स्वामी शंकराचार्य दिग्विजय करते हुए काशी पधारे। शास्त्रार्थप्रेमी काशीके पण्डितोंसे उनका डटकर शास्त्रार्थ हुआ। शंकराचार्यसे ‘अद्वैतवाद’ के विषयमें काशीके पण्डितोंने हार मानी। अद्वैतवादका प्रचार करते हुए आचार्य शंकर कुछ दिन काशीमें रुक गये। वे नित्य गङ्गास्नान और बाबा विश्वनाथका दर्शन करते और शेष समय सत्सङ्गमें व्यतीत करते थे। एक दिन आचार्य शंकर गङ्गातटपर विचर रहे थे कि उनकी दृष्टि गङ्गा उस पार गयी। आचार्यने देखा एक भव्य पुरुष उन्हें प्रणाम कर रहा है। आचार्य शंकरने उस पुरुषको सीधे चले आनेका संकेत किया। वह भद्र पुरुष सनन्दन थे, जो आचार्य शंकरसे दीक्षा लेनेके लिये काशी आ रहे थे। वह पुरुष आचार्यकी आज्ञा समझ चित्तमें घबराहटकेसाथ विचार करने लगा- ‘क्या करूँ मैंने मनसे उन्हें गुरु माना और उनकी यह आज्ञा कि सीधे चला आऊँ ? पासमें कोई नौका भी नहीं। इस स्थितिमें आज्ञानुसार मेरा जाना कैसे सम्भव है ?’ किंतु सनन्दनने गुरु आज्ञाको बलीयसी मानकर आगे पाँव रख ही दिये। जैसे ही गङ्गामें उनका पाँव पड़ा, वहाँपर एक कमलपत्र पैदा हो गया; आगे दूसरा पाँव उन्होंने रखा तो वहाँ भी कमलका पत्र पैदा हो गया। अब सनन्दनको गुरुका प्रभाव समझमें आ गया और धीरे-धीरे नये-नये प्रकट होनेवाले कमलपत्रोंपर पैर रखकर वे गङ्गापार हो गये सनन्दनजी आचार्यसे दीक्षित होकर अद्वैत-मतके विशिष्ट प्रचारक बन गये। कमलपत्रोंद्वारा गङ्गापार करनेके कारण उनका नाम भी ‘पद्मपाद’ पड़ा।
Swami Shankaracharya arrived in Kashi conquering the world. He had a persistent scriptural debate with the scholars of Kashi, who loved scriptural debates. The Pandits of Kashi gave up on Shankaracharya on the subject of ‘Advaita’ Acharya Shankara stayed in Kashi for a few days while preaching Advaita. He took a daily bath in the Ganges and visited Baba Vishwanath and spent the rest of his time in satsang. One day Acharya Shankara was wandering on the banks of the Ganges when his sight went across the Ganges. The teacher saw a magnificent man bowing to him. Acharya Shankar motioned for the man to come straight. He was a gentleman named Sanandana, who was coming to Kashi to take initiation from Acharya Shankara. The man understood the teacher’s command and began to think with anxiety in his mind: ‘What shall I do? There is no boat nearby. How is it possible for me to go as commanded in this situation?’ But Sanandana considered the Guru’s command as stronger and put his feet forward. As soon as his foot fell into the Ganges, a lotus leaf grew there; When he put the second foot forward, a lotus leaf was born there too. Now Sanandana understood the influence of the Guru and slowly he crossed the Ganga by stepping on the newly appearing lotus leaves. Sanandanji was initiated by the Acharya and became a distinguished preacher of the Advaita doctrine. He was also named ‘Padmapada’ because he crossed the Ganges with lotus leaves.