बजरंग के आते आते कही भोर हो न जाये रे,
ये राम सोचते हैं, श्री राम सोचते हैं ।
क्या भोर होते होते बजरंग आ सकेंगे,
लक्ष्मण को नया जीवन फिर से दिला सकेंगे ।
कही सास की ये डोरी कमजोर हो न जाये रे,
ये राम सोचते हैं, श्री राम सोचते हैं ॥
कैसे कहूँगा जा के मारा गया है लक्ष्मण,
तज देगी प्राण सुन के माता सुमित्रा फ़ौरन ।
कहीं यह कलंक मुझसे इक और हो ना जाए रे,
ये राम सोचते हैं, श्री राम सोचते हैं ॥
लक्ष्मण बिना है टूटा यह दांया हाथ मेरा,
कुछ सूझता नहीं है चारो तरफ अँधेरा ।
लंका में कहीं घर घर ये शोर हो ना जाये रे
ये राम सोचते हैं, श्री राम सोचते हैं ॥
वर्ना अटल है ‘शर्मा’ मेरी बात ना टलेगी,
लक्ष्मण के साथ मेरी ‘लख्खा’ चिता जलेगी ।
मैं सोचता तो कुछ हूँ, कुछ और हो न जाये रे,
ये राम सोचते हैं, श्री राम सोचते हैं ॥स्वरलखबीर सिंह लक्खा
By the time of Bajrang’s arrival, there should be no morning anywhere.
This Ram thinks, Shri Ram thinks.
Will Bajrang be able to come by the morning,
Laxman will be able to get a new life again.
Somewhere this string of mother-in-law should not become weak,
This Ram thinks, Shri Ram thinks.
How can I say that Lakshman has been killed,
Mother Sumitra will immediately give her life after hearing it.
Somewhere this stigma should not be the same with me,
This Ram thinks, Shri Ram thinks.
This right hand is broken without Lakshman,
Nothing is understood, there is darkness all around.
There should be no noise from house to house in Lanka.
This Ram thinks, Shri Ram thinks.
Otherwise, ‘Sharma’ is adamant, my words will not go away.
My ‘Lakhkha’ pyre will burn with Laxman.
If I think then I am something, nothing else should happen.
This Ram thinks, Shri Ram thinks -Swarlakhbir Singh Lakha