राजा बननेका योग
मूलतः ज्योतिषशास्त्र कर्तव्यशास्त्र और व्यवहारशास्त्र है। इस बातकी सत्यता ज्ञात करनेके लिये किसी राजाने विद्वान् ज्योतिषियों एवं ज्योतिष-मधुकरोंकी सभा बुलाकर प्रश्न किया कि ‘मेरी जन्मपत्रिकाके अनुसार मेरा राजा बननेका योग है, किंतु इस घड़ी मुहूर्तमें अनेक जातकोंने जन्म पाया होगा, जो राजा नहीं बन सके क्यों? कारण क्या है ?” राजाके इस प्रश्नसे सब निरुत्तर हो गये ? सन्नाटेके बीच एक बुजुर्ग उठ खड़े हुए और बोले महाराजकी जय हो, आपके प्रश्नका उत्तर कौन दे सकता है, फिर भी मैं बता रहा हूँ। यहाँसे कुछ दूर घने जंगलमें यदि आप अकेले जायँगे, तो वहाँ आपको एक महात्मा मिलेंगे, उनसे आपको उत्तर मिल सकता है।
उत्सुकताके वशीभूत राजा बुजुर्गके कथनानुसार अकेले जंगलकी तरफ चल दिये। घण्टों यात्राके बाद जंगलमें उन्हें एक महात्मा दिखायी दिये, जो आगके ढेरके पास बैठकर अंगार खानेमें व्यस्त थे। सहमे हुए राजा महात्माके पास ज्यों ही पहुँचे, महात्माने डाँटते हुए कहा, तुम्हारे प्रश्नका उत्तर देनेके लिये मेरे पास समय नहीं है, मैं अपनी क्षुधासे मजबूर हूँ। यहाँसे आगे पहाड़ियोंके बीच एक और महात्मा हैं, उनसे तुम्हें उत्तर मिल सकता है। .
राजाकी जिज्ञासा और बढ़ गयी। राजा पहाड़ियोंकी तरफ चल दिये। चलते-चलते अंधेरा छा गया, किंतु राजाने साहस नहीं छोड़ा। मीलोंतक पहाड़ियोंपर चलनेके बाद राजा दूसरे महात्माके पास पहुँचे। महात्मा चिमटोंसे अपना ही मांस नोच-नोचकर खानेमें व्यस्त थे। राजाको देखते ही दूसरे महात्माने भी डाँटते हुए कहा-‘मैं भूखसे बेचैन हूँ। तुम्हारे प्रश्नका उत्तर देनेका मेरे पास समय नहीं है। आगे जाओ” पहाड़ियोंके उस पार आदिवासियोंके यहाँ एक बालक जन्म लेनेवाला है, जो पाँच मिनटतक जिन्दा रहेगा। सूर्योदयसे पूर्व पहुँचो, बालक उत्तर दे सकता है।’
बिना किसी प्रतीक्षाके राजा गाँवकी तरफ चल दिये, पौ फटनेतक गाँवमें उस दम्पतीके यहाँ पहुँचते ही राजाने आदेश दिया कि जन्म लेते ही बालकको मेरे सामने नालसहित पेश किया जाय। कुछ समय बाद बालकका जन्म हुआ और बालकको राजाके सामने लाया गया। राजाको देखते ही बालकने हँसते हुए कहा – ‘राजन्, मेरे पास भी समय नहीं है, किंतु अपना उत्तर सुनो।’
तुम, मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले
चारों भाई राजकुमार थे। शिकार खेलते-खेलते हम जंगलमें भटक गये। तीन दिनतक भूखे-प्यासे भटकते रहे। अचानक हम चारोंको आटेकी एक पोटली मिली। जैसे-तैसे हमने चार बाटी सेंकी और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख-प्याससे तड़पते हुए एक महात्मा आ गये। आग खानेवाले भइयासे उन्होंने कहा, बेटा। मैं दस दिनसे भूखा हूँ। अपनी बाटीमें से मुझे भी कुछ दे दो मुझपर दया करो, जिससे मेरा भी जीवन बच जाय। सुनते ही भइयाने गुस्सेमें कहा ‘तुम्हें दे दूँगा तो मैं क्या आग खाऊँगा ? चलो, भागो यहाँसे ।’
महात्माजी मांस खानेवाले भइयाके पास पहुँचे, उनसे भी अपनी बात कहने लगे, उन्होंने भी – ‘तुम्हें महात्माजीको डाँटकर भगा दिया और कहा-‘ बाटी दे दूँगा तो मैं क्या अपना मांस नोंचकर खाऊँगा ?’ भूखसे लाचार महात्माजी मेरे पास भी आये, याचना किये” मैंने भी कहा ‘चलो आगे बढ़ो, मैं क्या भूखा मरूँ ?’
