ध्यान की सब से गहरी विधि हैं आप भगवान को खुली आंखों से कर्म करते हुए भजे आप बोल कर भगवान को भजते हुए ।
अन्तर्मन में भाव की उत्पत्ति हो और आप के अन्तर्मन में स्तुति के बोल की जागृति होने लग जाएं। यह दोनों किरया एक साथ हो तब हम भगवान के नजदीक खङे हैं। इस भाव को हम चाहे जितनी बार करके देखे हम धीरे-धीरे सदृङ होते जाएंगे
भगवान हमारे अहसास में आ गए हमारे जीवन का लक्ष्य परमात्मा को सच्चे मन से भजना है हमे देखना यह है कि हम भगवान श्री हरि को कितने सच्चे मन से भज रहे हैं।
आगे दर्श का मार्ग परमात्मा पर छोड़ देते हैं। हमे भगवान पहले कुम्हार की तरह घङते है हमारे मार्ग में अनेक जन्मों के कांटे होते हैं। भगवान भक्त को अनेकों परिस्थितियों से मजबूत दृढ़ एवं लचीला बनाकर उन कांटो को निकालते हैं।
हम ऊंची छलांग लगाना चाहते हैं। भक्ति का मार्ग प्रेम का मार्ग है जिसमें न दिन है न रात है। भक्त अपने भगवान मे डुबा हुआ भोजन करते हुए भी भोजन नहीं करता है ये प्रभु प्रेम में खोकर ध्यान की परिस्थिति हैं।
भगवान शरीर नहीं है शरीर तो चला गया भगवान ज्योति रूप है ।भगवान चाहे राम कृष्ण या अन्य धर्मों के अनुसार अन्य रूप में हो। वे अब ज्योति रूप में है । जय श्री राम अनीता गर्ग