लोभका बुरा परिणाम

ancient amne machen amnye

जर्मनीके बसंवीक प्रदेशमें प्रमुख नगर है नोवर । इसके पास ही हैमेलिन नामका एक शहर है। इसकी एक ओर तो हैमेल नामकी छोटी नदी है, पर दक्षिणकीओर बेसर नदी बहुत बड़ी है। पहले यह और भी गहरी तथा चौड़ी थी। यह नगर अपनी किलेबंदीके लिये प्रसिद्ध रहा है। आजसे प्रायः 600 वर्ष पूर्व सन् 137622 जुलाईको वहाँ एक बड़ी विचित्र घटना घटी। वहाँ चूहे इतने अधिक बढ़ गये थे कि लोग उनसे । बेतरह तंग आ गये थे। बिल्ली और कुत्तेतक उनसे परेशान हो रहे थे और उनकी कोई चिकित्सा सफल ही हो रही थी। अन्तमें वे लोग टाउनहालमें एकत्र हुए और एक स्वरसे बोले-‘हमलोगोंका मेयर (प्रशासक) किसी कामका व्यक्ति नहीं है। हमारी विपत्तिका इसे कोई ध्यान नहीं है। अतएव इसे बंद करके कहीं भेज देना। चाहिये अथवा नदीमें डुबो देना चाहिये।’ उनके इस प्रस्तावको सुनकर प्रशासक तथा कारपोरेशन (सभा) का कलेजा काँप उठा। पर भगवत्कृपासे उसी क्षण एक विचित्र वेषधारी बाँसुरी बजानेवाला व्यक्ति वहाँ आया।। उसे देखते ही प्रशासकने बड़ी व्याकुलतासे उसका स्वागत किया। बजानेवालेने कुशल-प्रश्नके द्वारा सब कुछ जानकर कहा-‘मैं आपकी इस विपत्तिको तत्क्षण दूर करनेमें समर्थ हूँ; क्योंकि पृथ्वीपरके सारे जीवोंको मैं आकृष्ट कर सकता हूँ। अभी हालमें ही टाराटरीके राजाको मैंने मच्छरोंके कष्टसे मुक्त किया है। साथ ही एशिया में (भारत) निजामका चमगादड़ोंसे पिंड छुड़ाया है। पर पहले यह तो बतलाइये कि इसके बदले आपलोग मुझे देंगे क्या? क्या एक सहस्र (गिल्डर) मुद्राएँ आप मुझे दे सकते हैं?’ इसपर मेयर तथा कारपोरेशनके लोग चिल्ला उठे- ‘एक सहस्र क्या हमलोग पचास सहस्र मुद्रा दे देंगे। आप चूहोंको भगाइये। ‘

बेचारे वंशीवालेने अपनी बाँसुरी उठायी। पहले तो वह तनिक मुसकराया, फिर अपनी बाँसुरीको उसने अपने ओठोंपर लगाया और धीरे-धीरे शहरकी गलियोंसे चलना आरम्भ किया। वह जैसे-जैसे बाँसुरी बजाते हुए चलता था, पीछेसे चूहोंकी पंक्तियाँ उसका अनुगमन करती थीं। अन्तमें धीरे-धीरे नगरके सारे चूहे उसके पीछे लग गये और वह बेसर नदीमें प्रवेश कर गया। सारे चूहे नदीमें डूबकर नष्ट हो गये, पर एक चूहा उनमें बड़ा हृष्ट-पुष्ट था, वह किसी प्रकार तैरकर पार कर गया। सभी लोग इस तमाशेको देख रहे थे। ज्यों ही यह विपत्ति किनारे लगी, प्रशासकने लोगोंसे चिल्लाकर कहा- ‘अरे दौड़ो, जाओ, चूहोंके सारे बिलोंको अब बंद कर दो और उनके रहनेके स्थानोंको तोड़-फोड़दो।’ तबतक बाँसुरीवालेने वहाँ पहुँचकर पूर्व प्रतिश्रुत एक हजार मुद्राएँ माँग ।

