दो भाई
बर्माके शान प्रान्तमें एक धनी किसान रहता था। मरते समय उसने अपने दोनों बेटोंको बराबर बराबर सम्पत्ति बाँट दी और सीख देते हुए कहा कि ‘तुम दोनों हमेशा अच्छे-से-अच्छा खाना खानेकी कोशिश करना। इससे तुम हमेशा मेरी तरह सुखी रह सकोगे।’
किसानके मरनेके बाद छोटे भाईने बड़े भाईसे कहा- ‘भैया! चलो, किसी बड़े शहरमें चलकर रहते हैं, वहीं हमें अच्छे-से-अच्छा खाना मिल सकता है।’
‘अगर तुम चाहो तो घरसे जा सकते हो, मैं तो यहीं गाँवमें रहूँगा और जो अच्छेसे अच्छा खाना यहाँ मिलेगा, वही खाऊँगा।’ बड़ेने कहा ।
छोटेने अपनी जमीन-जायदाद बेची और सारा पैसा लेकर शहर चला गया। शहरमें उसने बड़ा-सा घर लिया। अच्छे-से-अच्छा खाना बनवाकर खाने एवं आरामसे रहने लगा और सोचने लगा कि वह जल्दी ही मालदार हो जायगा। लेकिन हुआ इसका उलटा; जल्दी ही उसका सारा पैसा खत्म हो गया और फिर सारा सामान एवं मकान भी बिक गया। अतः उसे गाँवमें लौटना पड़ा।
गाँव आकर उसने देखा कि बड़ा भाई और भी अधिक मालदार हो गया है, तो उसने कहा- ‘भैया! मुझे वह खाना दिखाओ, जिसे खाकर तुम और भी मालदार हो गये। मैंने अच्छे-से-अच्छा खाना खाया, फिर भी कंगाल हो गया।’
‘खाना दिखाना क्या मैं तुम्हें खिलाऊँगा भी, लेकिन चलो, पहले खेतोंपर चलो।’ बड़ेने कहा और उसे खेतोंपर ले गया। वह खेतोंमें काम करने लगा और छोटेको भी कामपर लगा दिया।
काम करते-करते घण्टों बीत गये। दोनों भाई पसीने से तर-बतर हो गये, तो छोटेने कहा- ‘भैया! बहुत देर हो गयी काम करते-करते। अब तो अपना अच्छे-से-अच्छा खाना खिलाओ।’
‘अभी खिलाते हैं, जरा यह अधूरा काम तो पूरा कर लें।’ कहकर बड़ा फिर काममें जुट गया और छोटेको भी लगा दिया। काम करते-करते फिर घण्टों बीत गये तो बेहद थके और भूखे प्यासे छोटेने कहा- ‘भैया ! अब तो काम बन्द करो। अब मुझमें हाथ-पैर चलानेकी बिलकुल ताकत नहीं रही है।’
‘थोड़ा-सा काम और बाकी था, खैर छोड़ो।’ कहकर बड़ेने काम बन्द किया। हाथ-पैर धोये और पेड़की छायामें बैठ गया। फिर पोटली खोली और उसमेंसे रोटी निकालकर एक खुद ले ली और दूसरी उसे देकर बोला- ‘बहुत भूख लगी है न! तो पहले इसे खा लो, फिर घर चलते हैं।’
छोटेका तो भूखके मारे बुरा हाल था। उसने फौरन उस मोटी-सी सूखी रोटीके टुकड़े किये और खाने लगा। भूखके मारे उसे उस रोटीमें बहुत ही अच्छा स्वाद आया ।
बड़ेने पूछा- ‘कहो, रोटीका स्वाद कैसा है ?’
‘बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, ‘ कहते हुए उसने पूरी रोटी खत्म कर दी। ‘इस रोटीसे मुझमें जरा-सी जान आयी है। अब चलिये, घर चलकर मुझे अपना अच्छे से अच्छा खाना खिलाइये।’
‘यही तो मेरा सबसे अच्छा खाना है, क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा ?”
