“क्यों री ! आज सागमें नमक डालना भूल | गयी?’- पैठनके परम कर्मठ षट्शास्त्री बहिरंभट्टने अपनी पत्नीसे पूछा ।
पत्नीने जवाब दिया- ‘साठ साल बीत गये, अभीतक आपकी जीभका चटोरपन नहीं गया! अब तो कुछ नियन्त्रण करते !”
बहिरंभट्टने पत्नीसे विनम्रतापूर्वक कहा – ‘तुमने आज दिव्य अञ्जन लगाकर मेरी आँखें खोल दीं।’ और तत्काल वे आत्मज्ञान प्राप्त करके जीवन सार्थक करनेके लिये निकल पड़े।
कुछ दूर एकान्तमें जाकर उन्होंने सोचा- ‘क्या करूँ? गृहस्थ बना रहूँ तो संसारसे पिण्ड नहीं छूटता और संन्यास ले लूँ तो भी संसार नहीं छोड़ता।’ अन्तमें वे एक निष्कर्षपर पहुँचे। पास ही एक काजीके घर गये और उससे मुस्लिम धर्मकी दीक्षा ले ली, ताकि अपने लोगोंसे पिण्ड छूटे।
बहिरे खाँको वहाँ भी शान्ति नहीं मिली और वे पुनः गङ्गातीरपर आकर अपनी भूलपर बिलख-बिलखकर रोने लगे। ब्राह्मणोंको दया आ गयी और उन्होंने उन्हें शुद्धकर पुनः हिंदू बना लिया।
अब तो बहिरंभट्ट और भी लोगोंकी चर्चाका विषय बन गये। मुसलमान आकर कहने लगे-‘हमारे मियाँको अ तुमने हिंदू क्यों बनाया?’ हिंदू कहने लगे-‘हमारे अ बहिरंभट्टको ही तुमने बहिरे खाँ बनाया, पहला अपराधतुम्हारा ही है।’
बहिरंभट्ट बड़े असमंजसमें पड़ गये। वे पागल हो उठे, उन्होंने कहा-‘ आखिर मैं कौन हूँ? यदि बहिरे खाँ हूँ तो मेरा कान बिंधा ही हुआ है, उसके छेद अभीतक भर नहीं गये और बहिरंभट्ट हो गया तो सुनत किया मांस फिर कहाँ आया है, देखो।’
पगला बहिरंभट्ट यह जानने के लिये कि ‘मैं कौन हूँ?’ वहाँसे निकल पड़ा और इधर-उधर भटकने लगा। भटकते-भटकते वह एक स्थानपर आया; जहाँ सिद्ध नागनाथ अपने शिष्योंद्वारा स्वयं जीवित समाधि लेनेकी तैयारी करा रहे थे। बहिरंभट्टने कहा-‘हाँ, यहाँ ‘मँ कौन ?’ इसका पता चलेगा।
उसने सिद्धसे भी जाकर यही प्रश्न और बितर्क किया। सिद्ध बिगड़ उठे। उन्होंने पासका दण्ड उठाकर भट्टके सिरपर दे मारा। बहिरंभट्टका शरीर चैतन्यविहीन हो गया।
फिर सिद्धने शिष्योंद्वारा उसके पिण्डको कूट काट, गोली बना अग्रिमें दे दिया। अनि शान्त होते ही सिद्धके देखनेके साथ राखमें प्राण संचरित हो गया। बहिरंभट्ट पुनः खड़े हो गये। गुरुने पूछा- ‘तू कौन ?’ वह चुप हो गया। सिद्धने भट्टके सिरपर हाथ रखा और उसे सिद्धान्त-ज्ञानका उपदेश दिया। बस, बहिरंभट्ट अपने-आपको समझ गया।
-गो0 न0 बै0 (भक्तिविजय, अध्याय 44)
“Why! Did you forget to add salt to the greens today?’- Paithan’s most diligent Shatshastri Bahirbhatta asked his wife.
The wife replied- ‘Sixty years have passed, yet the cleverness of your tongue has not gone! Now at least have some control!”
Bahirbhatta humbly said to his wife – ‘Today you opened my eyes by applying Divya Anjan.’ And immediately they set out to make life meaningful after attaining enlightenment.
After going some distance in solitude, he thought- ‘What should I do? If I remain a householder, I do not leave the world and even if I retire, I do not leave the world.’ At last they reached a conclusion. He went to a Qazi’s house nearby and took the initiation of Muslim religion from him, so that his people could get rid of the curse.
The deaf ears did not find peace even there and they again came to Gangateer and started crying bitterly for their mistake. The Brahmins felt pity and purified them and made them Hindus again.
Now Bahirbhatta has become the subject of discussion of more people. The Muslims came and said – ‘Why did you make our Miyanko a Hindu?’ The Hindus started saying- ‘You have made our Bahir Bhatt a deaf Khan, the first crime is yours.’
Bahirbhatta got confused. He became mad, he said – ‘ Who am I after all? If I am deaf, then my ear is already pierced, its holes are not yet filled and it has become deaf, so look where the circumcised flesh has come from.’
Pagla Bahirbhatta to know ‘Who am I?’ Got out of there and started wandering here and there. While wandering he came to a place; Where Siddha Nagnath was preparing himself to take a living tomb through his disciples. Bahirbhatta said – ‘Yes, here ‘mother who?’ It will be known.
He also went to Siddha and raised the same question and argument. Siddha got spoiled. He picked up the stick and hit it on Bhatt’s head. Bahirbhatta’s body became devoid of consciousness.
Then Siddha gave advances by his disciples by cutting his pind, making it into a bullet. As soon as he calmed down, with the sight of Siddha, life was transmitted in the ashes. Bahirbhatta stood up again. The Guru asked – ‘Who are you?’ He was silent. Siddha put his hand on Bhatta’s head and preached Siddhanta-Jnana to him. That’s all, Bahirbhatta understood himself.
– Go 0 Na 0 Bai 0 (Bhakti Vijay, Chapter 44)