“एक हजार गिल्डर ?’ मेयरकी आँखें लाल हो उठीं। ‘मित्र। हमलोगोंको धोखा नहीं दिया जा सकता। चूहे तो हमारी आँखोंके सामने ही नदीमें लय हो गये। अब उनका पुनः आना असम्भव है। हजार गिल्डरकी बात तो हमारी मजाक मात्र था। आओ, पचास मुद्राएँ जलपानके लिये तुम्हें दे दें।’

बाँसुरीवाला बोला-‘देखो, खेल मत करो मैं क्षण 1 भर भी नहीं रुकूँगा; क्योंकि दोपहर के भोजनके समय मैंने खलीफा बगदाद पहुँचनेकी प्रतिज्ञा की है उस बेचारेको बिच्छुओंने परेशान कर रखा है और जो तुम यह सोच रहे हो कि मैं अब तुम्हारा बुरा ही क्या कर लूँगा तो मैं दूसरे प्रकारको बाँसुरी भी बजाना जानता हूँ याद रखो, इस लोभका बहुत बुरा परिणाम होगा। वचन देकर यों मुकर जाओगे तो तुम्हें बुरी तरह रोना पड़ेगा।’

इसपर प्रशासक बड़ा लाल-पीला हुआ। उसने कहा-‘देखो, तुम जैसे अशिष्ट तथा तुच्छ व्यक्तिका तिरस्कार हम सहनेवाले नहीं तुमसे जितना भी बने, अपनी बाँसुरी बजाकर हमारा अनिष्ट कर लो। तुम बाँसुरी बजाते मर भी जाओ तो भी हमारा अब कुछ नहीं बिगड़ता ।””

बाँसुरीवालेने फिर एक बार गलीमें पैर रखा और फिर बाँसुरी बजायी। इस बार नगरके सभी बालक बालिकाएँ उसके पीछे हो लिये मेयर चुपचाप यह सब देख रहा था। न तो उसमें बोलनेकी शक्ति थी, न हिलने-डुलनेकी बाँसुरीवाला उनके आगे-आगे जा रहा था और सभी बालक उसके पीछे-पीछे। बेसर नदीके किनारेसे होकर वह कोपेलवर्ग पहाड़ीकी ओर मुड़ा। अब मेयर प्रसन्नतासे खिल उठा। लोगोंने समझा- चलो, यह उस पहाड़को अब किसी प्रकार लाँघ न सकेगा। पर आश्चर्य। ज्यों ही वह पर्वतके समीप पहुँचा, उसमें एक दरवाजा खुल पड़ा और वह बाँसुरीवाला उन बच्चोंके साथ उसमें प्रविष्ट हो गया। और सबके अंदर घुसते ही वह दरवाजा पूर्ववत् बंद हो गया। केवल एक लंगड़ा लड़का जो बहुत पीछे छूट गया था, उनके साथ न जा सका।

हैमेलिनके लोगोंके पश्चात्तापका क्या कहना था।उन्होंने लाख मिन्नतें मानीं। पर वह कब लौटनेवाला था। यह कथा वहाँकी गुफाके एक पत्थरपर आज भी खुदी वर्तमान है। कहते हैं कि ट्रान्सिलवानियाँ में कुछ भिन्न स्वभावके परदेशी व्यक्तियोंकी एक जाति रहती है। उनका कहना है कि उनके पूर्वज एक भूगर्भस्थ कारागृहसे निकले थे जो बर्न्सवीक प्रदेशके हैमेलिननगरके निवासी थे। पर वे क्यों और कैसे निकले ये वे नहीं जानते तथापि उनकी बातोंसे इतना तो सिद्ध हो ही जाता है कि वे पर्वतद्वारमें प्रविष्ट बालक ही इनके तथाकथित पूर्वज थे। वचन देकर लोभवश उसके पूरा न करनेका यह दुष्परिणाम है !

