क्या वह स्वभाव पहला सरकार अब नहीं है,
दीनों के वास्ते क्या दरबार अब नहीं है
या तो दयालु मेरी दृढ़ दीनता नहीं है,
या दीन कि तुम्हें ही दरकार अब नहीं है,
जिससे कि सुदामा त्रयलोक पा गया था,
क्या उस उदारता में कुछ सार अब नहीं है
क्या वह स्वभाव पहलां सरकार अब नहीं है,
दीनों के वास्ते क्या दरबार अब नहीं है
पाते थे जिस ह्रदय का आश्रय अनाथ लाखों,
क्या वह हृदय दया का भण्डार अब नहीं है
दौड़े थे द्वारिका से जिस पर अधीर होकर,
उस अश्रु बिन्दु से भी क्या प्यार अब नहीं है।
क्या वह स्वभाव पहलां सरकार अब नहीं है,
दीनों के वास्ते क्या दरबार अब नहीं है
Isn’t that nature the first government now,
Is there no court for the poor now?
Either merciful is not my steadfast humility,
Or the humble that you don’t need anymore,
So that Sudama had attained Trialok,
Is there no substance in that generosity anymore?
Isn’t that nature the first government now,
Is there no court for the poor now?
The heart of which the orphans used to find shelter, millions,
Is that heart no longer a storehouse of mercy
I ran from Dwarka on which impatiently,
Is there no love even from that teardrop point?
Isn’t that nature the first government now,
Is there no court for the poor now?