साधक रोटी बना रहा है। रोटी को पुरी फुली हुई देखता है तो रोटी के अन्दर उसे लगता है कि जैसे रोटी में भगवान है रोटी में परमात्मा के दर्शन की अनुभूति होती है। रोटी के अन्दर से प्रकाश की किरणें निकल रही है। साधक रोटी बनाते हुए सांस सांस से अपने प्रभु प्राण नाथ को ध्या रहा है। परमात्मा के भाव में है परमात्मा का नाम जप कर रहा है। श्री राम जय राम जय जय राम
नैनो से नीर बह रहा है। साधक झुमते हुए रोटी से पुछता है। तुम तपती हुई भी आन्नदित कैसे हो। रोटी कहती हैं कि मेरे अंदर एक भाव था कि मैं थाली में सजकर किसी की क्षुदधा को शान्त कर पाऊं या फिर मैं किसी सन्त की थाली में परोसी जाऊं और अपना जीवन धन्य बनाऊ। रोटी बोली साधक से मेरी लम्बी कहानी है। साधक कहता है कि सुनाओ मैं तुम्हारी कहानी को सुनना चाहता हूं।
श्री राम जय राम जय जय राम
रोटी अपनी कहानी सुनाती हैं। पहले मेरे बीज को मिट्टी में दबाया गया, मैंने कष्ट सहे हजार है, मै नही घबराई सर्दी, गर्मी, बरसात से तेज हवाओं के थपेड़े खाती रही, डटी रही अपने पथ पर, अरमान एक पुरा करने के लिए, मुझे दराती से काटा गया, मुझको बोरी में डाल कर बांधा गया, चक्की के दो पाटों से पीसी गई , मेरे दिल में इक अरमान मचला, सफर में कोई राम धुन सुनाएगा, मैं गुथी गई बेली गई, मै बेली गई तब राम धुन में डुब गई,
श्री राम जय राम जय जय राम
मेरा आकार गोलाकार हो गया, मैं तवे पर तपती तपती आन्नद में डुब गई, यही मेरी कहानी है। तप कर ही आनन्द में डुबा जाएगा।
साधक रोटी से कहता है कि रोटी तु धन्य है तेरा जीवन धन्य है। काश मैं भी अपने को तप से तपा लेता , मेरा जीवन धन्य हो जाता। मुझमें ज्योति जागृत हो जाती, परम प्रकाश रुप हो जाता। पग पग पर प्रभु को निहार लेता। ह्दय में प्रभु विराजते, जन जन को आत्मज्ञान का पाठ पढ़ा देता।जय श्री राम अनीता गर्ग