एक धनवान् सेठकी कोठीके नीचे ही एक मोची बैठा करता था। वह जूते बनाता जाता था और भजनगाता जाता था। सेठ उदार थे, धर्मात्मा थे, भगवद्भक्त थे। वैसे तो अपने कार्य-व्यापारमें व्यस्त होनेके कारणमोचीकी ओर उनका ध्यान काहेको जाता; किंतु वे एक बार बीमार पड़ गये। रोग-शय्यापर पड़े पड़े मोचीके द्वारा गाये जाते भजन उन्हें बड़े प्रिय लगे। उन भजनोंको सुनकर मन भगवान्में लगा रहा। चित्त शरीरके रोगका चिन्तन न करके दूसरी ओर लगा रहे तो रोगके कष्टका बोध ही नहीं होता। सेठजीको भी मोचीके भजनोंके कारण कष्ट नहीं हुआ। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने मोचीको बुलवाया और उसे पचास रुपये दिये। रुपये लेकर मोची गया और उसका भजन गानाबंद हो गया। दूसरे दिन सबेरे वह मोची स्वयं सेठजीके पास पहुँचा। सेठजीने पूछा- ‘तुमने भजन गाना क्यों बंद कर दिया ?’
मोची बोला-‘इसीलिये तो मैं आपके पास आया हूँ । कृपा करके अपने ये रुपये ले लीजिये। रुपये मिले और भजन छूटा। मैं इन्हें सम्हालकर रखने तथा यह सोचनेमें व्यस्त हो गया कि इनका कैसे उपयोग करूँगा। रात्रिमें इनकी चिन्ताके मारे नींद भी ठीक नहीं आयी। मैं परिश्रम करके जो पाता हूँ, वही मेरे लिये बहुत है।’
A cobbler used to sit just below the house of a rich Seth. He used to make shoes and used to sing hymns. Seth was generous, religious, was a devotee of Bhagwad. By the way, being busy in his business, why would his attention go towards the cobbler; But once he fell ill. He loved the hymns sung by the cobbler lying on the sick bed. Listening to those bhajans, the mind was engaged in God. Instead of thinking about the disease of the body, if the mind is focused on the other side, then there is no understanding of the pain of the disease. Even Sethji was not troubled by the hymns of the cobbler. Pleased with this, he called Mochiko and gave him fifty rupees. He went to the cobbler with the money and his bhajan stopped singing. The cobbler himself reached Sethji in the morning the next day. Sethji asked – ‘Why did you stop singing hymns?’
The cobbler said – ‘ That’s why I have come to you. Please take this money of yours. Received money and missed hymns. I got busy keeping them and thinking how to use them. I could not sleep well at night due to his worries. What I get by working hard is enough for me.’