तपती गर्मी का समय था. घने जंगल में एक बरगद के पीड़े के नीचे एक स्त्री बैठी थी. वह नवविवाहिता लग रही थी, उसकी गोद में पति का सिर था, जिसे वह सहला रही थी. भीषण गर्मी से परेशान और सिर में दर्द के कारण वह लकड़ी काटना छोड़ कर पेड़ से नीचे उतर आया और पत्नी की गोद में विश्राम करने लगा. यह दंपती कोई और नहीं सत्यवान और सावित्री थे. पति की पीड़ा देख सावित्रि को देवर्षि नारद की भविष्यवाणी याद आ गई.
देवर्षि नारद ने सावित्री के पिता अश्वपति से कहा था कि महाराज सत्यवान अल्पायु है, इसलिए इस संबंध को रोक लीजिए. इस पर सावित्री ने अपनी मां की शिक्षाओं के खंडन का भय दिखाया. वह दृढ़ होकर बोली, सती, सनातनी स्त्रियां अपना पति एक बार ही चुनती हैं. इस तरह सावित्री साल्व देश के निर्वासित राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की गृहलक्ष्मी बनकर तपोवन में आ गई. आज देवर्षि के बताए अनुसार वही एक वर्ष पूर्ण होने वाली तिथि है, जिस दिन उसके पति का परलोक गमन होना तय था. तभी तो सुबह से विचलित मन लिए सावित्री सत्यवान के साथ ही वन में चली आई थी. अभी वह आम के पेड़ से लकड़ियां चुन ही रहे थे कि भयंकर पीड़ा और चक्कर आने के कारण वह जमीन पर गिर पड़े.
यमराज ने हर लिए सत्यवान के प्राण
इतने में यमराज प्रकट हुए, वह सत्यवान की आत्मा को पाश से खींच कर ले जाने लगे. इसके बाद यमराज सत्यवान के शरीर में से प्राण निकालकर उसे पाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए. सावित्री बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां जाऊंगी. तब यमराज ने कहा, ऐसा असंभव है पुत्री, सावित्री ने देवी सीता का उदाहरण दिया कि वह भी तो पति संग वन गईं थीं, तो मैं यमलोक भी चलूंगी. या तो आप मुझे भी साथ ले चलें, या फिर मेरे भी प्राण ले लें. यमराज प्रकृति के नियम विरुद्ध सावित्री के प्राण नहीं ले सकते थे. उसे समझाते हुए कहा मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता तू मनचाहा वर मांग ले.
मांग लिया परिवार का संपूर्ण सुख
तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर के आंखे मांग ली. यमराज ने कहा तथास्तु, लेकिन वह फिर उनके पीछे चलने लगी. तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए. उसके बाद तीसरा वर मांगा मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों. यमराज ने फिर कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो. तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों. यमराज ने कहा तथास्तु.
इसलिए होती है वटसावित्री पूजा
यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़े आगे बढऩे लगे. सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ तो सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं. आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आर्शीवाद दिया है. यह सुनकर यम सोच में पड़ गए कि अगर सत्यवान के प्राण वह ले जाएंगे तो उनका वर झूठा होगा. तब यमराज ने सत्यवान को पुन: जीवित कर दिया. इस तरह सावित्री ने अपने सतीत्व से पति के प्राण, श्वसुर का राज्य, परिवार का सुख और पति के लिए 400 वर्ष की नवीन आयु भी प्राप्त कर ली. इस कथा का विवरण महाभारत के वनपर्व में मिलता है. यह संपूर्ण घटना क्रम वट वृक्ष के नीचे घटने के कारण सनातन परंपरा में वट सावित्री व्रत-पूजन की परंपरा चल पड़ी.
It was hot summer time. A woman was sitting under a banyan tree in a dense forest. She looked like a newly wed, with her husband’s head in her lap, whom she was caressing. Troubled by the scorching heat and due to headache, he left cutting wood and came down from the tree and started resting in the lap of his wife. This couple was none other than Satyavan and Savitri. Seeing her husband’s pain, Savitri remembered the prediction of Goddess Narada.
Devarshi Narada had told Savitri’s father Ashwapati that Maharaj Satyavan is short-lived, so stop this relationship. On this Savitri showed fear of refutation of her mother’s teachings. She firmly said, Sati, Sanatani women choose their husband only once. In this way, Savitri came to Tapovan as the home Lakshmi of Satyavan, the son of the exiled king Dyumatsen of the Salva country. Today is the date of completion of one year as told by Devarshi, on which her husband was supposed to go to the next world. That’s why Savitri had gone to the forest with Satyavan with a disturbed mind from the morning. Right now he was picking wood from the mango tree when he fell on the ground due to severe pain and dizziness.
Yamraj took Satyavan’s life for every
At this time Yamraj appeared, he started dragging Satyavan’s soul from the loop. After this, Yamraj took out his life from Satyavan’s body and tied him in a loop and went towards the south. Savitri said wherever my husband is taken, I will also go there. Then Yamraj said, it is impossible daughter, Savitri gave the example of Goddess Sita that if she too had gone to the forest with her husband, then I would also go to Yamlok. Either you take me with you, or take my life too. Yamraj could not take the life of Savitri against the laws of nature. Explaining to him said that I cannot return his life, you should ask for any boon you want.
sought complete happiness of the family
Then Savitri asked for the eyes of her father-in-law in the groom. Yamraj said hi, but she again started following him. Then Yamraj again explained to him and asked to ask for a boon, he asked for another boon that my father-in-law should get his kingdom back. After that asked for the third boon, my father, who has no son, should have a hundred sons. Yamraj again said, Savitri, if you want to return, then ask me for some other boon. Then Savitri said that I should have a hundred successful sons from Satyavan. Yamraj said yes.
That’s why Vatsavitri Puja is done
Yamraj then started moving forward holding Satyavan’s life in his loop. Savitri still did not give up, then Yamraj said that you go back, then Savitri said how can I return. You have blessed me to produce a hundred successful sons from Satyavan. Hearing this, Yama got into thinking that if he would take away Satyavan’s life, then his groom would be a liar. Then Yamraj revived Satyavan. In this way, Savitri acquired the life of her husband, the kingdom of father-in-law, happiness of the family and a new age of 400 years for her husband by her chastity. The description of this story is found in the Vanparva of Mahabharata. Due to this whole sequence of events taking place under the Vat tree, the tradition of Vat Savitri fasting-worship started in the Sanatan tradition.