संगीत और बुद्धि
की देवी मानी गई हैं।
*”
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।
सरस्वती सारे संशयों का निवारण करने वाली और बोध स्वरूपिणी हैं। इनकी उपासना से सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। ये संगीतशास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी है। ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी आदि इन्ही की दी गई मानी जाती हैं।सात प्रकार के सुरों से इनका स्मरण किया जाता है। इसलिए ये स्वरात्मिका कहलाती हैं। सप्तविध स्वरों का ज्ञान देने के कारण ही इनका नाम सरस्वती है।
वीणावादिनी सरस्वती ने संगीतमय जीवन जीने की प्रेरणा है। वीणा बजाने से शरीर एकदम स्थिर हो जाता है। इसमें शरीर का हर अंग समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है। 👉सामवेद के सारे विधि-विधान केवल वीणा के स्वरों पर बने हुए हैं।
सरस्वती के सभी अंग सफेद हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि सरस्वती सत्वगुणी प्रतिभा स्वरूप है। देवी भागवत के अनुसार सरस्वती को ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनो पूजते हैं। कमल गतिशीलता का प्रतीक है। यह निरपेक्ष जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने, सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है।
लेखक कवि, संगीतकार सभी सरस्वती की प्रथम वंदना करते हैं। उनका विश्वास है कि इससे उनके भीतर रचना की ऊर्जा शक्ति पैदा होती है। इसके अलावा मां सरस्वती देवी की पूजा से रोग, शोक, चिंताएं और मन का संचित विकार भी दूर होते हैं।
इस तरह वीणाधारिणी मां सरस्वती की पूजा आराधना में
मानव कल्याण का समय जीवनदर्शन के लिए है।
याज्ञवल्क्य वाणी स्तोत्र, वशिष्ठ स्तोत्र आदि में सरस्वती की पूजा व उपासना का वर्णन है। एक दृष्टांत के अनुसार👉 कुंभकर्ण की तपस्या से संतुष्ट होकर ब्रह्मा उसे वरदान देने पहुंचे, तो उन्होंने सोचा कि यह दुष्ट कुछ भी न करें, केवल बैठकर भोजन ही करे, तो यह संसार उजड़ जाएगा। इसलिए उन्होंने सरस्वती को बुलाया सारद प्रेरिता सुमति फेरी। मागेसि नींद मास षट् केरी। यह कहकर उसकी बुद्धि विकृत करा दी। परिणाम यह हुआ कि वह छह माह की नींद मांग बैठा। इस तरह कुंभकर्ण में सरस्वती का प्रवेश उसकी मौत का कारण बना।
|| सरस्वती माता की जय हो ||
Music and intelligence are considered to be the goddess of. *” I always offer my obeisances to Saraswati and to Bhadrakali. Veda Vedanta Vedang and from the places of knowledge.
O Saraswati, most fortunate, lotus-eyed in knowledge. O large-eyed one in the form of knowledge, grant me knowledge, I offer my obeisances to you.
Saraswati is the remover of all doubts and the embodiment of knowledge. All kinds of achievements are achieved by worshiping them. She is also the presiding deity of music. Taal, Swar, Laya, Raga-Ragini etc. are considered to be given by them. They are remembered with seven types of tunes. That’s why it is called Swaratmika. Her name is Saraswati because of giving the knowledge of Saptavidh swaras.
Veenavadini Saraswati is the inspiration to lead a musical life. By playing Veena the body becomes completely stable. In this every part of the body attains the samadhi state. 👉 All the rules and regulations of Samveda are made only on the notes of Veena.
All the parts of Saraswati are white, which means that Saraswati is an embodiment of Satvaguni Pratibha. According to Devi Bhagwat, Saraswati is worshiped by Brahma, Vishnu, Mahesh all three. Lotus is a symbol of mobility. It inspires to live an absolute life. The book in hand teaches to know everything, to understand everything.
Writers, poets, musicians all worship Saraswati first. They believe that this creates within them the energy power of creation. Apart from this, diseases, grief, worries and accumulated disorders of the mind are also removed by worshiping Goddess Saraswati.
In this way Veenadharini Maa Saraswati is worshiped in worship. The time for human welfare is for life philosophy.
The worship and worship of Saraswati is described in Yajnavalkya Vani Stotra, Vashishtha Stotra etc. According to a parable, when Brahma, satisfied with the penance of Kumbhakarna, came to give him a boon, he thought that if this wicked person does nothing, only sits and eats, then this world will be destroyed. That’s why he called Saraswati Sarad Apostle Sumati Pheri. Magesi sleep month six keri. By saying this he perverted his mind. The result was that he sat asking for sleep for six months. Thus Saraswati’s entry into Kumbhakarna became the cause of his death.
, Hail Mother Saraswati ||