अब हम गुरू गम आत्म चीना
आऊ ना जाऊं मरू नहीं जन्मू ऐसी ऐसी निश्चय कीना
भेख फकीरी सब कोई लेता ज्ञान फकीरी पंथ जीना
जिनके शब्द लगे सतगुरू का शीश काट धर दीना
फेर ना फिरता मांग ना खाता ऐसा निर्भय कीना
अजगर इधर- उधर नही डोले चून हरी लिख दीना
मरजीवा होए जगत में विसरू सवाल किया ना कीना
जिनकी कला शक्ल मे बरते वो साहब हम चीना
भेख लिया जब सुख- दुख त्यागा राम नाम रंग भीना
घट घट में साहेब का दर्शन दुरमती दूरी कीना
भक्ती रा नैन,ज्ञान का दर्पण,स्वी बैराग मिल तीना
धन सुखराम आतम मुख दरसे लखे संत प्रवीणा
प्रेषक- नरेंद्र बैरवा(नरसी भगत)
( रमेशदास उदासी जी)
गंगापुर सिटी।
Now we guru gum self china
Come, I will not die, I will not be born, make such a determination
Bekh Fakiri everyone takes knowledge to live the cult of Fakiri
Whose words were used to cut off the head of the Satguru
Such a fearless keena does not demand nor eat again.
The python does not move here and there, it is written in green.
In the world of Marjeeva Ho, Visru did not ask Kina
Whose art was used in the form of that sir, we China
When you gave up happiness and sorrow, Ram Naam Rang Bheena
Sahib’s vision in Ghat Ghat
Bhakti Ra Nain, Mirror of Knowledge, Sweet Bairag Mil Tina
Sant Praveena gets rich from Sukhram Atam
From- Narendra Bairwa (Narsi Bhagat)
(Rameshdas Udasi)
Gangapur City.