जगत जिसका ये कुल वनाया हुआ है
वही सब घट मे समाया हुआ है
और दूसरा ना तुमसा जगत मे, तुमसा जगत मे
अपने मे आप ही भुलाया हुआ है
हरी एक से होंगे रंग-बिरंगे ,रंग बिरंगे
यह जलवा होने का दिखाया हुआ है
है ताकतउसी में मुंह खोलने की,मुंह खोलने की
भेद संतो से जो पाया हुआ है
धर्मी दास अपनी उनकी फिक्र में, उनकी फिक्र में
करोड़ों की दौलत लुटाया हुआ है
प्रेषक-नरेन्द्र वैरवा(नरसी भगत)
रमेशदास उदासी जी
गंगापुर सिटी।
The world of which this total has been created
all that is contained
And the other is neither in your world, in your world
forgotten in itself
The green one will be colorful, colorful
it has been shown to be flamboyant
He has the power to open his mouth, to open his mouth
The difference that is found from the saints
Righteous servant in his concern, in his concern
crores of rupees have been looted
From – Narendra Vairawa (Narsi Bhagat)
Mr. Rameshdas Udasi
Gangapur City.