(The Pied Piper of Hamelin)

जर्मनीके बसंवीक प्रदेशमें प्रमुख नगर है नोवर । इसके पास ही हैमेलिन नामका एक शहर है। इसकी एक ओर तो हैमेल नामकी छोटी नदी है, पर दक्षिणकीओर बेसर नदी बहुत बड़ी है। पहले यह और भी गहरी तथा चौड़ी थी। यह नगर अपनी किलेबंदीके लिये प्रसिद्ध रहा है। आजसे प्रायः 600 वर्ष पूर्व सन् 137622 जुलाईको वहाँ एक बड़ी विचित्र घटना घटी। वहाँ चूहे इतने अधिक बढ़ गये थे कि लोग उनसे । बेतरह तंग आ गये थे। बिल्ली और कुत्तेतक उनसे परेशान हो रहे थे और उनकी कोई चिकित्सा सफल ही हो रही थी। अन्तमें वे लोग टाउनहालमें एकत्र हुए और एक स्वरसे बोले-‘हमलोगोंका मेयर (प्रशासक) किसी कामका व्यक्ति नहीं है। हमारी विपत्तिका इसे कोई ध्यान नहीं है। अतएव इसे बंद करके कहीं भेज देना। चाहिये अथवा नदीमें डुबो देना चाहिये।’ उनके इस प्रस्तावको सुनकर प्रशासक तथा कारपोरेशन (सभा) का कलेजा काँप उठा। पर भगवत्कृपासे उसी क्षण एक विचित्र वेषधारी बाँसुरी बजानेवाला व्यक्ति वहाँ आया।। उसे देखते ही प्रशासकने बड़ी व्याकुलतासे उसका स्वागत किया। बजानेवालेने कुशल-प्रश्नके द्वारा सब कुछ जानकर कहा-‘मैं आपकी इस विपत्तिको तत्क्षण दूर करनेमें समर्थ हूँ; क्योंकि पृथ्वीपरके सारे जीवोंको मैं आकृष्ट कर सकता हूँ। अभी हालमें ही टाराटरीके राजाको मैंने मच्छरोंके कष्टसे मुक्त किया है। साथ ही एशिया में (भारत) निजामका चमगादड़ोंसे पिंड छुड़ाया है। पर पहले यह तो बतलाइये कि इसके बदले आपलोग मुझे देंगे क्या? क्या एक सहस्र (गिल्डर) मुद्राएँ आप मुझे दे सकते हैं?’ इसपर मेयर तथा कारपोरेशनके लोग चिल्ला उठे- ‘एक सहस्र क्या हमलोग पचास सहस्र मुद्रा दे देंगे। आप चूहोंको भगाइये। ‘
बेचारे वंशीवालेने अपनी बाँसुरी उठायी। पहले तो वह तनिक मुसकराया, फिर अपनी बाँसुरीको उसने अपने ओठोंपर लगाया और धीरे-धीरे शहरकी गलियोंसे चलना आरम्भ किया। वह जैसे-जैसे बाँसुरी बजाते हुए चलता था, पीछेसे चूहोंकी पंक्तियाँ उसका अनुगमन करती थीं। अन्तमें धीरे-धीरे नगरके सारे चूहे उसके पीछे लग गये और वह बेसर नदीमें प्रवेश कर गया। सारे चूहे नदीमें डूबकर नष्ट हो गये, पर एक चूहा उनमें बड़ा हृष्ट-पुष्ट था, वह किसी प्रकार तैरकर पार कर गया। सभी लोग इस तमाशेको देख रहे थे। ज्यों ही यह विपत्ति किनारे लगी, प्रशासकने लोगोंसे चिल्लाकर कहा- ‘अरे दौड़ो, जाओ, चूहोंके सारे बिलोंको अब बंद कर दो और उनके रहनेके स्थानोंको तोड़-फोड़दो।’ तबतक बाँसुरीवालेने वहाँ पहुँचकर पूर्व प्रतिश्रुत एक हजार मुद्राएँ माँग ।
