पौराणिक महत्व
शास्त्रों के अनुसार भाई को यम द्वितीया भी कहते हैं इस दिन बहनें भाई को तिलक लगाकर उन्हें लंबी उम्र का आशीष देती हैं और इस दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है ब्रजमंडल में इस दिन बहनें यमुना नदी में खड़े होकर भाईयों को तिलक लगाती हैं।
अपराह्न व्यापिनी कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है।
भाई दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं।
यदि बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराये तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल भी लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलती हैं।
“गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े”
इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिस्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस सन्दर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।
भैया दूज की कथा
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।
भाई दूज तिलक मुहूर्त
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अपराह्न व्यापिनी कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन भाईदूज मनाई जाती है। तदनुसार इस वर्ष 26 अक्टूबर बुधवार को दोपहर 14 बजकर 43 मिनट के बाद भाईदूज का शुभ मुहूर्त रहेगा। उत्तर भारत में अधिकांश लोग उदय कालिक एवं मध्यान्ह तक भाईदूज को स्वीकार कर लेते है परन्तु वर्तमान परिस्थिति अनुसार जो लोग 26 अक्टूबर के दिन भाई दूज सम्बन्धित कृत्य ना कर सकें वो लोग 27. अक्टूबर दिन 12:46 से पहले भाईदूज की पूजा सम्पन्न कर सकते हैं।
mythological significance
According to the scriptures, brother is also called Yama Dwitiya, on this day sisters bless their brother by applying tilak and on this day Yamraj, the god of death is worshipped. Huh.
The festival of Bhai Dooj is celebrated on the afternoon of Kartik Shukla Dwitiya.
Bhai Dooj is also known as Brother Dwitiya. The main goal of this festival is to establish the sacred relation and love between brother and sister. On this day sisters also perform Beri Puja.
If the sister gives food to the brother with her own hands, then the brother’s age increases and the troubles of life are removed.
In this puja, sisters also apply rice solution on the palm of the brother, put vermilion on it, put pumpkin flowers, betel leaves, betel nut mudra etc.
“Ganga worship Yamuna, Yami worship Yamraj, Subhadra worship Krishna, Ganga Yamuna neer flow my brother’s life increases”
Such words are said because it is believed that even if a fierce animal is bitten on this day, Yamraj’s messengers will not take the brother’s life. Somewhere on this day, sisters apply tilak on their brother’s head and perform their aarti and then tie Kalawa in the palm. To sweeten the brother’s mouth, Makhan Misri feeds him. In the evening, sisters light a four-faced lamp in the name of Yamraj and keep it outside the house. At this time, if an eagle is seen flying in the sky above, then it is considered very auspicious. In this context, it is believed that Yamraj has accepted the prayers that sisters are asking for the brother’s age or he will go and narrate the message of sisters to Yamraj by an eagle.
Story of Bhaiya Dooj, the name of the wife of Lord Surya Narayan was Chhaya. Yamraj and Yamuna were born from his womb. Yamuna used to love Yamraj very much. She would request him to come to his house and have food with his favorite friends. Yamraj, who was busy with his work, kept postponing the matter. The day of Kartik Shukla has come. Yamuna again invited Yamraj for food that day, and promised him to come to her home.
Yamraj thought that I am going to lose life. Nobody wants to invite me to their home. It is my duty to follow the goodwill with which my sister is calling me. While coming to his sister’s house, Yamraj freed the living beings who lived in hell. Yamuna’s happiness knew no bounds when she saw Yamraj coming to her home. After bathing, he served food after worshiping. Yamraj, pleased with the hospitality extended by Yamuna, ordered the sister to ask for a boon.
Yamuna said that Bhadra! You come to my house on this day every year. Like me, the sister who treats her brother with respect on this day should not be afraid of you. Yamraj gave the invaluable garments to Yamuna by saying ‘Tatastu’ and made the way to Yamlok. From this day the tradition of the festival was formed. It is believed that those who accept hospitality do not fear Yama. That is why Yamraj and Yamuna are worshiped on Bhaiya Dooj.
Bhai Dooj Tilak Muhurta 〰 Bhai Dooj is celebrated on the day of Kartik Shukla Dwitiya in the afternoon. Accordingly, this year, on Wednesday, October 26, after 14.43 pm, Bhai Dooj will be an auspicious time. Most of the people in North India accept Bhai Dooj till dawn and midday, but according to the present situation, those who cannot perform Bhai Dooj related work on 26th October, they can complete the worship of Bhai Dooj before 27th October 12:46. Huh.