रास्ता यह है
एक आदमी बहुत परेशान था। बीमारियोंने उसके शरीरको घेर रखा था, पर वह उनका इलाज कैसे कराता; क्योंकि उसके पास पैसे ही न थे। उसकी गरीबी यहाँतक पहुँच गयी थी कि कई दिनसे उसने खाना भी नहीं खाया था।
एक दिन हिम्मत करके वह उठा और जैसे-तैसे एक बड़ी हवेलीके सामने पहुँचा। यह हवेली एक ऐसे आदमीकी थी, जिसका रोजगार बड़ा था और जिसके पास सब कुछ था। उस परेशान आदमीने जोर-जोरसे पुकार मचायी और अपनी बीमारी तथा भूखका बखान किया।
उसकी पुकार सुनकर हवेलीका मालिक बाहर आया और गुस्सेसे बोला-‘भीख माँगते तुझे शर्म नहीं आती? तेरे हाथ-पैर हैं, कमाकर खा।’
परेशान आदमीने कहा-‘आपकी बात ठीक है, कमाकर खानेमें ही आदमीकी शोभा है, पर लम्बी बीमारियोंने मुझे मजबूर कर दिया है। नहीं तो, मैंने सारी उम्र अपने पसीनेकी ही कमाई खायी है।’
हवेलीके मालिकको दयाके बदले गुस्सा आया और उसने उसे बहुत बुरा-भला कहा। उस आदमी में कहीं और जाकर सहायता माँगनेकी भी ताकत नहीं थी, इसलिये वह गिड़गिड़ाकर सहायता माँगता रहा। इसपर हवेलीके मालिकको बहुत गुस्सा आया और उसने अपने नौकरको हुक्म दिया कि वह इस गन्दे आदमीको धक्का देकर हवेलीके सामनेसे हटा दे। नौकरने ऐसा ही किया।
इसके कई बरस बादकी बात है। एक बड़ी हवेलीके सामने एक आदमीने रातके समय पुकार लगायी -‘मैं भूखा और परेशान हूँ। साहब, मेरी मदद करो।’ हवेलीके मालिकने अपने नौकरको बुलाकर कहा- ‘देखो, कोई भूखा और परेशान आदमी मालूम होता है। उसे ढंगसे बैठाकर खाना खिला दो और उसकी कोई और जरूरत हो तो वह पूरी कर दो।’
नौकरने उसे बरामदे में बैठाया, तब उसकी जरूरत पूछी। उसने कहा-‘मैं दो दिनसे भूखा हूँ। इस समय खाना ही मेरी सबसे बड़ी जरूरत है।’
नौकरने उसे भरपेट खाना खिलाया और खाना खिलाकर जब वह हवेलीमें गया, तो मालिकने देखा कि नौकरकी आँखों में आँसू आ रहे हैं। मालिकने पूछा ‘क्या बात है, तू रो क्यों रहा है?” तू
नौकरने कहा-‘जिसे आपने खाना खिलाया है, कुछ साल पहले यह बड़ी हवेलीवाला था और अपने शहरके बड़े आदमियोंमें गिना जाता था। उन दिनों मैं इसके पास नौकर था। आज इसे दर दरका भिखारी देखकर मेरी आँखोंमें आँसू भर आये और कोई बात नहीं है।’
मालिकने कहा-‘ तूने उसे पहचान लिया, पर मुझे नहीं पहचाना देख, मेरी तरफ देख मैं वही भूखा और बीमार आदमी हूँ, जो उस दिन इसके दरवाजेपर मदद माँगने गया था, पर इसके हुक्मसे तूने मुझे धक्का देकर निकाल दिया था।’
कहानी पूरी हो गयी और हम सबसे कह गयी कि ‘जिन्दगीका न तो सही रास्ता यह है कि हम जब सफल हों, तो घमण्डसे फूल उठें और न सही रास्ता यह है कि जब हम असफल हों, तो घबरा जायें, हिम्मत हार बैठें। सही रास्ता यह है कि थकानकी घड़ियोंमें हिम्मतसे काम लें और उठानकी घड़ियोंमें उनकी मदद करें, जो उन दिनों थकानमें हो।’ [ श्रीकन्हैयालालजी मिश्र ‘प्रभाकर’]