अन्तिम आशा लिये महात्मा तुम्हारे पास पहुँचे, तुमसे भी दयाकी गुहार लगायी। सुनते ही तुमने बड़े हर्षित मनसे अपनी बाटोमेंसे महात्माको आधी बाटी आदरसहित दे दी। बाटी पाकर महात्माजी जाने लगे और बोले- ‘तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहारसे फले।’
बालकने कहा- ‘इस घटनाके आधारपर हम चारों आज अपना-अपना भोग भोग रहे हैं। धरतीपर एक समयमें अनेकों फूल खिलते हैं, किंतु सबके फलोंका रूप, रंग, आकार, प्रकार, स्वाद, गुण अलग बनता है। इसी तरह कहते-कहते बालककी आवाज थम गयी। राजाने अपने राजभवनकी ओर प्रस्थान किया और मान लिया कि मूलतः ज्योतिषशास्त्र कर्तव्यशास्त्र और व्यवहारशास्त्र है।
राजा बननेका योग
मूलतः ज्योतिषशास्त्र कर्तव्यशास्त्र और व्यवहारशास्त्र है। इस बातकी सत्यता ज्ञात करनेके लिये किसी राजाने विद्वान् ज्योतिषियों एवं ज्योतिष-मधुकरोंकी सभा बुलाकर प्रश्न किया कि ‘मेरी जन्मपत्रिकाके अनुसार मेरा राजा बननेका योग है, किंतु इस घड़ी मुहूर्तमें अनेक जातकोंने जन्म पाया होगा, जो राजा नहीं बन सके क्यों? कारण क्या है ?” राजाके इस प्रश्नसे सब निरुत्तर हो गये ? सन्नाटेके बीच एक बुजुर्ग उठ खड़े हुए और बोले महाराजकी जय हो, आपके प्रश्नका उत्तर कौन दे सकता है, फिर भी मैं बता रहा हूँ। यहाँसे कुछ दूर घने जंगलमें यदि आप अकेले जायँगे, तो वहाँ आपको एक महात्मा मिलेंगे, उनसे आपको उत्तर मिल सकता है।
उत्सुकताके वशीभूत राजा बुजुर्गके कथनानुसार अकेले जंगलकी तरफ चल दिये। घण्टों यात्राके बाद जंगलमें उन्हें एक महात्मा दिखायी दिये, जो आगके ढेरके पास बैठकर अंगार खानेमें व्यस्त थे। सहमे हुए राजा महात्माके पास ज्यों ही पहुँचे, महात्माने डाँटते हुए कहा, तुम्हारे प्रश्नका उत्तर देनेके लिये मेरे पास समय नहीं है, मैं अपनी क्षुधासे मजबूर हूँ। यहाँसे आगे पहाड़ियोंके बीच एक और महात्मा हैं, उनसे तुम्हें उत्तर मिल सकता है। .
राजाकी जिज्ञासा और बढ़ गयी। राजा पहाड़ियोंकी तरफ चल दिये। चलते-चलते अंधेरा छा गया, किंतु राजाने साहस नहीं छोड़ा। मीलोंतक पहाड़ियोंपर चलनेके बाद राजा दूसरे महात्माके पास पहुँचे। महात्मा चिमटोंसे अपना ही मांस नोच-नोचकर खानेमें व्यस्त थे। राजाको देखते ही दूसरे महात्माने भी डाँटते हुए कहा-‘मैं भूखसे बेचैन हूँ। तुम्हारे प्रश्नका उत्तर देनेका मेरे पास समय नहीं है। आगे जाओ” पहाड़ियोंके उस पार आदिवासियोंके यहाँ एक बालक जन्म लेनेवाला है, जो पाँच मिनटतक जिन्दा रहेगा। सूर्योदयसे पूर्व पहुँचो, बालक उत्तर दे सकता है।’
बिना किसी प्रतीक्षाके राजा गाँवकी तरफ चल दिये, पौ फटनेतक गाँवमें उस दम्पतीके यहाँ पहुँचते ही राजाने आदेश दिया कि जन्म लेते ही बालकको मेरे सामने नालसहित पेश किया जाय। कुछ समय बाद बालकका जन्म हुआ और बालकको राजाके सामने लाया गया। राजाको देखते ही बालकने हँसते हुए कहा – ‘राजन्, मेरे पास भी समय नहीं है, किंतु अपना उत्तर सुनो।’
तुम, मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले
चारों भाई राजकुमार थे। शिकार खेलते-खेलते हम जंगलमें भटक गये। तीन दिनतक भूखे-प्यासे भटकते रहे। अचानक हम चारोंको आटेकी एक पोटली मिली। जैसे-तैसे हमने चार बाटी सेंकी और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख-प्याससे तड़पते हुए एक महात्मा आ गये। आग खानेवाले भइयासे उन्होंने कहा, बेटा। मैं दस दिनसे भूखा हूँ। अपनी बाटीमें से मुझे भी कुछ दे दो मुझपर दया करो, जिससे मेरा भी जीवन बच जाय। सुनते ही भइयाने गुस्सेमें कहा ‘तुम्हें दे दूँगा तो मैं क्या आग खाऊँगा ? चलो, भागो यहाँसे ।’
महात्माजी मांस खानेवाले भइयाके पास पहुँचे, उनसे भी अपनी बात कहने लगे, उन्होंने भी – ‘तुम्हें महात्माजीको डाँटकर भगा दिया और कहा-‘ बाटी दे दूँगा तो मैं क्या अपना मांस नोंचकर खाऊँगा ?’ भूखसे लाचार महात्माजी मेरे पास भी आये, याचना किये” मैंने भी कहा ‘चलो आगे बढ़ो, मैं क्या भूखा मरूँ ?’
अन्तिम आशा लिये महात्मा तुम्हारे पास पहुँचे, तुमसे भी दयाकी गुहार लगायी। सुनते ही तुमने बड़े हर्षित मनसे अपनी बाटोमेंसे महात्माको आधी बाटी आदरसहित दे दी। बाटी पाकर महात्माजी जाने लगे और बोले- ‘तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहारसे फले।’
बालकने कहा- ‘इस घटनाके आधारपर हम चारों आज अपना-अपना भोग भोग रहे हैं। धरतीपर एक समयमें अनेकों फूल खिलते हैं, किंतु सबके फलोंका रूप, रंग, आकार, प्रकार, स्वाद, गुण अलग बनता है। इसी तरह कहते-कहते बालककी आवाज थम गयी। राजाने अपने राजभवनकी ओर प्रस्थान किया और मान लिया कि मूलतः ज्योतिषशास्त्र कर्तव्यशास्त्र और व्यवहारशास्त्र है।