असली आजादी का अर्थ

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“मैं तुम्हारी माँ के बंधन मे और नहीं रह सकती, मुझे अलग घर चाहिए जहाँ मैं खुल के साँस ले सकूँ।” पलक रवि को देखते ही ज़ोर से चिल्ला उठी।

बात बस इतनी थी कि सुलभा जी ने रवि और पलक को पार्टी मे जाता देख कर इतना भर कहा था कि वो रात दस बजे तक घर वापस आ जाए। बस पलक ने इसी बात को तूल दे दिया और दो दिन बाद ही उसने किरण के घर किटी मे उसे मकान ढूंढने की बात भी कह दी।

“मुझे मम्मी जी की गुलामी मे रहना पसंद नहीं है ।”

“पलक” तुम्हारी तरह एक दिन मैं भी यही सोच कर अपनी सास से अलग हो गई थी।” किटी ख़तम होते ही किरण पलक से मुख़ातिब थी।

“तभी तो आप आज़ाद हो।” पलक ने चहक कर कहा तो किरण का स्वर उदासी से भर गया, किरण पलक से दस वर्ष बड़ी थी।

“नहीं बल्कि तभी से मैं गुलाम हो गई, जिसको मैं गुलामी समझ रही थी वास्तव मे आज़ादी तो वही थी।”

“वो कैसे?”

“पलक.. जब मैं ससुराल मे थी दरवाज़े पर कौन आया, मुझे मतलब नहीं था क्योंकि मैं वहाँ की बहू थी। घर मे क्या चीज़ है क्या नहीं इससे भी मैं आज़ाद थी, दोनों बच्चे दादा-दादी से हिले थे। मुझे कहीं आने-जाने पर पाबंदी नहीं थी, पर कुछ नियमों के साथ, जो सही भी थे, पर जवानी के जोश मे मैं अपने आगे कोई सीमा रेखा नहीं चाहती थी। मुझे ये भी नहीं पसंद था कि मेरा पति आफिस से आकर सीधा पहले माँ के पास जाए।”

“तो!! फिर ” पलक की उत्सुकता बढ़ गई।

“मैंने दिनेश को हर तरह से मना कर अलग घर ले लिया और फिर मैं दरवाज़े की घंटीं, महरी, बच्चों, धोबी, दिनेश सबके वक्त की गुलाम हो गई।

अपनी मरज़ी से मेरे आने-जाने पर भी रोक लग गई क्योंकि कभी बच्चों का होमवर्क कराना है, तो कभी उनकी तबीयत खराब है। हर जगह बच्चों को ले नहीं जा सकते। अकेले भी नहीं छोड़ सकते। तो मजबूरन पार्टियां भी छोड़नी पड़ती जबकि ससुराल मे रहने पर ये सब बंदिश नहीं थीं।

ऊपर से मकान का किराया और फालतू के खर्चे अलग, फिर दिनेश भी अब उतने खुश नहीं रहते।” किरण की आँखें नम हो उठीं।

“फिर आप वापस क्यों नहीं चली गयीं?”

“किस मुँह से वापस लौटती” ?

इन्होंने एक बार मम्मी से कहा भी था, पर पापा ने ये कह कर साफ़ मना कर दिया कि, “एक बार हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला है अब दूसरा झटका खाने की हिम्मत नहीं है, बेहतर है अब तुम वहीं रहो।”

“ओह!!! “

“पलक घर से बाहर क़दम रखना बहुत आसान है पर जब तक आप माँ-बाप के आश्रय मे रहते हैं आपको बाहर के थपेड़ों का तनिक भी अहसास नहीं होता, माँ-बाप के साथ बंदिश से ज़्यादा आज़ादी होती है पर हमें वो पसंद नहीं होती। एक बार बाहर निकलने के बाद आपको पता चलता है कि आज़ादी के नाम पर ख़ुद अपने पाँव मे जंज़ीरें डाल लीं। बड़ी होने के नाते तुमसे यही कहूंगी सोच-समझ कर ही ये क़दम उठाना।”

मन ही मन ये गणित दोहराते हुए पलक एक क्षण मे निर्णय ले चुकी थी-उसे किरण जैसी गुलामी नहीं चाहिए। घर की ओर चलते बढ़ते कदमों के साथ साथ ही वो मन ही मन बुदबुदा रही थी, की घर पहुंचते ही सासु मां के पैर छूकर क्षमा मांग लूंगी और सदा उनके साथ ही रहूँगी।

*_”मां बाप को साथ नही रखा जाता, मां बाप के साथ रहना होता है”



“I can’t live in the bondage of your mother anymore, I want a separate home where I can breathe freely.” Palak cried loudly on seeing Ravi.

The only thing was that Sulbha ji had told Ravi and Palak enough to see that they should come back home by ten o’clock in the night. Just Palak gave a boost to this matter and after two days he also told her to find a house in Kiran’s kitty.

“I don’t like being in my mother’s slavery.”

“Palak” Like you, one day I also separated from my mother-in-law thinking the same thing.” Kiran was talking to Palak as soon as the kitty was finished.

“Then you are free.” When Palak chirped, Kiran’s voice was filled with sadness, Kiran was ten years older than Palak.

“No, but since then I became a slave, which I was considering as slavery, in fact freedom was the same.”

“How’s that?”

“Palak.. Who came to the door when I was in the in-laws house, I didn’t care because I was the daughter-in-law there. I was free from what was there in the house, both the children were shaken by the grandparents. I had to come somewhere. There was no restriction on going, but with some rules, which were also right, but in the spirit of youth, I did not want any boundaries in front of me. I also did not like that my husband came straight from the office to the mother first Go.”

“So!! Then” Palak’s curiosity increased.

“I refused Dinesh in every way and took him to a separate house and then I became a slave to the doorbell, the doorbell, the lady, the children, the washerman, Dinesh everyone’s time.

On my own free will, my movement was also stopped because sometimes the children have to do homework, sometimes they are ill. Can’t take kids everywhere. Can’t even leave alone. So forced to leave the parties, while living in the in-laws’ house, all these restrictions were not there.

Apart from above the house rent and extravagant expenses, then even Dinesh is not as happy now.” Kiran’s eyes became moist.

“Then why didn’t you go back?”

“Which face does it return from”?

He had once told his mother, but the father flatly refused saying, “Once we have handled ourselves with great difficulty, now I do not have the courage to take another blow, it is better that you stay there now.” “

“Oh!!! “

“It is very easy to step out of the house, but as long as you live in the shelter of parents, you do not feel the slightest of the outside, there is more freedom with the parents than the restrictions but we do not like that Once you come out, you come to know that in the name of freedom, you yourself have put chains in your feet. As a grown-up, I would tell you to take this step only after thinking.

While repeating this math in her mind, Palak had taken a decision in a moment – ​​she does not want slavery like Kiran. Along with the steps moving towards the house, she was muttering in her mind that as soon as she reached home, she would touch the feet of her mother-in-law and ask for forgiveness and would always be with her.

*_”parents are not kept together, have to live with parents”

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