विजयादशमी पर्व दशहरा 3

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दानवता पर देवत्व की ,असत्य पर सत्य की , अधर्म पर धर्म की एवं अन्याय पर न्याय की विजय के पावन पर्व विजयादशमी प्रभु श्री राम आप सभी आत्मीय परिवार जनों को सत्य, धर्म ,न्याय, परोपकार , त्याग के मार्ग पर चलने की शक्ति एवं सामर्थ्य प्रदान करें ।
इस विराट पावन पर्व पर आओ हम रावण के 10 सिरों का वास्तविक रहस्य समझें–
वास्तविक अर्थ में यदि रामायण के तत्व दर्शन को समझने का प्रयास करें तो रामायण का प्रत्येक पात्र हमारी अंतः स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है और उसी अनुसार रावण कोई व्यक्ति विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, बल्कि रावण प्रत्येक व्यक्ति के अंदर विद्यमान 10 प्रकार के दुर्गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। ये 10 दुर्गुण जिस व्यक्ति में जिस स्तर पर विद्यमान हैं ,वह आज भी उस स्तर तक रावण ही है । राम भी कोई व्यक्ति विशेष नहीं है ,राम भी हमारे अंतस में विद्यमान गुणों का प्रतिनिधित्व करने वाली हमारी आत्मा का ही नाम है । जिस व्यक्ति में आत्मा की उन्नति करवाने वाले और परमात्मा के समतुल्य बनाने वाले वे दिव्य गुण जिस जिस अनुपात में विद्यमान हैं ,वह उतना ही राम के नजदीक है, वह उतना ही राम को अपने अंतस्थ में जीवंत रूप में धारण करता है।
आओ देखें हम राम हैं या रावण- सत्य ,धर्म , न्याय ,त्याग ,तपस्या, तितिक्षा ,नम्रता ,धैर्य, साहस, शौर्य , ब्रम्हचर्य। यही राम के गुण है और यह गुण जिस व्यक्ति में इस स्तर पर विद्यमान हैं वह उतना ही राम के नजदीक है वह उतना ही राम ही है।

आओ अब रावण के गुण देखें – असत्य ,अधर्म ,अति काम, अति क्रोध ,अति लोभ, मोह, दंभ दुर्भाव, द्वेश,पाखंड । यही रावण के दस सिर हैं । इन्हीं को जलाना समाज के लिए आवश्यक है। तभी राम के गुणों का समाज में विस्तार किया जा सकेगा और राम राज्य की स्थापना की जा सकेगी ।जिस जिस व्यक्ति में ये गुण एवं अवगुण जिस- जिस अनुपात में विद्यमान हैं वह जीता जागता उतना ही राम एवं रावण है । इसलिए रावण का दहन करते हुए हम अपने आपको अवश्य देख लें कि कहीं हम स्वयं रावण तो नहीं हैं? अब यदि हम रावण हैं तो हम राम बनने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं ?और यदि नहीं कर रहे हैं तो फिर हमें रावण का पुतला जलाने का कोई अधिकार नहीं हैं,क्योंकि हम अज्ञानी हैं,सत्य से भटक गए हैं ।
यदि हो सके तो इस दशहरे पर वास्तविक रूप में रावण को जलाने का संकल्प अपने अंतस्थ में धारण करें और राम को अपने हृदय में स्थान देने का दृढ़ निश्चय करें ,तभी हम वास्तविक अर्थ में इस संसार को स्वर्ग से सुंदर बना सकेंगे और तभी यह संसार कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा,तभी राम राज्य की स्थापना हो सकेगी ,किंतु यह रामराज्य पहले हमारे अंतस्थ में ही स्थापित होगा, तभी यह बाहर समाज में अपना विस्तार प्राप्त कर सकेगा । रावण दहन के द्वारा प्रतिवर्ष हमारी सनातन परंपरा यही संदेश देती है किंतु हमने इसे एक परिपाटी समझ लिया है। भूल यहीं से कर रहे हैं ,बहुत बड़ी भूल । इसे सुधारने की आवश्यकता है। हमें अपने अंतस्थ से इन दुर्गुणों को जलाकर के राख करना है ,तभी सभ्य समाज का निर्माण हो सकेगा । मानव मात्र के ही नहीं ,प्राणी मात्र के लिए हितकारी समाज बनाया जा सकेगा और इन दुर्गुणों पर राम के गुणों की विजय होने पर ही हम वास्तविक रूप में विजयादशमी का पर्व मनाने का अधिकार स्थापित कर सकेंगे। वरना अभी तो हम अपनी हार का ही उत्सव मना रहे हैं। हम जीते ही नहीं हैं, हम हारे हुए हैं और फिर भी जीत का जश्न मना रहे हैं। भगवान श्रीराम ने तो इन दुर्गुणों को जीत लिया था ,इसलिए उनके लिए तो यह दिन विजय का दिन था ,विजय का दिन है किंतु क्या हमारे लिए भी यह विजय का दिन है?
एक बार फिर से आप सभी आत्मीय परिवारजनों को भगवान श्री राम की विजय के दिवस विजयादशमी महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
सत्यमेव जयते जय श्री राम
जय मां आदिशक्ति