रास्ता यह है
एक आदमी बहुत परेशान था। बीमारियोंने उसके शरीरको घेर रखा था, पर वह उनका इलाज कैसे कराता; क्योंकि उसके पास पैसे ही न थे। उसकी गरीबी यहाँतक पहुँच गयी थी कि कई दिनसे उसने खाना भी नहीं खाया था।
एक दिन हिम्मत करके वह उठा और जैसे-तैसे एक बड़ी हवेलीके सामने पहुँचा। यह हवेली एक ऐसे आदमीकी थी, जिसका रोजगार बड़ा था और जिसके पास सब कुछ था। उस परेशान आदमीने जोर-जोरसे पुकार मचायी और अपनी बीमारी तथा भूखका बखान किया।
उसकी पुकार सुनकर हवेलीका मालिक बाहर आया और गुस्सेसे बोला-‘भीख माँगते तुझे शर्म नहीं आती? तेरे हाथ-पैर हैं, कमाकर खा।’
परेशान आदमीने कहा-‘आपकी बात ठीक है, कमाकर खानेमें ही आदमीकी शोभा है, पर लम्बी बीमारियोंने मुझे मजबूर कर दिया है। नहीं तो, मैंने सारी उम्र अपने पसीनेकी ही कमाई खायी है।’
हवेलीके मालिकको दयाके बदले गुस्सा आया और उसने उसे बहुत बुरा-भला कहा। उस आदमी में कहीं और जाकर सहायता माँगनेकी भी ताकत नहीं थी, इसलिये वह गिड़गिड़ाकर सहायता माँगता रहा। इसपर हवेलीके मालिकको बहुत गुस्सा आया और उसने अपने नौकरको हुक्म दिया कि वह इस गन्दे आदमीको धक्का देकर हवेलीके सामनेसे हटा दे। नौकरने ऐसा ही किया।
इसके कई बरस बादकी बात है। एक बड़ी हवेलीके सामने एक आदमीने रातके समय पुकार लगायी -‘मैं भूखा और परेशान हूँ। साहब, मेरी मदद करो।’ हवेलीके मालिकने अपने नौकरको बुलाकर कहा- ‘देखो, कोई भूखा और परेशान आदमी मालूम होता है। उसे ढंगसे बैठाकर खाना खिला दो और उसकी कोई और जरूरत हो तो वह पूरी कर दो।’
नौकरने उसे बरामदे में बैठाया, तब उसकी जरूरत पूछी। उसने कहा-‘मैं दो दिनसे भूखा हूँ। इस समय खाना ही मेरी सबसे बड़ी जरूरत है।’
नौकरने उसे भरपेट खाना खिलाया और खाना खिलाकर जब वह हवेलीमें गया, तो मालिकने देखा कि नौकरकी आँखों में आँसू आ रहे हैं। मालिकने पूछा ‘क्या बात है, तू रो क्यों रहा है?” तू
नौकरने कहा-‘जिसे आपने खाना खिलाया है, कुछ साल पहले यह बड़ी हवेलीवाला था और अपने शहरके बड़े आदमियोंमें गिना जाता था। उन दिनों मैं इसके पास नौकर था। आज इसे दर दरका भिखारी देखकर मेरी आँखोंमें आँसू भर आये और कोई बात नहीं है।’
मालिकने कहा-‘ तूने उसे पहचान लिया, पर मुझे नहीं पहचाना देख, मेरी तरफ देख मैं वही भूखा और बीमार आदमी हूँ, जो उस दिन इसके दरवाजेपर मदद माँगने गया था, पर इसके हुक्मसे तूने मुझे धक्का देकर निकाल दिया था।’
कहानी पूरी हो गयी और हम सबसे कह गयी कि ‘जिन्दगीका न तो सही रास्ता यह है कि हम जब सफल हों, तो घमण्डसे फूल उठें और न सही रास्ता यह है कि जब हम असफल हों, तो घबरा जायें, हिम्मत हार बैठें। सही रास्ता यह है कि थकानकी घड़ियोंमें हिम्मतसे काम लें और उठानकी घड़ियोंमें उनकी मदद करें, जो उन दिनों थकानमें हो।’ [ श्रीकन्हैयालालजी मिश्र ‘प्रभाकर’]