भगवान् गौतम बुद्ध श्रावस्ती में बिहार कर रहे थे। एक दिन विशेष उत्सव था। धर्मकथा श्रवणके लिये विशाल जन समूह उनकी सेवामें उपस्थित था। विशाखा श्री इस धर्म परिषद् में सम्मिलित थी भगवान्के सामने आने के पहले विहारके दरवाजेपर ही उसने अपना महालता प्रसाधन (विशेष आभरण) उतारकर दासीको सौंप दिया था तथागतके सम्मुख पहनकर जाने में उसे बड़ा संकोच था।
धर्म-परिषद् समाप्त होनेपर अपनी सुप्रिया नामकी दासी के साथ विहारमें ही घूमती रही। दासी आभरण भूल गयी।
‘विशाखाका महालता-प्रसाधन छूट गया है, भन्ते । ‘ स्थविर आनन्दने तथागतका आदेश माँगा। परिषद् समाप्त होनेपर भूली वस्तुओंको आनन्द ही सम्हाला करते थे। शास्ताने आभरणको एक ओर रखनेका आदेश दिया।
‘आर्य! मेरी स्वामिनीके पहनने योग्य यह अलङ्कार नहीं रह गया है। आपके हाथसे छू गयी वस्तुको ये विहारकी सम्पत्ति मानती हैं।’ सुप्रियाने विशाखाके उदार दानकी प्रशंसा की। वह बिहारके दरवाजेपर लौट गयी; विशाखा रथ रोककर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी स्थविर आनन्द दासीके कथनसे विस्मित थे। वे विशाखाकी त्यागमयी वृत्ति और विशेष दानशीलतासे प्रसन्न थे।विशाखाने सोचा कि महालता प्रसाधन रखने रखाने में महाश्रमणको विशेष चिन्ता होगी। इसका भिक्षु संघके लिये दूसरी तरहसे भी सदुपयोग हो सकता है। उसने प्रसाधन लौटा दिया।
दूसरे दिन बिहारके दरवाजेके ठीक सामने एक भव्य रथ आ पहुँचा। विशाखा उतर पड़ी। उसने तथागतका अभिवादन किया, बैठ गयी।
“भन्ते, मैंने घरपर सुनारोंको बुलवाया था; प्रसाधनका मूल्य नौ करोड़ उन लोगोंने (गलाने के बाद) निश्चित किया और एक लाख बनवानेका मूल्य लगाया गया। नौ करोड़ एक लाख आपकी सेवामें उपस्थित है।’ विशाखाने आदेश माँगा।
‘तुम्हारे दानकी मर्यादा स्तुत्य है। बिहारके पूर्व दरवाजेपर संघके लिये वासस्थानका निर्माण उचित है।’ शास्ताने विशाखाको धर्मकथा, शील, दान आदिसे समुत्तेजित किया।
भगवान् बुद्धकी प्रसन्नताके लिये विशाखाने भूमि खरीदी और महालता-प्रसाधनके पूरे मूल्यसे भव्य प्रासादका निर्माण कराया। उसकी श्रद्धा धन्य हो गयी। श्रावस्तीकी अत्यन्त धनी रमणीके अनुरूप ही आचरण था उसका दानकी मर्यादाका ज्ञान था उसे।
-रा0 श्री0 (बुद्धचर्या)
Lord Gautam Buddha was doing Bihar in Shravasti. One day there was a special festival. A huge crowd was present in his service to listen to the religious story. Vishakha Shri was involved in this Dharma Parishad. Before coming in front of God, at the door of the monastery, she had taken off her Mahalata (special ornament) and handed it over to the maidservant.
After the religious council was over, she used to roam around in the monastery with her maidservant named Supriya. The maid forgot the ornaments.
Visakha’s Mahalata-Prasadhan has been missed, Bhante. ‘ Sthavir Anand asked for the order of Tathagat. After the council was over, Anand used to take care of forgotten things. Shastane ordered to keep the ornaments aside.
‘Arya! This ornament is no longer fit to be worn by my mistress. She considers the thing touched by your hand as the property of Vihar. Supriya praised Visakha’s generous donation. She returned to Bihar’s door; Visakha was waiting for him by stopping the chariot. Sthavir Anand was astonished by the statement of the maidservant. He was pleased with Vishakha’s sacrificial attitude and special charity. Vishakha thought that Mahashraman would be particularly concerned about keeping Mahalata’s toiletries. It can be put to good use for the Bhikshu Sangh in another way as well. He returned the toiletries.
The next day a grand chariot arrived right in front of Bihar’s door. Visakha got down. She greeted Tathagat, sat down.
“Bhante, I had called the goldsmiths at home; Those people (after smelting) fixed the cost of the cosmetics at nine crores and the cost of making one lakh was imposed. Nine crore one lakh are present in your service. Visakhana asked for orders.
‘Your charity’s dignity is praiseworthy. It is appropriate to build a residence for the Sangh at the east gate of Bihar. Shastane inspired Visakha with religious stories, modesty, charity etc.
For the pleasure of Lord Buddha, Visakhane bought land and constructed a grand palace with the full value of Mahalata-Prasadhan. His faith became blessed. Shravasti’s behavior was similar to the very rich Ramani, she had knowledge of the dignity of charity.