भगवान् की सारी क्रियाओं को देखकर उनके भक्त मुग्ध होते थे। यह देखकर, विचार कर हम भी मुग्ध होवें तो मन उन्हें छोड़कर नहीं जा सकता। उनकी मुखारविन्द की ओर देखें कि वे मधुर वाणी से बोल रहे हैं, ऐसा मन-ही-मन में ध्यान रखें कि भगवान का शरीर दिव्य है, अमृतमय है, आनन्दमय है। प्रत्येक अंग में अलौकिक चमक है, अलौकिक रस भरा है, बड़ा ही मधुर है। सारी इन्द्रियों को प्रिय लगे ऐसा दिव्य मधुर है ऐसी माधुर्य मूर्ति को याद करके मुग्ध होवे। जैसे बर्फ शीतल होती है, वह बर्फ शीत की मूर्ति है, इसी तरह भगवान् रस की मूर्ति हैं, आनन्द की मूर्ति हैं, प्रेम की मूर्ति हैं बर्फ छूने से ठण्ड की प्रतीति होती है, इसी तरह भगवान् को छूने से आनन्द प्रतीत होता है। प्रभु के साथ में जो मिलन है, उसमे आठवीं क्रिया बाद दे दो सात प्रकार की बात प्रभु से मन से करे |
His devotees were enchanted by seeing all the actions of the Lord. Seeing this and thinking about it, if we are also enchanted, then the mind cannot leave them. Look at his face and see that he is speaking with a melodious voice, so keep in mind that the body of the Lord is divine, nectar, blissful. Every part has a supernatural glow, it is full of supernatural juice, it is very sweet. You should be enchanted by remembering such a melodious idol, which is so divinely sweet that it is dear to all the senses. Just as ice is cold, that ice is an image of cold, similarly God is an image of rasa, an idol of joy, an idol of love, touching ice gives a feeling of cold, similarly touching the Lord gives a feeling of joy. In the meeting with GOD, after the eighth action, give seven types of talk to GOD with your heart.