|| श्री हरि: ||
गत पोस्ट से आगे………..
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तब हम अज्ञानी क्यों बनें | सब परमात्मा हैं – यह मानने में क्या लगता है | इस प्रकार जो भजता है, वही महात्मा है | जब ऐसी बात है तो हम सबको परमात्मा ही क्यों न समझें |
यह बात मनुष्य जन्म में ही मानी जा सकती है, पशु, पक्षी आदि योनियों में यह समझने का कोई साधन नहीं है | हनुमानजी-जैसी बात तो असंख्य कोटि जीवों में से किसी एक में ही घटती है | उस प्रकार की आशा न रखकर हमें तो इसी जन्म में, इस जन्म के थोड़े से हिस्से में ही भगवान् को प्राप्त कर लेना चाहिये |
परमात्मा के निराकार स्वरूप के लिये यह युक्ति समझनी चाहिये –
बादल के बाहर-भीतर सर्वत्र आकाश है, बादल की तरह दृश्य शरीर में सर्वत्र विज्ञानानन्दघन परमात्मा बाहर-भीतर, ऊपर-नीचे सब जगह परिपूर्ण हो रहे हैं | परमात्मा के संकल्प के आधार पर ही यह सृष्टि है | हम नेत्रों को बन्द कर लें | अपने भीतर-बाहर, ऊपर-नीचे आनन्द-ही-आनन्द परिपूर्ण है, ऐसा समझ लेवें | हम आनन्द-ही-आनन्द से परिपूर्ण हैं | यह शरीर ब्रह्म से ही उत्पन्न हुआ है, उसी में स्थित है, उसी में लीन हो जायगा | जैसे बादल आकाश से ही उत्पन्न है, उसी में स्थित है और उसी में लीन हो जाता है |
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शेष आगामी पोस्ट में |
गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित जयदयाल गोयन्दका की पुस्तक *भगवान् कैसे मिलें ?* (१६३१) से |
, Sri Hari: || Following on from the last post………… , Then why should we be ignorant. All are divine – what does it take to believe this. One who worships in this way is a Mahatma. When this is the case then why don’t we consider everyone as God. This thing can be understood only in the human birth, there is no means to understand this in the forms of animals, birds etc. Hanuman ji – such a thing happens only in one of the innumerable crores of living beings. By not keeping that kind of hope, we should attain God in this birth itself, in a small part of this birth only. This trick should be understood for the formless form of God – There is sky everywhere outside and inside the cloud, like a cloud, in the visible body everywhere, the divine bliss of knowledge is being filled everywhere, outside-inside, above-below. This creation is based on the resolution of God. Let us close our eyes. Realize that you are full of joy and happiness inside and outside, above and below. We are full of joy and joy. This body has originated from Brahman, is situated in Him, will merge into Him only. As the cloud is born from the sky, it is situated in it and merges in it. — :: x :: — — :: x :: — Rest in upcoming post. From Jaidayal Goyandka’s book *How to meet God?* (1631) published by Geetapress, Gorakhpur.