On the auspicious occasion of victory of divinity over demons, truth over untruth, religion over unrighteousness and justice over injustice, Vijayadashami Lord Shri Ram wish you all soulful family members the strength and power to walk on the path of truth, religion, justice, charity, renunciation. give . Come on this great holy festival, let us understand the real secret of the 10 heads of Ravana. In real sense, if we try to understand the philosophy of Ramayana, then each character of Ramayana represents our inner state and accordingly Ravana does not represent any particular person, but Ravana is the source of 10 types of evils present inside each person. represents. The level in which these 10 bad qualities are present in a person, he is still Ravana till that level. Ram is also not a particular person, Ram is also the name of our soul representing the qualities present in us. The proportion in which a person has those divine qualities that make the soul elevate and equal to the Supreme Soul, the more he is closer to Rama, the more he imbibes Rama in a living form within himself. Come see whether we are Rama or Ravana – Truth, Dharma, Nyaya, Renunciation, Tapasya, Titiksha, Humility, Patience, Courage, Bramhacharya. These are the qualities of Rama and the person in whom these qualities are present at this level, the closer he is to Rama, the more he is Rama.

Come now let’s see the qualities of Ravana – untruth, adharma, too much work, too much anger, too much greed, attachment, conceit, malice, malice, hypocrisy. These are the ten heads of Ravana. It is necessary for the society to burn these. Only then the qualities of Rama can be expanded in the society and the kingdom of Rama can be established. Therefore, while burning Ravana, we must see ourselves whether we are Ravana ourselves? Now if we are Ravana then what are we trying to become Rama? And if we are not doing then we have no right to burn the effigy of Ravana, because we are ignorant, have strayed from the truth. If possible, on this Dussehra, keep the resolve to burn Ravana in real form and make a firm determination to give place to Rama in our heart, then only we will be able to make this world beautiful from heaven in real sense and only then this world Will be able to progress on the path of welfare, then only Ram Rajya will be established, but this Ram Rajya will be established first within us, only then it will be able to achieve its expansion in the society outside. Our Sanatan tradition gives this message every year through Ravana Dahan, but we have taken it as a tradition. Making a mistake from here, a big mistake. It needs to be rectified. We have to burn these evil qualities to ashes from our heart, then only a civilized society can be built. Not only for human beings, but only for animals, a beneficial society can be created and only after the victory of the qualities of Rama over these evils, we will be able to establish the right to celebrate the festival of Vijayadashami in real form. Otherwise we are just celebrating our defeat. We have not just won, we have lost and yet we are celebrating victory. Lord Shri Ram had conquered these evils, so for him this day was a day of victory, a day of victory, but is it a day of victory for us too? Once again best wishes to all of you dear family members on Vijayadashami Mahaparv, the day of victory of Lord Shri Ram. Satyamev Jayate Jai Shri Ram jai maa adishakti

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