‘रोटी तो बहुत अच्छी लगी, लेकिन क्या यही आपका सबसे अच्छा खाना है ?’ आश्चर्यसे उसने पूछा।
बड़ेने कहा- ‘मेरे प्यारे भाई, मेहनत करनेके बाद कड़कड़ाकर भूख लगनेपर खाया गया खाना ही दुनियाका सबसे अच्छा खाना होता है, चाहे वह रूखी-सूखी रोटी ही क्यों न हो? पिताजीके कहनेका यही मतलब था । ‘ [ श्रीरोहताससिंहजी निर्वाण ]
दो भाई
बर्माके शान प्रान्तमें एक धनी किसान रहता था। मरते समय उसने अपने दोनों बेटोंको बराबर बराबर सम्पत्ति बाँट दी और सीख देते हुए कहा कि ‘तुम दोनों हमेशा अच्छे-से-अच्छा खाना खानेकी कोशिश करना। इससे तुम हमेशा मेरी तरह सुखी रह सकोगे।’
किसानके मरनेके बाद छोटे भाईने बड़े भाईसे कहा- ‘भैया! चलो, किसी बड़े शहरमें चलकर रहते हैं, वहीं हमें अच्छे-से-अच्छा खाना मिल सकता है।’
‘अगर तुम चाहो तो घरसे जा सकते हो, मैं तो यहीं गाँवमें रहूँगा और जो अच्छेसे अच्छा खाना यहाँ मिलेगा, वही खाऊँगा।’ बड़ेने कहा ।
छोटेने अपनी जमीन-जायदाद बेची और सारा पैसा लेकर शहर चला गया। शहरमें उसने बड़ा-सा घर लिया। अच्छे-से-अच्छा खाना बनवाकर खाने एवं आरामसे रहने लगा और सोचने लगा कि वह जल्दी ही मालदार हो जायगा। लेकिन हुआ इसका उलटा; जल्दी ही उसका सारा पैसा खत्म हो गया और फिर सारा सामान एवं मकान भी बिक गया। अतः उसे गाँवमें लौटना पड़ा।
गाँव आकर उसने देखा कि बड़ा भाई और भी अधिक मालदार हो गया है, तो उसने कहा- ‘भैया! मुझे वह खाना दिखाओ, जिसे खाकर तुम और भी मालदार हो गये। मैंने अच्छे-से-अच्छा खाना खाया, फिर भी कंगाल हो गया।’
‘खाना दिखाना क्या मैं तुम्हें खिलाऊँगा भी, लेकिन चलो, पहले खेतोंपर चलो।’ बड़ेने कहा और उसे खेतोंपर ले गया। वह खेतोंमें काम करने लगा और छोटेको भी कामपर लगा दिया।
काम करते-करते घण्टों बीत गये। दोनों भाई पसीने से तर-बतर हो गये, तो छोटेने कहा- ‘भैया! बहुत देर हो गयी काम करते-करते। अब तो अपना अच्छे-से-अच्छा खाना खिलाओ।’
‘अभी खिलाते हैं, जरा यह अधूरा काम तो पूरा कर लें।’ कहकर बड़ा फिर काममें जुट गया और छोटेको भी लगा दिया। काम करते-करते फिर घण्टों बीत गये तो बेहद थके और भूखे प्यासे छोटेने कहा- ‘भैया ! अब तो काम बन्द करो। अब मुझमें हाथ-पैर चलानेकी बिलकुल ताकत नहीं रही है।’
‘थोड़ा-सा काम और बाकी था, खैर छोड़ो।’ कहकर बड़ेने काम बन्द किया। हाथ-पैर धोये और पेड़की छायामें बैठ गया। फिर पोटली खोली और उसमेंसे रोटी निकालकर एक खुद ले ली और दूसरी उसे देकर बोला- ‘बहुत भूख लगी है न! तो पहले इसे खा लो, फिर घर चलते हैं।’
छोटेका तो भूखके मारे बुरा हाल था। उसने फौरन उस मोटी-सी सूखी रोटीके टुकड़े किये और खाने लगा। भूखके मारे उसे उस रोटीमें बहुत ही अच्छा स्वाद आया ।
बड़ेने पूछा- ‘कहो, रोटीका स्वाद कैसा है ?’
‘बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, ‘ कहते हुए उसने पूरी रोटी खत्म कर दी। ‘इस रोटीसे मुझमें जरा-सी जान आयी है। अब चलिये, घर चलकर मुझे अपना अच्छे से अच्छा खाना खिलाइये।’
‘यही तो मेरा सबसे अच्छा खाना है, क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा ?”
‘रोटी तो बहुत अच्छी लगी, लेकिन क्या यही आपका सबसे अच्छा खाना है ?’ आश्चर्यसे उसने पूछा।
बड़ेने कहा- ‘मेरे प्यारे भाई, मेहनत करनेके बाद कड़कड़ाकर भूख लगनेपर खाया गया खाना ही दुनियाका सबसे अच्छा खाना होता है, चाहे वह रूखी-सूखी रोटी ही क्यों न हो? पिताजीके कहनेका यही मतलब था । ‘ [ श्रीरोहताससिंहजी निर्वाण ]