उससे वसन्त रूठ गया
एक बगीचा शहरके बीचमें था। हरी घासका उसमें बहुत बड़ा लान था और चारों तरफ भाँति-भाँति के वृक्ष थे, जिनपर सुन्दर फूल खिला करते थे। एक तरफ आडूके बारह वृक्ष थे। वसन्तमें इनपर कोमल-कोमल और गुलाबी मोतियों-जैसे फूल लद जाते थे। टहनियाँ दिखायी न देतीं, फूल-ही-फूल नजर आते। बादमें अपने मौसमपर ये फूल फलोंमें बदल जाते। ये आडू इतने मीठे होते कि सब उन्हें ‘रसीले आडू’ कहते।
स्कूलसे लौटते हुए बालक इस बगीचेमें आ जाते और खूब खेलते। वे आपसमें कहते-‘यहाँ खेलने में कितना सुख है।’ इन वृक्षोंपर बैठी सुन्दर चिड़ियाँ मीठे मीठे गीत गाती रहतीं। कभी-कभी बालक अपना खेल भूलकर इन गीतोंको सुनने लगते और खुद भी गाने लगते। उन्हें कोई टोकनेवाला तो वहाँ था ही नहीं। बात यह थी कि इस बगीचेका मालिक परदेश गया हुआ था।
एक दिन बालक अपनी मौजमेंखेल रहे थे कि एकाएक उनके कानोंमें गुस्सेसे भरी यह आवाज पड़ी ‘अरे! तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो ?’ चौंककर उन्होंने देखा कि राक्षस जैसा एक लम्बा-चौड़ा आदमी झपटा झपटा उनकी तरफ ही आ रहा है। उसे देखते ही बालक वहाँसे भागे। भागते-भागते उन्होंने सुना – ‘यह मेरा बगीचा है। मैं अपने सिवा इसमें किसीको नहीं घुसने दूँगा। ‘
कुछ ही दिनोंमें उस आदमीने बगीचेके चारों तरफ ऊँची दीवार बनवा दी और उसपर लिखवा दिया- ‘जो कोई इसमें घुसने की कोशिश करेगा, उसे दण्ड मिलेगा।’ बालक स्कूल आते-जाते उस दीवारको देखते, उस बोर्डको पढ़ते और उन दिनोंकी बातोंको याद करते, जब वे बगीचेमें खेला करते थे।
वह राक्षस अपने बगीचेमें अकेला घूमता और कभी-कभी आप ही आप कहता- ‘इस बार वसन्तमें मैं यहाँके फूलोंका आनन्द अकेले ही लूटूंगा और पूरे फल खुद ही खाऊँगा।’
अपने समयपर वसन्त आया। सबके बगीचोंमें फूल खिले, पर राक्षसके बगीचेमें न फूल खिले, न चिड़ियाँ चहकीं। फल कहाँसे लगते ? हाँ, कोहरा और बर्फ खूब पड़ी और इस तरह बगीचा सुनसान हो गया। राक्षस अकेला अपने कमरेमें पड़ा रहता और सोचता रहता
‘यह क्या बात हुई कि सबके यहाँ बहार है, पर मेरे यहाँ सुनसान है!’ यों ही कई वसन्त बीत गये।
एक दिन वह अपने कमरेमें उदास पड़ा था कि उसे अपनी खिड़कीमें चिड़ियोंकी चहचहाहट सुना दो। उसने उठकर बाहर झाँका तो वह भौचक रह गया। बात यह थी कि उसके बगीचेमें फिर वसन्त आ गया। था। डाल-डाल फूल खिले थे और चिड़ियाँ मीठे गीत गा रही थीं।
उसने देखा कि जो ऊँची दीवार उसने बनायी थी, वह एक तरफ थोड़ी-सी टूट गयी थी और उसमेंसे बहुतसे बालक बगीचेमें घुस आये थे। राक्षसने सोचा, मैंने स्वार्थमें डूबकर बच्चोंका बगीचेमें आना बन्द कर दिया, इसीलिये वसन्त मेरे बगीचेसे रूठ गया था। वह बालकोंके पास पहुँचा और खेलने लगा। वह दीवार भी उसने तुड़वा दी और हमेशा खुश रहने लगा।
ऑस्कर वाइल्डकी यह कहानी क्या कहती है? यह कहती है कि जो आदमी अकेले ही सुख भोगना चाहता है, वह खुदगर्ज और स्वार्थी है, उससे वसन्त रूठ जाता है, उसकी खुशियाँ उससे छिन जाती हैं और जो दूसरोंको खुशी देकर खुश होना चाहता है, उसपर वसन्त यानी खुशियाँ बरसती रहती हैं।
