maharishi Shandilya stopped while saying this and then after some time he said that kajal is a real thing, those eyes in which the beloved has settled, there is not even sleep in those eyes. Where can sleep stop? There is no place for sleep in the eyes of the lover, the beloved is already there. Well, there is no need of kajal or sleep… because the beloved has fulfilled the lack of all these, the beloved has become like kajal and has settled in the eyes of the beloved and the beloved has settled in the form of sweet sleep. That is why that Babri Premin does not need kajal and sleep… Maharishi Shandilya himself is diving into the “love lake” of this “Shri Radha Charitra” and wants to pull Vajranabh also.
Brijrani Yashoda is running but Krishna is not coming in her hands. I have a stick in my hand, I will not leave you, I will beat you today, I have been troubling you since the morning… Brijrani Yashoda has a strong body, she has never run like this till date, her hair loops have opened, flowers have fallen from them and they All the flowers lying on the ground seemed to be crying, Oh Mother, we are separated from Brijrani, it is our misfortune. I was short of breath, tired and started sweating. But why is Lalita Brijrani running? And did Krishna do this? Krishna broke all the pots in Nand Mahal and Lalita Sakhi told this to Shri Radha Rani. Now Shri Radha has become addicted to “Krishna discussion”. Ever since I heard the name “Krishna” and saw the beautiful picture of “Krishna” made by Chitra Sakhi, I just want to hear about Krishna and Lalita Sakhi is the one to tell it. She is the chief among the eight friends… She never leaves Shriradha alone… She plays the veena very beautifully and among the musical ragas, she likes Bhairava raga very much. She keeps singing “Krishna Leela” on the veena and narrating it to Shriradha.
Govardhan Vrindavan, Nandgaon etc. come under Barsane area and their ruler is Brishabhan ji. Vrindavan was a pure forest, a grazing land… there was neither any palace nor any people living there, nature had given all its beauty to this forest. Taking a boat from Barsana, Shri Radha Rani along with her friends started coming to Vrindavan daily. Here she would play, pick flowers, watch the dance of peacocks, then dance in imitation of the same peacock and compete in singing with the cuckoo.. But where was Shri Radha and where was this cuckoo, the silent cuckoo. Had to feed pomegranate seeds to the parrot.
But as soon as the name “Krishna” comes to mind…
All of you friends, I am going to sit in the boat for picking flowers – saying this in private, she would go to sit in the boat… but while leaving, she would pluck a blue lotus flower and touch that flower on her forehead and get lost in the feeling of Krishna. Castes. Radhe Radhe Shreeji darling
Lalita Sakhi had caught a beautiful swan from a distance and was coming calling. Come here, Shriradha also called. Lalita Sakhi placed the swan in the lap of Shri Radha Rani and sat down. Lalita’s heart is sad, said Shri Radharani. But why? What happened, see dear, this Vrindavan is such a beautiful forest and you love this forest, don’t you? Yes, it is dear but there is something missing in this forest, that is why it feels incomplete, Lalita, it would have been better if they had come here from Gokul to Vrindavan and we… Shriradha Rani kissed the swan, saying this. Lalita laughed but did not say anything. Listen, didn’t you bring the veena today? I have brought it here in the boat, can I tell you something? Shriradha Rani refused to let it be.
You have not seen Krishna yet, then this is your condition, if you see him then? Lalita said. I won’t be able to see them, my heartbeats will stop. No one spoke for some time, neither Shriradha Rani nor Lalita Sakhi.
But after a moment… Lalita, listen, tell me what is happening in Gokul right now. How can I tell? Can I come, dear? If you say so? Lalita Sakhi laughingly said, I have a boat and I will reach Gokul within an hour. No, don’t go and tell me from here what Krishna is doing in Gokul, Shriradha Rani insisted. But me? Lalita expressed her inability. You fool, just close your eyes and remember Gokul, everything will become clear. Look, close your eyes and concentrate your mind on Gokul… Shriradha Rani explained to Lalita.