“एक हजार गिल्डर ?’ मेयरकी आँखें लाल हो उठीं। ‘मित्र। हमलोगोंको धोखा नहीं दिया जा सकता। चूहे तो हमारी आँखोंके सामने ही नदीमें लय हो गये। अब उनका पुनः आना असम्भव है। हजार गिल्डरकी बात तो हमारी मजाक मात्र था। आओ, पचास मुद्राएँ जलपानके लिये तुम्हें दे दें।’
बाँसुरीवाला बोला-‘देखो, खेल मत करो मैं क्षण 1 भर भी नहीं रुकूँगा; क्योंकि दोपहर के भोजनके समय मैंने खलीफा बगदाद पहुँचनेकी प्रतिज्ञा की है उस बेचारेको बिच्छुओंने परेशान कर रखा है और जो तुम यह सोच रहे हो कि मैं अब तुम्हारा बुरा ही क्या कर लूँगा तो मैं दूसरे प्रकारको बाँसुरी भी बजाना जानता हूँ याद रखो, इस लोभका बहुत बुरा परिणाम होगा। वचन देकर यों मुकर जाओगे तो तुम्हें बुरी तरह रोना पड़ेगा।’
इसपर प्रशासक बड़ा लाल-पीला हुआ। उसने कहा-‘देखो, तुम जैसे अशिष्ट तथा तुच्छ व्यक्तिका तिरस्कार हम सहनेवाले नहीं तुमसे जितना भी बने, अपनी बाँसुरी बजाकर हमारा अनिष्ट कर लो। तुम बाँसुरी बजाते मर भी जाओ तो भी हमारा अब कुछ नहीं बिगड़ता ।””
बाँसुरीवालेने फिर एक बार गलीमें पैर रखा और फिर बाँसुरी बजायी। इस बार नगरके सभी बालक बालिकाएँ उसके पीछे हो लिये मेयर चुपचाप यह सब देख रहा था। न तो उसमें बोलनेकी शक्ति थी, न हिलने-डुलनेकी बाँसुरीवाला उनके आगे-आगे जा रहा था और सभी बालक उसके पीछे-पीछे। बेसर नदीके किनारेसे होकर वह कोपेलवर्ग पहाड़ीकी ओर मुड़ा। अब मेयर प्रसन्नतासे खिल उठा। लोगोंने समझा- चलो, यह उस पहाड़को अब किसी प्रकार लाँघ न सकेगा। पर आश्चर्य। ज्यों ही वह पर्वतके समीप पहुँचा, उसमें एक दरवाजा खुल पड़ा और वह बाँसुरीवाला उन बच्चोंके साथ उसमें प्रविष्ट हो गया। और सबके अंदर घुसते ही वह दरवाजा पूर्ववत् बंद हो गया। केवल एक लंगड़ा लड़का जो बहुत पीछे छूट गया था, उनके साथ न जा सका।
हैमेलिनके लोगोंके पश्चात्तापका क्या कहना था।उन्होंने लाख मिन्नतें मानीं। पर वह कब लौटनेवाला था। यह कथा वहाँकी गुफाके एक पत्थरपर आज भी खुदी वर्तमान है। कहते हैं कि ट्रान्सिलवानियाँ में कुछ भिन्न स्वभावके परदेशी व्यक्तियोंकी एक जाति रहती है। उनका कहना है कि उनके पूर्वज एक भूगर्भस्थ कारागृहसे निकले थे जो बर्न्सवीक प्रदेशके हैमेलिननगरके निवासी थे। पर वे क्यों और कैसे निकले ये वे नहीं जानते तथापि उनकी बातोंसे इतना तो सिद्ध हो ही जाता है कि वे पर्वतद्वारमें प्रविष्ट बालक ही इनके तथाकथित पूर्वज थे। वचन देकर लोभवश उसके पूरा न करनेका यह दुष्परिणाम है !
(The Pied Piper of Hamelin)

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