उससे वसन्त रूठ गया
एक बगीचा शहरके बीचमें था। हरी घासका उसमें बहुत बड़ा लान था और चारों तरफ भाँति-भाँति के वृक्ष थे, जिनपर सुन्दर फूल खिला करते थे। एक तरफ आडूके बारह वृक्ष थे। वसन्तमें इनपर कोमल-कोमल और गुलाबी मोतियों-जैसे फूल लद जाते थे। टहनियाँ दिखायी न देतीं, फूल-ही-फूल नजर आते। बादमें अपने मौसमपर ये फूल फलोंमें बदल जाते। ये आडू इतने मीठे होते कि सब उन्हें ‘रसीले आडू’ कहते।
स्कूलसे लौटते हुए बालक इस बगीचेमें आ जाते और खूब खेलते। वे आपसमें कहते-‘यहाँ खेलने में कितना सुख है।’ इन वृक्षोंपर बैठी सुन्दर चिड़ियाँ मीठे मीठे गीत गाती रहतीं। कभी-कभी बालक अपना खेल भूलकर इन गीतोंको सुनने लगते और खुद भी गाने लगते। उन्हें कोई टोकनेवाला तो वहाँ था ही नहीं। बात यह थी कि इस बगीचेका मालिक परदेश गया हुआ था।
एक दिन बालक अपनी मौजमेंखेल रहे थे कि एकाएक उनके कानोंमें गुस्सेसे भरी यह आवाज पड़ी ‘अरे! तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो ?’ चौंककर उन्होंने देखा कि राक्षस जैसा एक लम्बा-चौड़ा आदमी झपटा झपटा उनकी तरफ ही आ रहा है। उसे देखते ही बालक वहाँसे भागे। भागते-भागते उन्होंने सुना – ‘यह मेरा बगीचा है। मैं अपने सिवा इसमें किसीको नहीं घुसने दूँगा। ‘
कुछ ही दिनोंमें उस आदमीने बगीचेके चारों तरफ ऊँची दीवार बनवा दी और उसपर लिखवा दिया- ‘जो कोई इसमें घुसने की कोशिश करेगा, उसे दण्ड मिलेगा।’ बालक स्कूल आते-जाते उस दीवारको देखते, उस बोर्डको पढ़ते और उन दिनोंकी बातोंको याद करते, जब वे बगीचेमें खेला करते थे।
वह राक्षस अपने बगीचेमें अकेला घूमता और कभी-कभी आप ही आप कहता- ‘इस बार वसन्तमें मैं यहाँके फूलोंका आनन्द अकेले ही लूटूंगा और पूरे फल खुद ही खाऊँगा।’
अपने समयपर वसन्त आया। सबके बगीचोंमें फूल खिले, पर राक्षसके बगीचेमें न फूल खिले, न चिड़ियाँ चहकीं। फल कहाँसे लगते ? हाँ, कोहरा और बर्फ खूब पड़ी और इस तरह बगीचा सुनसान हो गया। राक्षस अकेला अपने कमरेमें पड़ा रहता और सोचता रहता
‘यह क्या बात हुई कि सबके यहाँ बहार है, पर मेरे यहाँ सुनसान है!’ यों ही कई वसन्त बीत गये।
एक दिन वह अपने कमरेमें उदास पड़ा था कि उसे अपनी खिड़कीमें चिड़ियोंकी चहचहाहट सुना दो। उसने उठकर बाहर झाँका तो वह भौचक रह गया। बात यह थी कि उसके बगीचेमें फिर वसन्त आ गया। था। डाल-डाल फूल खिले थे और चिड़ियाँ मीठे गीत गा रही थीं।
उसने देखा कि जो ऊँची दीवार उसने बनायी थी, वह एक तरफ थोड़ी-सी टूट गयी थी और उसमेंसे बहुतसे बालक बगीचेमें घुस आये थे। राक्षसने सोचा, मैंने स्वार्थमें डूबकर बच्चोंका बगीचेमें आना बन्द कर दिया, इसीलिये वसन्त मेरे बगीचेसे रूठ गया था। वह बालकोंके पास पहुँचा और खेलने लगा। वह दीवार भी उसने तुड़वा दी और हमेशा खुश रहने लगा।
ऑस्कर वाइल्डकी यह कहानी क्या कहती है? यह कहती है कि जो आदमी अकेले ही सुख भोगना चाहता है, वह खुदगर्ज और स्वार्थी है, उससे वसन्त रूठ जाता है, उसकी खुशियाँ उससे छिन जाती हैं और जो दूसरोंको खुशी देकर खुश होना चाहता है, उसपर वसन्त यानी खुशियाँ बरसती रहती हैं।