Hey Vajranabh, even small people with great Siddhi can do this, so Lalita etc. are Siddhi Daatri. She is the one who grants success to everyone and anyway the lover is a great Siddha in himself. Maharishi Shandilya explained to Vajranabh and started saying
Lalita Sakhi closed her eyes and then Gokul village appeared in her heart. Lalita started telling about the activities of Gokul from her inner eye and told it to Shri Radha Rani.
Krishna turns around, Brijeshwari Yashoda is running behind. Krishna keeps moving round and round, runs in zigzags, now Brijeshwari Yashoda, even though she is a little heavy, got tired as compared to the speed with which the feet of the agile Krishna can run. She became sweaty and started breathing heavily.
Looking back, I saw my mother Yashoda, I felt pity for Nandanandan, “My mother is tired.” Krishna stood up, Brajeshwari Yashoda saw that she slowly moved to catch him, she was thinking that he would trick her and then run away but she did not catch Krishna. Shriradha is listening, O Vajranabh, Lalita Sakhi is narrating, she is telling what she is seeing.
He looked here and there and slapped Krishna hard on the cheek. Tears flowed from those lotus eyes… but how could Brijrani believe like this, Krishna had created no less disturbance today. She took him inside holding his hand and made him stand near the mortar. “You have beaten me, now leave Brijrani Krishna alone.” The Gopis had started saying this because the Gopis of Gokul could not see the crying Krishna. Go from here and bring the rope, Queen Yashoda is angry today. Gopis ran… brought rope… started trying to tie Krishna to Yashoda but what is this? The rope fell two fingers short. Bring a big rope, Brijrani’s anger is not decreasing. More ropes were brought but Krishna was not being tied.
With her eyes closed, Shri Radharani is listening to this incident which is happening right now in Gokul. Bring more ropes, he is showing me magic, he will show magic to his mother, Yashoda Rani is furious. The Gopis piled up ropes and started trying to tie Brijrani again but could not. Connect all these ropes, Gopis. Now let me see how it will not be tied. Brijrani said and all the Gopis of Gokul village started connecting the ropes.
This laughter will not be contained, Shriradha Rani. Shri Radha’s eyes are closed and she is laughing, this will not be tied, Lalita, no noose in the world can tie it. Can’t this Gokul’s rope tie even the snake’s noose, Varun’s noose, Brahma’s noose? Then how will it be tied? Lalita Sakhi asked.
How will it be tied? Seeing Lalita, Shriradha Rani opened her hair and said this. She took out the string from the scattered hair braid and gave it to Lalita and said, Lalita, you go take this boat and go and pay obeisance to Gokul Brijrani and say that Shri Radha has sent this string, tie it to this. Saying this, she handed over the braided string to Lalita and got down from the Shriradha boat. Come quickly, Lalita. Lalita Sakhi turned the rudder and the wind moved in the direction of the boat. Lalita did not take long to reach Gokul. Lalita moored the boat to the shore and ran towards Nand Bhavan. Nandrani was worried. Lalita went to her friend and said while paying obeisance that Shri Radha has sent a string to Barsana, you should tie your beloved with it. Who has sent this string? Shriradha and Lalita said again.
Krishna smiled and looked at Lalita. Lalita is watching, Yashoda Maiya moved forward with the string of Shri Radha’s braid, Krishna smelled the fragrance of Shri Radha’s hair… Krishna forgot everything in that string, he even forgot his divinity and got tied.
Lalita Sakhi clapped and danced, Jai Prem. Saying this, she ran towards her boat. She did not even have to row the boat and reached Shri Radha within a few moments.
Lalita what happened? Tied my dear… Lalita said with a heart full of love, love is the greatest, today I have seen God, if anyone has the power to bind, then it is love and oh Radhe, you are the embodiment of that love.
It was already evening, Vajranabh’s other friends also came on the boat and the boat now started towards Barsana. Parashri Radha’s mind was only in Gokul.. She was smiling again and again.
O thunderbolt, this is a play of love. It cannot be understood by the intellect. It is the joy of the heart. Maharishi Shandilya could only say this much. The river of love always flows in reverse direction. Respected Shri Harisharanji
respectively